सितंबर 29, 2024

POST - 1896 मेकअप नहीं , मुखौटा है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

       मेकअप नहीं , मुखौटा है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

हमारे देश के राजनेताओं की अलग बात है दुनिया उनको पहचानती है मगर असली चेहरे से कम मुखौटे से अधिक । जनता की बर्बादी देख कर भी उनके चेहरे पर शिकन नहीं आती आपदाओं का अवलोकन करते समय भी मुस्कुराहट खिली रहती है कैमरा दर्शाता है । आरोप लगने से छोड़ो अपराध साबित भी हो जाएं तब भी त्यागपत्र देते समय ऊपरी अदालत से निर्दोष साबित होने का आत्मविश्वास कायम रहता है । घोटाले लूट सरकारी संसाधनों और पैसे का अनुचित उपयोग सरकार प्रशासन को नज़र नहीं लग जाये बचाने के काजल से लगाए काले टीके प्रतीत होते हैं शर्मसार होना सीखा नहीं किसी ने भी । कभी हादिसा हो जाये तब उस जगह मगरमच्छ के आंसू बहाते हैं कुछ पल बाद किसी और जगह ठहाके लगाते दिखाई देते हैं । कुछ साल पहले अखबार में खबर छपी थी ब्रिटैन के प्रधानमंत्री को खिला खिला नज़र आने को मेकअप पर सैंकड़ों पौंड खर्च करने पड़ते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति को भी हज़ारों डॉलर खर्चने की आवश्यकता होती है । तब हमारे लिए वो खबर हैरान करने वाली थी जबकि अब हमारे प्रधानमंत्री पर कोई हिसाब नहीं कितना पैसा उनकी बनावट पर खर्च किया जाता है । शारीरिक सुंदरता की बात छोड़ उस की बात करते हैं जिसे शानदार महान छवि प्रस्तुत करना कहते हैं उसका बजट असीमित है विज्ञापन से होर्डिंग लगाने से लेकर सोशल मीडिया प्रबंधन तक पैसा पानी की तरह बहाया जाता है । क़ातिल को मसीहा दिखलाया जाता है झूठ को सच बनाया जाता है जनता को सावन का अंधा समझ हरा ही हरा दिखाई दे रहा बताया जाता है । 
 
डेमोक्रैसी नाम की दुल्हन को सजाते हैं बार बार सोलह श्रृंगार करवाते हैं लाख कोशिश कर के भी राजनीति के दाग़ छुपाने से छुपते नहीं हैं इसलिए राजनेता मेकअप नहीं मुखौटों से काम लेते हैं । नकली चेहरों का फैला हुआ बहुत बड़ा बाज़ार है सरकार मुंह नहीं छिपा सकती चेहरे बदलती रहती है कहती मंत्रिमंडल विस्तार है । हर दिन करोड़ों रूपये मंत्रियों सांसदों विधायकों पर खर्च करते हैं अर्थव्वस्था का हुआ बंटाधार है मगर आम जनता के लिए शिक्षा है न कोई स्वास्थ्य सेवा न ही रोज़गार है उसका जीना मरना बेकार है लेकिन देश बढ़ता जा रहा है सरकारी इश्तिहार है । कोई दार्शनिक बता रहा था कि जैसे प्रयोगशाला में असली नकली की जांच होती है खाद्य पदार्थ से दवाएं तक मिलावट मिलती है कोई तरीका हो परखने को नेताओं की सच्चाई ईमानदारी देश भक्ति से ईश्वर पर आस्था तक सभी नदारद मिलेंगी बस कहने को समाजसेवा खाना है खूब सभी को मेवा । डेमोक्रैसी की दुल्हन लगती है किसी की बेबस बेवा । 
 
अल्पसंख्यक हिमायती होने का मुखौटा है किसी ने लगाया हुआ किसी ने धर्मनिरपेक्षता वाला लगा लिया है , दलितों से हमदर्दी का मुखौटा हर कोई रखता है जब भी ज़रूरत पड़ती है उपयोग करते हैं । अधिकांश ऐसे चेहरे भावशून्य होते हैं जिन पर हंसता हुआ नूरानी चेहरा लगाया होता है नकली किदार की तरह से ही । असलियत बिल्कुल विपरीत होती है विश्व को सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का आडंबर किया जाता है जबकि वास्तव में लोकतांत्रिक मर्यादा को ताक पर रख कर विरोध के अधिकार को ताकत और सत्ता के गलत उपयोग से दबाने में कोई संकोच नहीं करते हैं । सरकार राजनेता पुलिस प्रशासन देश में असामाजिक तत्वों को बढ़ावा देकर अन्याय अत्याचार का पक्ष लेने के बावजूद विदेशों में मानवता और विश्व कल्याण तथा लोकतंत्र का ढोल पीटती रहती है । 
 
    नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे।, ., ., ., #viralpost,  #explorepage✨ #trendingreels #liketime

सितंबर 28, 2024

POST - 1895 नई पहचान उनकी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

             नई पहचान उनकी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

कुछ साल पहले उनको कुत्तों से कोई लगाव नहीं था कभी किसी कुत्ते को रोटी का टुकड़ा नहीं डाला घर पर रखने का कोई ख्याल ही नहीं आया । सुरक्षा को प्रबंध किया हुआ था और चाटुकारिता करने वाले इंसान थे उनके तलवे चाटने को पांव की धूल से जूतों की गंदगी साफ करने चमकाने को । किसी और गली का कुत्ता था जो उनसे परिचित नहीं था तभी उन पर भौंकने लगा अपने दुस्साहस का नतीजा उसकी जान जाना , बेमौत मर जाना था । इक मामूली सी घटना इतनी बड़ी खबर बन गई कि शहर भर के तमाम कुत्ते संगठित हो गए थे , बात बढ़ते बढ़ते राज्य की राजधानी तक पहुंची थी कि उनकी गाड़ी ने उस कुत्ते को कुचला था । जब चर्चा दिल्ली तक जा पहुंची तो उनको समझदारी से काम लेना ज़रूरी प्रतीत हुआ और कुत्तों से वार्तालाप कर खेद प्रकट करने से कुत्ते की आत्मा की शांति के लिए सभा आयोजित कर मुवावज़ा देने की घोषणा की थी । कुत्तों को लगा जैसे उन्होंने जंग का मैदान जीत लिया है जबकि वास्तविकता कुछ और थी कितनी बार समझौता वार्ता करते हुए उनको कुत्तों के स्वभाव की परख हो गई थी । कुत्तों को हड्डी और अन्य खाने पीने को टुकड़े डालने से खामोश करना अपने तलवे चाटने की आदत डालना सीख लिया था । उन्होंने तय कर लिया था कुत्तों को पालना बेचना खरीदना इक बड़ा कारोबार बन सकता है उनके लिए राजनीति के साथ साथ । 
 
उन्होंने कुत्तों का इक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जिस में बहुत सारी घोषणाएं की गई , कुत्तों को शानदार जीवन उज्जवल भविष्य की योजना से अवगत करवाया गया उनको कुछ विशेषाधिकार प्रदान करने की भी शुरुआत की गई । पंचतारा होटल में सभी को आमंत्रित किया गया और उपहारों से मालामाल किया गया , जो अभी नहीं पहुंचे उनको गाड़ियां भेज लाने का प्रबंध किया गया । कुत्ते अपने आप को धरती से आसमान पर होने का सुखद अनुभव महसूस करते रहे । कुत्तों को अपने जानकर बंधुओं को संदेश भेज बुलाने का भी अवसर उपलब्ध करवाया गया । कुत्तों ने उनकी जय-जयकार करने की शुरुआत करते हुए संकल्प लिया अपनी निष्ठा उनके प्रति बनाये रखने का । सभी कुत्ते शाही महमान हैं कोई भूखा प्यासा नहीं सब को जो चाहिए बिना मांगे मिलने लगा है , खामोश हैं सभी कोई किसी पर भौंकता ही नहीं । पहली बार सभी कुत्ते आपसी मतभेद को एक तरफ रख कर किसी की चाटुकारिता और समर्थन से गुणगान बचाव करने को साथ साथ खड़े हैं । कोई उनको भगवान लगता है क्योंकि उनका जीना सफल हुआ उसी की शरण आकर । 
 
अचानक किसी महानगर से इक महत्वपूर्ण संदेश मिला है , जिस में आग्रह  किया गया है कि इंसानों से सावधान रहना चाहिए । मतलबी लोग आपको इस्तेमाल करते हैं और आपको आदमी जैसा बना कर आपकी वास्तविक पहचान मिटाने लगे हैं । लोग अब कुत्तों की वफ़ादारी और रखवाली का भरोसा नहीं करते हैं , धीरे धीरे कुत्तों की ज़िंदगी का मकसद छूट रहा है । कुत्तों का कुत्तेपन का त्याग किसी अनहोनी का अंदेशा है , उस संदेश ने सभा में उपस्थित सभी कुत्तों का मूड ही खराब कर दिया है पार्टी का मज़ा किरकिरा हो गया है ।  लेकिन आलोचना से घबरा कर अपने बढ़ते हुए कदम वापस नहीं ले जा सकते हैं इसलिए उस संदेश की कड़ी निंदा का प्रस्ताव पारित किया गया है । कोई भी कुत्ते की मौत नहीं मरना चाहता सभी ऐशो आराम से राजसी जीवन का आनंद उठाना चाहते हैं । सभी को अपने अपने गले में बंधे पट्टे और कीमती मज़बूत जंज़ीर से लगाव और प्यार हो गया है आवारा कहलाना नहीं चाहता कोई भी पालतू होना शर्म की नहीं गौरव की बात समझी जाने लगी है बिरादरी में कौन कितना अधिक कीमत पर बिकता है ये महत्वपूर्ण लगता है । जैसी भी है उनकी नई पहचान यही है सभी जानते हैं कौन किसी को कुछ कहेगा जब सभी एक समान हैं । हर कुत्ते की आन बान शान है सब उसी के हैं ऐसी पहचान है ।  
 
 क्या कुत्तों को कॉलर पहनना पसंद है? यह क्यों मायने रखता है?

सितंबर 27, 2024

POST : 1894 मेरी निगाह में है ( हास- परिहास ) डॉ लोक सेतिया

          मेरी निगाह में है ( हास- परिहास ) डॉ लोक सेतिया

किसी पर नज़र रखते हैं पल पल की खबर रखते हैं किसी के लिए छुपे हुए सीसीटीवी कैमरे से या अन्य तरीके से जांच करते हैं ये देखने को कि भरोसे को तोड़ तो नहीं रहा , भरोसा कौन किसी का करता है भगवान पर भी भरोसा नहीं आजकल । बस कोई कोई किसी की प्यार भरी निगाह में होता है अन्यथा हर रिश्ता नाता दोस्ती संबंध सिर्फ इक समझौता है । कोई घर के कोने कोने की खबर से वाक़िफ़ है किसी को गांव गली शहर का सब हाल मालूम है लेकिन ये जो सरकार है इसका ग़ज़ब कारोबार है कुछ भी छिपा नहीं रहता फिर भी ख़ाक़ हो जाएंगे हम उसको खबर होने तक । सरकार बेरहम नहीं होती बस उसको रहम नहीं आता बेबस गरीब लोगों पर उसकी पलकें बिछी रहती हैं कुछ ख़ास लोगों की खातिर जिनका ख्याल उसे रात दिन करना ही है । जनता हमेशा सरकार की होती है पर सरकार चाहे भी तो जनता की हो ही नहीं सकती क्योंकि वो पहले दिल किसी को दे चुकी होती है । सरकार सभी से नज़रें नहीं मिलाती सरकार कभी अपनी नज़रें नहीं झुकाती उनकी नज़रें चार नहीं बेशुमार होती हैं जिनकी गिरफ़्त में अपनी सरकार होती है । न्याय-व्यवस्था पुलिस प्रशासन सभी आंखों वाले अंधे लोग हैं जिनको खुद कुछ दिखाई देता ही नहीं लेकिन शासक राजनेता उच्च अधिकारी का निर्देश मिलते जो नहीं होता वो भी नज़र आने लगता है । सत्ता इक ऐसा चश्मा है जिस में झूठ सत्य से बेहतर स्पष्ट और शानदार दिखता है सच सामने करीब से गुज़र जाता है पता नहीं चल पाता है । 
 
हर नज़र जिनकी तरफ है उनकी नज़र किनकी तरफ है कठिन है समझना आखिर तिरछी नज़र होती है हुस्न वालों की कनखियों से देखते हैं कौन कौन उनको तांक झांक रहा है माजरा सीबीआई और ई डी का है । वो कुछ अलग बात है कि कभी कभी कहते हैं तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है । राजनीति के इशारे भी क्या कमाल करते हैं दूर से करते हैं इशारा करीब आएं तो धमाल करते हैं शतरंज की नई चाल चलते हैं । ये अंधों की नगरी है गूंगे बहरों ने महफ़िल सजाई है दूल्हा कौन है नहीं मालूम इक दुल्हन बरात लाई है । हर चीज़ अपनी हुआ करती थी दुनिया हुई अब तो पराई है । शनिदेव की वक्रदृष्टि की तरह राजनेताओं की गिद्धदृष्टि लोकतंत्र पर हमेशा पड़ती रहती है , जनता के अधिकारों उनकी विरोध की आवाज़ को कुचलने को हमेशा सत्ताधारी शासक प्रशासक तैयार रहते हैं । संवैधानिक संस्थाओं को अपाहिज बना दिया है उनकी बढ़ती आकांक्षाओं ने मनचाहा भविष्य पाने को ईमानदारी और नियुक्त पद की गरिमा को दांव पर लगा सेवानिवृत हो कर अथवा बड़ा ओहदा हासिल करने को कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं । इंसाफ की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी निष्पक्षता की नहीं सुवधानुसार समझने खामोश रहने से किसी सीमा तक जाने को तैयार हैं जिस का कोई उपचार नहीं ऐसे बीमार हैं । यूं आंखों पर गीत कितने लिखे फ़िल्में तक बनी हैं लेकिन आंखों आंखों में जो बात हुआ करती थी आजकल नहीं होती है अब आंख से अंधे लोग दुनिया भर को मंज़िल का रास्ता बताने लगे हैं सभी उनकी बस्ती में जाने लगे हैं देखने वाले पट्टी अपनी आंखों पर बंधवाने लगे हैं , हम आपको पुरानी ग़ज़ल सुनाने लगे हैं । 

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे ( ग़ज़ल ) 

 डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हैं उधर सारे लोग भी जा रहे
रास्ता अंधे सब को दिखा रहे ।

सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो
गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।

सबको है उनपे ही एतबार भी
रात को दिन जो लोग बता रहे ।

लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर
दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।

घर बनाने के वादे कर रहे
झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।

हक़ दिलाने की बात को भूलकर
लाठियां हम पर आज चला रहे ।

बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं
हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
 
 अंधेर नगरी, चौपट राजा | Andher Nagri Chaupat Raja |
 

सितंबर 26, 2024

POST : 1893 मोबाईल एक उलझनें अनेक ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

      मोबाईल एक उलझनें अनेक ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

  अजब मुहब्बत है कितनी मुसीबत है दिन को चैन है न पल भर की फुर्सत है मोबाईल फोन इक ऐसा आफत है । इंसान की पहचान बस मोबाईल नंबर हो गई है जीते जी ग़ज़ब कयामत हो गई है । ख़रीदा महंगा संभालना पड़ता है आहट ज़रा सी हुई ध्यान रखना पड़ता है खुद अपने लिए इक सरदर्द मोल लिया है बिन इसके लगता नहीं जिया है । दुनिया सारी गुलाम बन गई है नेटवर्क नहीं मिलता तो लगता है जैसे शहर बस्ती की रौनक खो गई महफ़िल सुनसान बन गई है । अनलिमिटेड कॉल्स की सुविधा वरदान लगती थी अभिशाप साबित हुई है हर शख़्स को इक रोग लगा है इक फोन से रिश्ता निभाना है सारा ज़माना हुआ बेगाना है । कोई भी जगह हो मंदिर मस्जिद चाहे कोई ख़ुशी का अवसर या कहीं शोक प्रकट करने की घड़ी बजती है घंटी लगती है अटपटी । अनचाही कॉल्स की मुसीबत कम नहीं है कौन था क्यों कैसे इस से अनसुलझी कोई भी उलझन नहीं है । उसकी साड़ी उसकी कमीज़ से मुक़ाबला कठिन नहीं था इस की कोई सीमा नहीं है मॉडल से कंपनी तक बड़ी कठिनाई है स्मार्ट फोन सबसे बड़ा हरजाई है । नंबर बदलते हैं ज़माने से बचते है मगर बचना मुमकिन नहीं है बदला नंबर भी नंबर वन नहीं है ।   
 
खो गया मोबाईल फोन लगता है ज़िंदगी ग़ुम हो गई है इक उसी संग रहने की आदत हो गई है जुदाई की हर घड़ी लगती है कयामत है नज़र लगी किसकी किसी की शरारत है । अचानक जब कभी उसकी आहट थम जाती है बस जितना साथ था ख़त्म हो जाता है नया खरीदने में उसे देना पड़ता है प्यार को अलविदा कहना पड़ता है । किश्तों पर जीना किस्मत बन गई है बढ़ती हसरत घटते घटते ख़त्म नहीं हुई अधिक बढ़ रही है । सरकार व्यौपार अख़बार सब का नाता बस इसी से संभव है , शुभ समाचार से शोक समाचार तक सिर्फ व्हाट्सएप्प संदेश से भेजते हैं निमंत्रण पत्र से जाने क्या क्या इसी से आदान प्रदान करते हैं । हवा पानी खाना पीना जैसे ज़रूरी है सोशल मीडिया पर एक्टिव होना उस से भी ज़रूरी है ये ज़रूरत थी बन गई मज़बूरी है । अजब हाल है ज़िंदगी बेहाल है मगर सबको लगता बंदा क्या कमाल है भूखा बदहाल लगता मालामाल है । मिलना मिलकर बातें करना भूल गए हैं घर बुलाना कभी चले जाना छोड़ दिया है बस इक ही रिश्ता सब से संदेश औपचारिक भेजने का निभाते हैं अब नहीं पुराने दिन याद आते हैं । व्हाट्सएप्प से अधकचरा ज्ञान पाकर इतराते हैं करते हैं नासमझी समझदार जानकार कहलाते हैं । सैंकड़ों हज़ारों नंबर हैं कौन हैं भूल जाते हैं याद नहीं आया किसका नंबर है खास दोस्त से कहते नहीं शर्माते हैं ।   
 
इक बेजान चीज़ ने कितना बर्बाद किया है बड़ी लंबी इसकी कहानी है , ये इक रेगिस्तान में चमकता हुआ पानी है मृगतृष्णा की वास्तविकता जानी पहचानी है । इक दौड़ है प्यास की आखिर अंजाम वही होगा सोचो क्या नफरत क्या लूट क्या धोखा होने लगा है हर शख़्स अपने अश्कों से खुद अपना दामन भिगोने लगा है । कांटों का गुलशन संजोने लगा है । अजब सा नशा है बेबसी का आलम है कोई और नहीं अपनी खुद की उलझन है मुझको लगता उनके पास फोन नहीं मेरी कोई सौतन है । इक बेजान बेवफ़ा से दिल लगा बैठे हैं लोग मत पूछना क्या क्या नहीं गंवा बैठे हैं लोग । सामाजिक वातावरण इतना प्रदूषित हो गया है कि इस की गंदगी दुनिया का मुकदर हो गई है । ये ऐसा ज़हर है सबको खाना पड़ता है कड़वा है मीठा बताना पड़ता है । कभी किसी संत महात्मा ने उपदेश देते हुए स्वर्ग नर्क और मोक्ष की व्याख्या की थी जिस में समझाया गया था कि कुछ चीज़ों का मोह आदमी को भटका देता है मोक्ष स्वर्ग से नर्क भाने लगता है । तब उनका मकसद सामाजिक और राजनैतिक प्रशासनिक पतन को लेकर था कि सत्ता का नशा और अधिकार मदहोश कर देते हैं । लेकिन किसे पता था भविष्य में मोबाईल फोन इक ऐसा उपकरण साबित होगा जिसे हासिल कर सामान्य नागरिक भी स्वर्ग मोक्ष से बढ़कर आनंद का अनुभव नर्क से भी बदतर हालात बनाने वाले से अनुभव कर अनगिनत समस्याओं असंख्य उलझनों परेशानियों को आमंत्रण देने लग जाएंगे । 
 
 पति-पत्नी के बीच 'सौतन' बना मोबाइल, 5 घंटे तक फोन से 'प्यार' excessive use  of smartphone harming married couples relationships in India say new study  - Tech news hindi, गैजेट्स न्यूज़

सितंबर 24, 2024

POST : 1892 लाज - शर्म की बात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

             लाज - शर्म की बात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया   

कभी जिसे बेशर्मी कहते थे आजकल बिंदास का संबोधन दे कर सुशोभित किया जाता है । कुछ लोग गंभीर चिंतन में डूबे हैं उनको पता चला कोई शर्म नाम की चीज़ भी समाज में हुआ करती थी जो अब कहीं दिखाई नहीं देती एकदम विलुप्त हो गई है । ऐसे में सवाल खड़ा हुआ कभी आवश्यकता पड़ी तो कहां से लाएंगे लाज शर्म इक आभूषण कहलाता था , जाने उनको इसकी क्या ज़रूरत आन पड़ी जो तलाश करते करते थक हार कर उदास हुए बैठे हैं । हर आते जाते से सवाल करते हैं क्या आपको शर्म आती है क्या सभी ने बेच खाई है लोकलाज या फिर घोट कर पी लिया है । कहीं ऐसा तो नहीं कोई शर्म की जमाखोरी का कारोबार करना चाहता है जिस से भी मिली कौड़ियों के भाव खरीद ली शर्मोहया बाद में मुनाफ़ा कमा कई गुणा कीमत वसूलने को । शर्माना आजकल चलन से बाहर हो गया है ऐसा पहनावा या गहना जिसे पहन कर कोई कार्टून की तरह लगता है महफ़िल में उपहास का कारण बन जाती है शराफ़त सादगी भोलापन । शायद कुछ समय बाद लोग यकीन ही नहीं करेंगे कि कभी भले लोग अकारण भी शर्मिंदा हो जाते थे , महात्मा गांधी जैसे लोग अपने की अनुयाइयों के अनुचित आचरण से आहत होकर उपवास रखते थे । राजनीति जब से स्वार्थ और सत्ता की लड़ाई बनी है नेताओं ने निर्धारित कर लिया है कि जब नाचन लागी तो घूंघट काहे । ज़मीर का सौदा कभी घबरा कर नहीं किया जाता सौदेबाज़ी की राजनीति में कोई नक़ाब नहीं रखते सही गलत का कोई हिसाब नहीं रखते राजनेता अपनी मेज़ पर क्या अलमारी में भी ईमानदारी वाली किताब नहीं रखते । जनता को कहते हैं तुमको ख़ैरात मिली हमारा एहसान समझना अधिकार नहीं मिलेंगे कभी सत्ताधारी शासक अपने ज़ुल्मों का कभी कोई हिसाब नहीं रखते । 
 
सिनेमा टीवी चैनल ही नहीं लेखक संगीतकार कलाकार चित्रकार सफलता हासिल करने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी गंदी सोच विकृत मानसिकता की खातिर दर्शकों को बेशर्मी और गंदगी फूहड़ता परोस कर  शोहरत की बुलंदी पर खड़े हैं बदनाम हैं तो क्या नाम होना चाहिए । खलनायक का महिमामंडन किया जाने लगा है खलनायक दिल लुभाने लगे हैं , आइटमसांग महिलाओं को 6 पैक एब्स फिल्म टीवी सोशल मीडिया पर जिस्मफ़रोशी का आधुनिक रंग समझाने लगे हैं । बाबा लोग नाचने नचाने लगे हैं छलिया बनकर बंसी बजा कर भजन कीर्तन में रंगरलियां मनाने लगे हैं । अधिकारी कारोबारी पुलिस वाले अनबुझी प्यास अपनी बुझाने को बाबाओं की शरण जाने लगे हैं ।  बाबाओं का सरकारों से मधुर संबंध बन गया है अपने बेगाने ठिकाने लगे हैं गुनाहगार पांव दबा कर जुर्म की माफ़ी पाने लगे हैं धर्म राजनीति प्रशासन ठेकेदार मिल कर खाने खिलाने लगे हैं आश्रम आलीशान भवन बनवाने लगे हैं । सभी नंगे हम्माम में नहाने लगे हैं अपनी बेशर्मी को खुलकर दिखाने लगे हैं चोर कोतवाल रिश्ते बनाने लगे हैं ।
 
कोई नया अवतार आया हुआ है जिस ने बड़ा बाज़ार सजाया हुआ है । शर्म के बांड्स शेयर प्रमाणपत्र क्या क्या नहीं उस के पास खरीदना है खरीदो बेचना है बेचो भाव चढ़ रहा है लिखवाया हुआ है । शर्म का युग ख़त्म हुआ कभी लौट कर नहीं आएगा आधुनिक काल बेशर्मी का है बढ़ता ही जाएगा । पुराना ज़माना था कि लोग मुंह छिपाते थे असामाजिक कृत्य कर घर से बाहर निकलने से घबराते थे , आजकल जुर्म का मुक़दमा चलेगा अभी ज़मानत पर रिहा होने पर ढोल नगाड़े बजाते जुलूस से शान दिखाते हैं क़ातिल नहीं बाहुबली कहलाते हैं । कहते हैं लोग मालामाल हैं मगर समझ आये तो शर्म की बात पर सभी कंगाल हैं ।   
 
 शर्म की बात पर ताली पीटना (व्यंग) हरिशंकर परसाई Sharm ki baat par tali  pitna/Harishankar parsai

सितंबर 18, 2024

POST : 1891 याद मां की नहीं , मसालों की ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

    याद मां की नहीं , मसालों की ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

बड़े बुज़ुर्ग हमेशा पते की बात कहते हैं हमने अपने बाल कोई धूप में सफेद नहीं किए अनुभव हमेशा सही साबित होता है । आजकल उम्र से पहले ही बाल सफ़ेद होने लगते हैं और कुछ लोग ख़िज़ाब लगाकर भी बालों को रंग कर उम्र छिपाना चाहते हैं लेकिन उम्र बिता कर खट्टे मीठे अनुभव प्राप्त करने की बात बिल्कुल अलग होती है । युवा पीढ़ी को पहले जो बातें फज़ूल लगती हैं बाद में खुद समझ आती हैं अनुभव से तब भूलसुधार संभव नहीं होता । हमने भी अपने बच्चों को हिदायत दी कि हमसे गलती हुई बाप की नहीं समझी तुम वो मत करना क्योंकि हमने नहीं चाहते हुए भी उनकी कही बात पर अमल किया तो सही साबित हुई आजकल तो मनमानी करने की आदत ने लिहाज़ करना छोड़ दिया है जो बाद में पछतावे का कारण बन सकता है । हमारे बाप दादा कहते थे नोट तुड़वाया तो गया बेटा बिहाया तो पराया हुआ खरी बात थी नोट खर्च होते पता नहीं चलता हज़ार से पांच सौ नहीं बीस पचास बनता जाता है । बेटा कितना सयाना हो शादी के बाद पत्नी के पल्लू से बंधकर अच्छा पति साबित होने की कोशिश में सभी पुराने दोस्त रिश्तेदार उसे आम और ससुराल के नाते खास लगने लगते हैं । हर दामाद ससुराल में कुछ दिन तक खुद को बादशाह जैसा महसूस करता है तब आसमान में ज़मीन का महत्व नहीं मालूम होता है । कुछ लोगों को बाप तब तक ज़रूरी लगता है जब तक खुद कमाई नहीं करने लगते हैं । नौकरी आदि में गॉडफ़ादर मिल जाये तो पिता की कोई आवश्यकता नहीं रहती है । दफ़्तर में बॉस और दुकानदारी कारोबार में ग्राहक बाप से अधिक प्रिय और आदरणीय होते हैं । राजनीति में होता था ज़रूरत पड़ती तब गधे को बाप बनाना जबकि बचपन में जो बालक शरारती होते हैं बाप को झूठ बोलकर पैसे लेते किताब खरीदनी है मगर उस से मौज मस्ती कर समझते बाप को उल्लू बनाया है । बाप आखिर बाप होता है औलाद की वास्तविकता समझ जाता है कुछ देर से ही सही । 
 
मगर मां की बात उसकी याद बिल्कुल अलग होती है , मां याद आती है जब भी कोई मुश्किल पेश आती है और कभी घर से दूर अकेलापन महसूस होता है तब आंखे भर आती हैं स्नेहपूर्ण अनुभूति से । कहते हैं शादी के बाद मां और पत्नी में संतुलन बनाना सबसे कठिन कार्य होता है । सास भी बहु भी अच्छी होती है लेकिन दोनों ही बेटे और पति पर अपना विशेषाधिकार खोना नहीं चाहती हैं आपसी अनबन का यही कारण होता है ।पंजाबी में लोकगीत कुछ ऐसे हैं ' लाई लग नूं है मां ने विगाड़िया ' अर्थात बातों में आ जाता है मेरा भोला पति जिसे उसकी मां ने बिगाड़ दिया है । अजीब बात है बिगड़ा हुआ कोई है लेकिन बहु कहती है ' वे मैं सस कुटणी इक निम दा घोटणा लियाईं ' लेकिन ये हंसी मज़ाक में कहना आसान है करना बिल्कुल नहीं । पत्नी और मां दोनों अपनी अपनी जगह हैं ज़रूरत पड़ने पर याद उनकी आती है नई नवेली दुल्हन शर्माती है कुछ साल बाद कितने नुस्खे आज़माती है मां के पल्लू से पति को छुड़ाती है तब चैन पाती है । 
 
आखिर इक कंपनी ने इस समस्या का समाधान समझाया है उस कंपनी के मसाले मां के प्यार का विकल्प बन सकते हैं । दुल्हन निश्चिंत है उसकी गाड़ी की डिक्की में किसी कंपनी के कितने ही मसाले के डिब्बे भरे हुए साथ ले जाएगी उनसे बना खाना खिलाएगी तो उनकी सुगंध मां के हाथ के खाये खाने का स्वाद भुलाएगी । मां की महक डिब्बों में भर कर बेची जाएगी । मां के हाथ का स्वाद झूठा कंपनी के मसालों का सच्चा उनकी सुगंध डाइनिंग टेबल की तरफ खींच लाएगी फोन पर मां से बात बंद करवाएगी । इक दूसरी कंपनी मां जैसा अचार खिला रही है मिलावट से बचाने को खुद को शुद्ध कहलाने का प्रमाणपत्र मिला दिखला रही है । भला कोई मां ऐसा प्रमाण जुटा पाएगी कंपनियों के उत्पाद लोकप्रिय हो रहे हैं मां खाली जगह बनती जा रही है । काश कोई कंपनी उनको भी अपनाये जिनकी मां ही नहीं होती है उनकी ज़िम्मेदारी कोई सरकार भी कंधों पर नहीं ढोती है किस्मत उनकी खराब होती है । 
 
शराब और सिगरेट वाले तन्हाई और दोस्तों की महफ़िल का रंग जमाने वाले साथी हैं विज्ञापन समझाते हैं । कभी भी कुछ लोग इनसे ही प्यार करते हैं ज़िंदगी तबाह कर भी उनको अपना बनाते हैं बिना इनके नहीं जी पाते इनसे ही मौत को गले लगाते हैं । बीमा कंपनियां प्रचार करती हैं बुरे समय वही अच्छा व्यवहार करती हैं जबकि उनकी सच्चाई कुछ और है हमेशा आपके साथ होने का खोखला शोर है बहुत कठिन है उनकी भुगतान राशि मिलने का कोई ओर है न ही कोई छोर है । छलिया है चितचोर है किसी का नहीं उन पर चलता ज़ोर है आपका बही खाता उनका घटा जोड़ है अजब मोड़ तरोड़ है । मौत के बाद साथ निभाने का वादा जब भी कोई करता है झूठ है आखिर मुकरता है कौन संग संग मरता है । कंपनियां भाई बहन का प्यार का भी कोई विकल्प ढूंढ लाएंगी रक्षाबंधन से लेकर सब ऑनलाइन उपलब्ध करवाएंगी दिल बहलाएंगी उलझनें नहीं सुलझ पाएंगी ।मुसीबत तब आएगी जब पत्नी का भी कोई विकल्प कोई कंपनी बाज़ार में ले आएगी । नल के पानी और बोतल बंद मिनरल वाटर में किस की जीत होगी ख़ामख़याली समझ रहे हो पर कब क्या हो भरोसा नहीं है । जिस तरह कंपनी बताती है पुरे चौदह मसाले हैं सही मात्रा में उसी तरह पत्नी भी सर्वगुण सम्पन्न को लेकर उनकी भविष्यवाणी हंगामा खड़ा कर सकती है । वही बाज़ार जो सास को छोड़ बहू साथ खड़ा है कल उसका क्या हाल करेगा नहीं जानती कोई महिला भी कितनी अनुभवी हो बेशक ।  
 
 व्रत में इलायची और लौंग खा सकते हैं या नहीं? - vrat mein kya khana chahiye  aur kya nahin-mobile
  

सितंबर 17, 2024

POST : 1890 लव मैरिज की पोलिटिक्स ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     लव मैरिज की पोलिटिक्स ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

टीवी से लेकर सोशल मीडिया तक हर कोई इसी की चर्चा कर रहा है नेता जी अपने प्रिय कुत्ते का जन्म दिन धूमधाम से मनाने वाले हैं । प्रशासन दिन रात एक कर आयोजन की तैयारी में जुटा हुआ है कोई भी कमी या कोई चूक नहीं होने दी जा सकती बेहद महत्वपूर्ण अवसर है । निमंत्रण पत्र सभी ख़ास वीवीआईपी लोगों को सत्ताधारी राजनेताओं को भिजवाया गया है आग्रह निवेदन विनती की गई है कि सभी अपने पालतू कुत्तों को साथ लेकर ही आएं । कुत्ते को घर पर छोड़ कर कदापि नहीं आना हैं मगर खुद आना संभव नहीं हो तो भी अपने ड्राइवर के साथ गाड़ी में कुत्ते को भिजवाया जा सकता है । जैसे नेता जी ने अपने कुत्ते का बनाव और सजाने संवारने को महानगर से माहिर लोग बुलवाये हैं उस से चर्चा होने लगी है कि शायद नेता जी अपने प्रिय कुत्ते का रिश्ता तलाश कर चुके हैं जिसकी घोषणा हो सकती है । अथवा उनको इस अवसर का उपयोग करना है अपने कुत्ते की पसंद की कुतिया खोजने के लिए क्योंकि अख़बार में और शहर में बैनर पोस्टर लगा कर सभी को बुलावा दिया गया है , आम जनता को नेता जी के कुत्ते का गुणगान करना है और बचा हुआ खाना उनको वितरित किया जाएगा उनको अलग रखने को बैरीकेट्स लगा दिए गए हैं । समारोह स्टेडियम में आयोजित किया जाना है जिसका जन्म दिन है उस कुत्ते पर इक पुस्तिका छपवाई गई है जिसे पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि ये किसी अवतार से कम नहीं है । कुत्ते का महत्व उसका जीवन पसंद नापसंद को भी समझाया गया है और नेता जी ने कुत्तों से जो राजनीतिक समझ हासिल की है उसे विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है जो नेता जी द्वारा चुनाव जीतने का सहयोगी रहा है । 

नेता जी ने किसी अन्य व्यक्ति से अधिक भरोसा हमेशा अपने कुत्ते पर किया है पिछली बार जब विधायकों से समर्थन पर सौदेबाज़ी हो रही थी उस बातचीत में कुत्ते की भूमिका अहम थी । नेता जी का कुत्ता सूंघकर इशारे से बता देता कौन वफ़ादार है कौन शक के दायरे में है और नेता जी अपनी रणनीति बनाकर ऐसे लोगों को अपने पाले में लाने को सफल रहे थे । सही मायनों में उनकी सरकार जनता के वोटों या विधायकों के समर्थन से ज़्यादा कुत्ते की सहायता से बनी योजना का परिणाम थी । नेता जी को याद है जब इक दिन अपने दल के प्रधान के घर से उनके तलवे चाट वापिस लौट रहे थे सोचते हुए चिंतित थे कुर्सी मिलेगी या नहीं मिलेगी तभी इक छोटा सा पिल्ला उनके पांवों से लिपट गया था तब नेता जी को उसकी हालत अपने जैसी लगी थी और उसे गोदी में उठाकर चूमने लगे तभी शुभ समाचार मिला था प्रधान जी ने उनकी विनती स्वीकार कर ली थी । नेता जी को एहसास हुआ था उनका कोई जन्म जन्मांतर का रिश्ता है कुत्तों से जैसे और ये उनका निकट संबंधी रहा होगा । नेता जी ने कुत्तों को हमेशा महत्व दिया है कई योजनाएं उनकी खातिर बनाई गई हैं लोग उनके इस लगाव से परिचित हैं राज्य में किसी कुत्ते पर हिंसक करवाई कोई नहीं कर सकता है । 
 
नेता जी के प्रिय कुत्ते का जन्म दिन बड़ी शान से मनाया गया हर महमान से उस के कुत्ते का हाल चाल पूछना ज़रूरी था किसी के कुत्ते को कोई परेशानी हो तो नेता जी हमेशा तैयार हैं कहते थे । इंसानों से अधिक कुत्तों के लिए खाने पीने मनोरंजन नाचने गाने का प्रबंध किया गया । कुत्तों का खेल और प्रतियोगिता आयोजित की गई सब लाजवाब था । उपहारों का परस्पर लेन देन हुआ और सभी अपने अपने कुत्तों के साथ ख़ुशी ख़ुशी विदा हुए । लेकिन जैसे ही विपक्षी दल के नेता का ड्राईवर उनके कुत्ते को ले जाने लगा नेता जी का कुत्ता उस ड्राईवर पर भौंकने लगा और विपक्षी दल के नेता जो खुद नहीं आये थे उनकी कुतिया को नेता जी के कुत्ते ने जाने नहीं दिया रास्ता रोक खड़ा रहा । नेता जी को माजरा समझ आया तो उन्होंने ड्राईवर को समझा कर वापस भेज दिया , विरोधी दल के नेता को पता चला तो उन्होंने ब्यान जारी कर इसे अपहरण की घटना घोषित कर शिकयत दर्ज करवाने की बात कही । लेकिन नेता जी ने शीघ्र ही विपक्षी दल के नेता को फोन कर निवेदन किया कि इसे राजनीति से अलग रख कर संवेदनशीलता पूर्वक समझना चाहिए । नेता जी ने कहा वो खुद आकर उनसे उनकी कुतिया का रिश्ता मांगेंगे और उनकी सहमति से ही गठबंधन संभव होगा । 
 
अगले दिन सुबह ही नेता जी अपने कुत्ते और विपक्षी दल के नेता की कुतिया दोनों को साथ लेकर विरोधी नेता जी के आवास पर गए और दोनों को आशीर्वाद देने का अनुरोध किया । विपक्षी दल के नेता ने अपनी राजनीति की शतरंजी चाल चल ही दी ऐसा कह कर कि उनके कुत्ते को यहां रहना होगा कुतिया से नाता रखना है अगर । नेता जी ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया और गठबंधन की रस्म निभाई गई और सार्वजनिक घोषणा की दोनों ने मिलकर कि विचार अलग अलग है लेकिन प्रेम का समर्थन हम दोनों ही करते हैं कभी प्यार करने वालों में अड़चन नहीं बन सकते हैं । इस के साथ नेता जी ने ये भी कहा कि उनका अनुरोध है कि समधी जी इक बात पर फिर से विचार कर निर्णय करें कि दोनों के कुत्ते कुतिया की ख़ुशी और अच्छा भविष्य किस घर में रहने से बेहतर होगा । सोच विचार करने के बाद विपक्षी दल के नेता मान गए हैं कि शासक राजनेता के घर पर रहना कुत्तों की भलाई के लिए अनिवार्य है । कुछ लोग इस के पीछे कुछ और ही कहानी समझा रहे हैं करोड़ों का दहेज़ का आदान प्रदान से लेकर दो दिलों नहीं दलों में तालमेल की बात लगती है । अब चाहे जो भी हो नेता जी के कुत्ते की निपुणता समझदारी ने उनको फिर कायल कर दिया है उनका कुत्ता उनकी राजनीति का आईना है ।  कुत्तों का प्रेम विवाह अनूठी घटना है और पहली बार प्रेम विवाह सरकार की मज़बूती और स्थाई होने का आधार बन गया है ।  कुत्ते कुतिया के घठबंधन की तस्वीरें चर्चा का विषय हैं क्योंकि एक जिधर देख रहा दूजा उधर नहीं किसी और तरफ देख रहा है अर्थात दोनों की नज़र सभी पर है कि राजनीती की शुरुआत लगती है ।
 
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सितंबर 16, 2024

POST : 1889 सरकती जाये है नक़ाब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        सरकती जाये है नक़ाब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

वो जिनकी वफ़ा की कसम खाते थे ज़माने वाले बेवफ़ा सनम निकले , कहते हैं इंसान की असलियत जब तक पर्दे में ढकी रहती है सभी भले लगते हैं राज़ खुलने लगे तो सब एक जैसे हैं । बार बार देखा है जो किसी की बेईमानी की बड़ी बुराई किया करते थे वक़्त बदला तो उनकी ईमानदारी की छवि बिगड़ी तो ऐसे कि लोग अपनी सोच पर शर्मिंदा थे । सत्ता की सियासत के हम्माम में सभी नंगे होते हैं चाहे जितना छुपाते रहें कभी न कभी शराफ़त की नक़ाब उतरती ज़रूर है । उस के बाद लाख सफ़ाई देते रहें यकीन नहीं करता कोई भी ये अजीब बात है जिस जिस को लेकर धारणा बनाई जाती है कि अमुक नेता कभी झूठ नहीं बोलेगा छल कपट धोखा हेराफ़ेरी नहीं कर सकता उसी की वास्तविकता सामने आती है तो हैरान होते हैं जब प्रमाण सामने आने पर भी उसे शर्म नहीं आती बल्कि ऊंची आवाज़ में आरोप क्या प्रमाण तक को झूठा बताता है । शराफ़त के पुतले समझे जाते लोग बदमाशी भी करते हैं तो दावे के साथ ये उनका कमाल है दाल में काला नहीं अब काली पूरी दाल है ऐसे शरीफ़ बदमाशों के हाथ सच्चाई की मशाल है । सत्ता की टकसाल का यही हाल है हर इक शासक बन गया ऐसा दलाल है जिस को सरकारी धन लगता ससुराल का माल है बुनता ऐसा जाल है कि जनता हुई बेहाल है । 
 
जो वास्तव में शरीफ़ होते हैं शराफ़त का बोझ जीवन भर ढोते हैं शरीफ़ कहलाना अच्छा है शराफ़त से रहना खराब है । शराफ़त अली को शराफ़त ने मारा अपने सुना होगा , इक नवाज़ शरीफ़ थे क्या बताएं कैसे और कितने शरीफ़ थे दोस्त थे मगर रक़ीब थे जितना फ़ासला था लगते उतने करीब थे आदमी अजीब थे । छोड़ो उनकी नहीं अपने देश समाज की बात करते हैं शराफ़त का चोला पहन कर क्या क्या करते हैं पकड़े जाएं तो सच से मुकरते हैं । अपने ही घर में खुद अपने ही दल की महिला की पिटाई करवाते हैं झूठ को सच और सच को झूठ बनाते हैं दुनिया को क्या समझाते हैं । हमारे देश में राजनेताओं की शराफ़त का डंका बजता है हर घोटालेबाज़ निर्दोष साबित होता है हर क़ातिल मासूम दिखाई देता है मगरमच्छ के आंसू बहाकर इंसाफ़ को डुबोता है । सबसे अधिक अपराधी जिस दल के सांसद हैं वही न्याय धर्म और सुरक्षा देने का जनता को भरोसा दिलवाता है कौन तेरी गली से ज़िंदा बचकर कभी आता है जो भी इंसाफ़ की गुहार लगाता है बेमौत मर जाता है । उनकी इंसानियत का अलग बही खाता है जो देता है बस वही पाता है अपनों को बचाना उनको आता है । देश की राजनीति में आजकल चला नया दौर है हम सभी एक जैसे हैं लेकिन सवाल यही है कि कौन कितना बड़ा चोर है । 
 
अमेरिका की शराफ़त कमाल की चीज़ है जिस देश की सहायता करते हैं उसे अपने जाल में ऐसा उलझाते हैं कि उन पर विश्वास करने वाले हमेशा पछताते हैं । विश्व बैंक आईएमएफ़ सभी को उंगलियों पर नचाते हैं लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर अपना कारोबार चलाते हैं । हमारी शराफ़त की पुरानी कहानी है काने राजा की अंधी महारानी है अंधी पीसे कुत्ता खाये दुनिया जानी पहचानी है । सरकार की खूबसूरत इक तस्वीर है जनता के पांव में बंधी हुई कितनी जंज़ीर है नेताओं अधिकारियों उद्योगपतियों की खुली तकदीर है जो जितना ज़ालिम है उतना कहलाता शूरवीर है । हमारे देश में भिखारी मालामाल हैं मेहनतकश लोग भूखे और बेहाल हैं सरकार जनता की सुविधाओं की ख़ातिर धन नहीं है समझाती है बाहर किसी देश की सहायता कर अपना गौरव बढ़ाती है । देशवासियों को बांटते हैं लड़वाते हैं चुनाव जीतने की खातिर दंगे फ़साद करवाते हैं मगर किसी अन्य देश में जाकर दो देशों में समझौता करवाने को चर्चा करवा शांतिदूत कहलाते हैं । अब हमारे देश में शराफ़त और ईमानदारी की कोई राजनीति संभव ही नहीं है सब एक थाली के चट्टे बट्टे हैं शरीफ़ नाम है इसलिए बड़े अच्छे हैं झूठे हैं लगते सच्चे है अभी आम कच्चे हैं । शराफ़त की नक़ाब धीरे धीरे सरकती जाती है उतरने नहीं दी जाती लोकतंत्र की लाज बचाने को थोड़ा घूंघट रखते हैं दिखाई भी देता है कुछ थोड़ा छुपा भी रहता है । कैसा पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं ।   

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POST : 1888 कुर्सी के अजब खेल ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

               कुर्सी के अजब खेल ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

सब कुछ बदलता है बदलना प्रकृति का नियम है मौसम तो बदलते रहते हैं कुछ लोग मौसम को देख बदलते हैं । राजनीति इतनी बदल चुकी है कि उस में नीति विलुप्त हो गई है राजनेता हवा का रुख देख जिधर की हवा चलती है उधर चल पड़ते हैं । देश की राज्य की राजनीति में कुछ लोग इस का आंकलन करने में माहिर होते हैं किस गठबंधन से सत्ता में भागीदारी मिल सकती है और हर बार शासक दल के संग साथी बने दिखाई देते हैं । नौकरी कारोबार में अथवा राजनीति के बाज़ार में उनको सफ़लता हमेशा मिलती है समाज में जिनको लोग निठल्ले समझते हैं चाटुकारिता उनको वरदान दिलवाती है । एकरूपता से लोग बोर होने लगते हैं अभी कुछ दिन पहले कॉमेडी पसंद थी अब उबाऊ लगती है कितनी बार वही सब देख सुनकर हंसी आएगी आखिर तो उकताहट होने लगती है । सिनेमा जगत इतना बदला है कि उसकी जगमगाहट आजकल घोर अंधकार को बढ़ावा देने लगी है । धार्मिक फ़िल्में टीवी सीरियल कितना शानदार लगते थे आजकल उनका बंटाधार कर समाज को गुमराह किया जाने लगा है मगर लोग दर्शक समझने लगे हैं चैनल वाले सिर्फ भावनाओं को अपने आर्थिक फायदे को इस्तेमाल करना चाहते हैं उनको आस्था धर्म से कोई सरोकार नहीं है । 
 
देश आज़ाद हुआ राजनीति भी श्वेत श्याम फिल्मों की तरह रंगीन होती गई राजनैतिक दलों का चलन बदलता गया और धीरे धीरे पर्दे खुलते खुलते लोकलाज से किनारा कर लिया सभी ने सत्ता की चाहत ने सभी को अंधा कर दिया । लोकतंत्र को अपनी सुविधा से मनचाहे परिधान पहनाये गए समाजवाद पूंजीवाद से शुरू कर गरीबी हटाओ से परिवारवाद तक का सफर जारी है । बस एक बार जिसे सत्ता मिली जनता जिसके झूठे वादों पर भरोसा करती रही वो सभी मनमानी करते रहे और खुद को मसीहा समझते रहे । शासक बनकर किसी ने देश की जनता की समस्याओं का समाधान करने का कोई प्रयास नहीं किया और केवल अपना घर भरने और लूट करने पर ध्यान केंद्रित रहा । लोग बदहाल बर्बाद होते गए और राजनेता शाहंशाह और अमीर बनते गए जिस से सरकारी धन तथाकथित विकास की आड़ में उनकी तिजोरियां भरता रहा । चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट तक जानते हुए भी अनजान बन कर चुनावी राजनीति में धन और बाहुबल का दुरूपयोग होते देख खामोश रहे । लोकतंत्र किसी काल कोठरी में कैद होकर अंतिम सांसे गिन रहा है जैसे रोगी आईसीयू में वेंटीलेटर पर ज़िंदा हो । 
 
आजकल राजनीति आशिक़ों का कभी रूठने कभी मान जाने का खेल बन गया है । किसी को किसी पर भरोसा नहीं हर कोई इस हाथ दे उस हाथ ले की बात करता है । अपना बेगाना बनते देर नहीं लगती और अजनबी अनजान से मधुर संबंध बना लेते हैं आवश्यकता पड़ने पर बहुमत साबित करने को । मर्यादा की बात और आदर्शों की बात नैतकता की बात आधुनिक राजनीति के शब्दकोश में ये सभी उपयोगी नहीं हैं । अब राजनीति में सभी दोस्ती करते हैं दुश्मनी से बढ़कर ख़ंजर पीठ में घोप सकते हैं गले लगाकर । राजनीति किसी गंदगी कीचड़ से भरी नदिया जैसी बदबूदार है सभी कहते हैं लेकिन सभी अवसर मिलते ही डुबकी लगाने को तैयार हैं ।  किसी वैश्या की तरह बदनाम होकर भी जब करीब आती है तो आलिंगन करने में साधु सन्यासी से धनवान और शासकीय पद पर रहा अधिकारी न्यायधीश चला आता है संबंध बनाने गंदी राजनीति से दिल बचाना आसान नहीं है । नर्तकी के कोठे की रौनक चमक दमक ने सभी को पागल बना रखा है । 
 
  Hate Speech Case; Supreme Court On Atal Bihari Vajpayee Jawaharlal Nehru |  सुप्रीम कोर्ट बोला-धर्म के साथ राजनीति लोकतंत्र के लिए खतरा: कहा- जब नेता  दोनों को अलग कर देंगे ...

सितंबर 15, 2024

POST : 1887 जो तुमको हो पसंद ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                 जो तुमको हो पसंद ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

मायके जाने से ठीक पहले श्रीमती जी ने घोषणा कर दी कि भविष्य में घर का गृहमंत्रालय का पद ही नहीं प्रधानमंत्री का पद भी उनके पास रहेगा । उनको प्रशासन चलाने में राष्ट्रपति की कोई आवश्यकता कभी स्वीकार नहीं थी इसलिए उस व्यवस्था को पहले ही अस्वीकृत कर दिया था । मुमकिन है ये योजना उन्होंने पहले से विचारधीन रखी हो और जैसे ही हमने उनको शादी के बाद जो तुमको हो पसंद गीत सुनाया था वो इरादा पक्का बन गया हो । लेकिन उनको कोई जल्दी नहीं थी कुछ समय मुझे अपने पति को निर्णय लेने देना इक रणनीति थी । धीरे धीरे उनके फैसले प्रभावी होने लगे थे बाद में मुझे जानकारी दी जाने लगी जिसे मैंने समझा की मुझे बोझ से राहत देने का प्रयास किया जा रहा है । ठीक उसी समय जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता अपने हाथ ले कर संविधान को दरकिनार कर तानाशाही घोषित की थी । लेकिन श्रीमती जी ने कभी भी अपनी प्रणाली को तानाशाही नहीं माना , उनका मत है कि वो सही हैं उनका हर फैसला उचित होता है कोई तानशाही नहीं उनको सत्ता का कोई मोह नहीं है । पत्नियां कभी गलत नहीं होती हैं पति हमेशा नासमझ और नादान होते हैं महिला संगठन हमेशा इस पर पूर्णतया सहमत होते हैं । हमारे घर में अघोषित तानशाही का मुखौटा अब उतर गया है पति परमेश्वर का भ्रम पहले ही टूट चुका था । हमने कभी किसी पड़ोसी को अपने घरेलू लोकतंत्र में दख़ल देने की अनुमति नहीं दी है जैसे अमेरिका जैसे देश मानवाधिकार की बात के बहाने आपस में देशों में लड़ाई और शांतिवार्ता साथ साथ चलवाने की कोशिश करते हैं । 
 
महिला मुक्ति मोर्चा को इस की सूचना जाने कैसे मिल गई जबकि हमने निर्धारित किया था कि पत्नी के मायके और ससुराल अर्थात मेरे परिवार को इसकी जानकारी नहीं होने देंगें दोनों ही । महिला संगठन आगामी बैठक हमारे निवास पर आयोजित करने वाले हैं श्रीमती जी बता रही थी फोन पर ।  इतना तो हम भी जानते थे कि ये इक दिन होना ही है मगर इतनी जल्दी अचानक होना हैरान कर रहा था । आखिर मायके से लौटते ही हम महिला संघठन की बैठक के आयोजक और प्रयोजक बन चुके थे । सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से श्रीमती जी का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया और थोड़ा नानुकर नखरे कर आग्रह स्वीकार कर लिया गया । संसद में महिला आरक्षण की संभावना बढ़ गई लगती है , हमको अपना भविष्य साफ दिखाई देने लगा है । हमारा सवभाव समझौतावादी रहा है कोई भी उपाय हमको खोये हुए अधिकार दिलवा नहीं सकता है । कुछ और समझते हों या नहीं इतना जानते हैं कि घर को संसद या विधानसभा जैसा नहीं बनने देना है क्योंकि तब सत्ता की खींचातानी में देश की तरह घर तहस नहस होना परिणीति होगा । जिस बात को यूं ही उनको खुश करने को कह दिया था ' जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे , तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे ' श्रीमती जी ने उसे दिल की आरज़ू बनाकर सच साबित कर दिया है । अब यही करना हमारी नियति बन गया है । 
 
 
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सितंबर 14, 2024

POST : 1886 बात करने का सलीका ( संवाद - विवाद ) डॉ लोक सेतिया

  बात करने का सलीका  ( संवाद - विवाद ) डॉ लोक सेतिया

भाषा कोई भी हो उस की शुद्धता आवश्यक है , जिस तरह से आजकल वार्तालाप से लेकर तमाम अन्य स्थानों पर मिलावटी भाषा का इस्तेमाल किया जाने लगा है हमारी दरिद्रता को दर्शाता है । लेकिन उस से भी अधिक चिंता की बात तब लगती है जब अनुचित शब्दों अथवा बोलने में अनावश्यक रूप से अपशब्दों का उपयोग किया जाता है । सार्वजनिक मंच पर सभाओं में एवं टेलीविज़न सिनेमा में जिस भाषा का उपयोग करने लगे हैं सुन कर लगता है जैसे समाज को गंदगी और झूठ परोसा जाता है । क्या हम अच्छे शब्दों का उपयोग कर सही ढंग से अपनी बात अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकते हैं , तार्किक ढंग से बात समझाई जा सकती है फिर क्यों बात करते हुए अपनी वाणी पर संयम नहीं रख पाते और ऊंची आवाज़ में या कड़वे शब्दों का उपयोग कर किसी को मानसिक रूप से आहत करने का कार्य करते हैं । विचित्र बात है वही व्यक्ति जिस को पसंद करता खुश करना चाहता उस से प्यार से मधुर स्वर और शालीन शब्दों में संवाद करता है लेकिन जिस को पसंद नहीं करता उस से अलग और गलत तरीके से बात कर दर्शाता है कि मन में उस के लिए पहले से कोई धारणा बनाई हुई है । किसी की खराब बात को भी अनदेखा करते हैं तो किसी की भली बात भी हमको भाती नहीं है । उच्च शिक्षा ही नहीं उम्र का अनुभव भी हमको हमेशा उचित तौर तरीके से अपनी भावनाओं को व्यक्त करना नहीं सिखला सका तो सोचना चाहिए कारण क्या है । किसी और में बुराइयां देखना आसान है खुद अपने आचरण को समझना परखना कठिन है , आप कितने अच्छे हैं सही हैं तब भी अगर आप का बात करने का तरीका और शब्दों का सभ्यतापूवक उपयोग नहीं है तो उसे बदलना आवश्यक है । अपशब्दों के तीर जब किसी को घायल करते हैं तो उनसे हुए ज़ख़्म कभी आसानी से भरते नहीं हैं । 
 
आजकल समाज में बीमार मानसिकता बढ़ती जा रही है , स्वार्थ की खातिर चाटुकारिता और अपनी नापसंद की बात पर बिना समझे क्रोधित होना दर्शाता है कि आप कितने खोखले किरदार वाले हैं । दोस्ती चाहे कोई संबंध कितना भी करीबी हो भाषा संयमित रखना ज़रूरी है , कुछ लोग आदी होते हैं हर बात में गाली गलौच की भाषा उपयोग करने के बेशक कितने शिक्षित और उच्च पद पर कार्यरत हों । आपसी वाद विवाद में भी शब्दों का प्रयोग सोच समझ कर करना चाहिए इधर इसी कारण आपसी संबंध और मतभेद ख़त्म नहीं होते बल्कि वार्तालाप से और कटुता पैदा होती है । बड़े छोटे होने से आपको अधिकार नहीं मिलता मनचाहे ढंग से किसी को अपमानित करने का । संसद विधानसभाओं में भाषा और शिष्टाचार की मर्यादा का उलंघन बहुत अधिक होने लगा है शायद आपराधिक छवि के लोगों के संसद विधानसभाओं में चुने जाने से भी ऐसा होता है लेकिन बहुत बार समाज में सभ्य और शरीफ़ समझे जाते लोग भी आवेश में विरोध करते हुए आपा खो बैठते हैं ।  हिंदी दिवस मनाते समय भाषा को बढ़ावा देने तक ही चर्चा नहीं की जानी चाहिए अपितु संवाद चाहे वाद विवाद हो इक सीमा निर्धारित की जानी चाहिए शब्दों को सोच समझ कर सावधानी से उपयोग करना चाहिए । मैं अधिकांश असहज महसूस करता हूं जब कोई बातचीत में शाब्दिक सभ्यता की मर्यादा को लांघता है , कुछ ऐसा ही इक काफी पुरानी ग़ज़ल में कहना चाहा है जो अभी तक डायरी में लिखी हुई थी संशोधित करना शेष था आज सुधारा है नीचे पढ़ सकते हैं ।
 

बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

हर गली हर बस्ती अपना घर लगता है  
बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है । 

सारे आलम में पसरा हुआ है सन्नाटा
सहमा -सहमा सा हर इक बशर लगता है । 
 
थरथर्राहट सी होने लगी धरती में 
गिर गया आंधी में वो शजर लगता है । 
 
ओट लेकर छिपता फिर रहा है परिंदा 
ले गया है कोई काट पर लगता है । 
 
आजकल हमसे कोई बहुत रूठा है 
हम मना लेंगे इक दिन मगर लगता है । 
 
कब तलक दुनिया करती इबादत आखिर 
लग गया उठने हर एक सर लगता है ।
 
रात दिन जो रहता था खुला ' तनहा ' अब 
हो गया उस घर का बंद दर लगता है ।   
 
 हर एक बात पे कहते हो तुम के 'तू क्या है - Poetry Hub

POST : 1885 बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

  बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

हर गली हर बस्ती अपना घर लगता है  
बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है । 

सारे आलम में पसरा हुआ है सन्नाटा
सहमा -सहमा सा हर इक बशर लगता है । 
 
थरथर्राहट सी होने लगी धरती में 
गिर गया आंधी में वो शजर लगता है । 
 
ओट लेकर छिपता फिर रहा है परिंदा 
ले गया है कोई काट पर लगता है । 
 
आजकल हमसे कोई बहुत रूठा है 
हम मना लेंगे इक दिन मगर लगता है । 
 
कब तलक दुनिया करती इबादत आखिर 
लग गया उठने हर एक सर लगता है ।
 
रात दिन जो रहता था खुला ' तनहा ' अब 
हो गया उस घर का बंद दर लगता है ।   



सितंबर 13, 2024

POST : 1884 उनकी प्यास उनका रोज़गार ( राजनीतिक कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

उनकी प्यास उनका रोज़गार ( राजनीतिक कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया  

हमारा भारत देश महान है ये हमेशा से प्रमाणिक है आपको यकीन करना चाहिए शंका नहीं इस देश के तमाम राजनेता और सरकारी कर्मचारी अधिकारी ईमानदार हैं जनता के सेवक हैं । किसी ने भी अपने कर्तव्य को अनदेखा नहीं किया है कोई रिश्वत कोई घोटाला कोई जालसाज़ी किसी ने कभी की नहीं है झूठे साबित हुए हैं उन पर लगाए तमाम आरोप । उनकी निस्वार्थ सेवा से देश आगे बढ़ रहा है लोकतंत्र मज़बूत होता गया है गरीबी शिक्षा सुविधाएं स्वास्थ्य सेवाएं हर किसी को उपलब्ध करवाई जा चुकी हैं । आपको किसी भी अख़बार किसी भी टीवी चैनल पर ऐसी खबरें सुनाई दिखाई नहीं देती हैं । राजनेताओं ने अपना सभी कुछ समाज को अर्पित कर दिया है खुद या परिवार के सदस्यों के लिए किसी को कुछ भी नहीं चाहिए लाभ का कोई पद नहीं बस सिर्फ जनसेवा देशसेवा का अवसर पाने की चाहत है । इन सभी ने मिलकर देश में सभी को समान अधिकार न्याय और सुरक्षा उपलब्ध करवा दी है , सत्ता पाने को बिना जल की मछली की तरह ये नहीं तड़पते हैं । लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर कर इन्होने परिवारवाद जातिवाद भाईचारा निभाने को कोई भी पक्षपात नहीं किया है । अपने बेटे बेटी दामाद पत्नी भाई भतीजे को सांसद विधायक मंत्री बनवाने की कोई कोशिश नहीं है क्योंकि ऐसा लोकतंत्र को खोखला करना है जानते हैं । अमरबेल की तरह सत्ता को जकड़ कर देश समाज को मिटाने का अपराध नहीं करते हैं । जाने कौन लोग हैं जिन्होंने सागर की तरह सभी नदियों का जल पी लिया है तब भी उनकी प्यास बढ़ती जा रही है । 
 
जब सभी कुछ मिलावटी है हवा प्रदूषित है जल स्वच्छ नहीं रहा ऐसे में किसी राज्य की साहित्य अकादमी ने सरकार से साहित्य को बढ़ावा और जागृति को करोड़ों रूपये स्वीकृति लेकर जल चेतना यात्रा निकाली है । पानी पर लिखी रचनाओं की बाढ़ सी आई इक विशेषांक निकाला गया जिस में शामिल रचनाओं को पुरुस्कार ईनाम इतियादी वितरित करने को सभाएं आयोजित कर पानी तक की प्यास बुझाई गई । कुछ पीने वालों ने शराब बिना कुछ मिलाये बोतल से पीने की शुरुआत कर कीर्तिमान स्थापित किया है । राज्यों में पानी के बटवारे को लेकर सियासी जंग का खेल कभी खत्म नहीं होने वाला ।  पानी का कोई रंग नहीं होता लेकिन रंग में भंग डालने वाले किसी को छोड़ते नहीं हैं । फ़िल्मी कलाकार पानी का महत्व समझा रहे हैं एयरकंडीशनर लगवा पानी बचा रहे हैं , दो बूंद पानी नहीं तो ज़िंदगानी नहीं गीत सुना रहे हैं । तारिकाओं को झरने तले नहलाते दिखला कोई और प्यास बढ़ा आग लगा रहे हैं । महानगर वाले स्विमिंग पूल में तैराकी सीख पानी का तापमान घटा बढ़ा स्नान का लुत्फ़ उठा रहे हैं । 
 
  शासक आधुनिक तौर तरीके आज़मा रहे हैं जनता को स्मार्ट फोन से जो चाहो मिलता है बता कर उलझा रहे हैं । रोज़ कितनी योजनाएं घोषित कर रहम खा रहे करम फरमा रहे हैं सब चमकती रेत से प्यास अपनी बुझा रहे हैं । लोग मुफ्त में सभी कुछ सरकारी ऐप्पस से पाकर घबरा रहे हैं आसमान छूने की चाहत में ज़मीन अपनी गंवाकर पछता रहे हैं । राजनीति सभी को समझा रही है शर्म इस बात की आती है चुनाव लड़ने की चाह करोड़ों की अधूरी रह जाती है । राजनीति अजब कारोबार है गली गली गांव गांव शहर शहर इसका विस्तार है दस को अवसर मिलता नब्बे बेरोज़गार है । साधारण जनता को अभी चाहिए लंबा सदियों तक  इंतिज़ार ही इंतिज़ार है चीखना चिल्लाना बेकार है नेताओं का खाली रहना रहना दो धारी तलवार है । देखा है हर राजनैतिक दल का खुला शोरूम है , बंद दरवाज़े में खैरात मिलती है कली दिल की खिलती है ज़िंदगी को इस जगह मोहलत नहीं मिलती है । इक सौ चालीस करोड़ जनता लुटने को तैयार है उसका नहीं कोई हिसाब नहीं लेकिन लूटने का अधिकार बहुत थोड़े नेताओं अधिकारियों को हासिल है । जनता को भीख मिलना बड़ी तकदीर की बात है सूखा मचाती बरसात है , नेताओं में दूल्हा है संग संग बारात है ।
 
राजनीति जैसे झुलसता हुआ रेगिस्तान है तिनके तिनके में छुपा हुआ तूफ़ान है । हर राजनेता की किसी तोते में रहती जान है जब तलक जान है जहान है अधूरा सभी का रहता अरमान है । सत्ता की हवेली दुनिया का सबसे शानदार श्मशान है ज़िंदा रहता खुद मरता है कितना नादान इंसान है । राजनीति की अजीब इक कहानी है मातम भी मनाना है बस्ती भी जलानी है पानी को आग लगाकर तस्वीर सजानी है ।
 
 
 
 Panaghat in 3 bighas and Agore in 1200 bighas, glass-like water appears on  the floor on the border of two villages. | धोरों के बीच बसे गांवाें से  तस्वीर: दो गांवों की
 

सितंबर 12, 2024

POST : 1883 अजनबी बन जाएं हम दोनों ( व्यंग्य- कथा ) डॉ लोक सेतिया

   अजनबी बन जाएं हम दोनों ( व्यंग्य- कथा ) डॉ लोक सेतिया  

सदियां पुराने दो पेड़ हैं इस वन में , इक परंपरा है नाकाम आशिक़ अपने प्यार को पाने में असफल होकर यहां आते हैं अपनी व्यथा सुनाते हैं । मान्यता है कि ऐसा करने से अगर दोनों का प्यार सच्चा है तो उनका मिलन अवश्य हो जाता है । जिस पेड़ पर लाल रंग के फूल खिले हैं प्रेमिकाओं की बात सुनता है और पीले फूल जिस पर खिले हैं वो प्रेमियों की बात सुनता समझता है । दोनों पेड़ अपने पास आये प्रेमी प्रेमिका की बात को सुनते हैं और अपना आशीर्वाद देने को उन पर इक फूल गिराते हैं जिसे प्यार की सच्चाई स्वीकार करने का प्रमाण समझा जाता है । अकेले में दोनों पेड़ अपनी शाखाओं से आपस में लिपटते हैं और लगता है कुछ वार्तालाप करते हैं शायद जो दिन भर कोई आकर उनको बता गया है उस की बात करते हैं । दूर दूर तक इन पेड़ों को लेकर कहानियां प्रचलित हैं उन सभी ने इक बात समान बताई जाती है कि ये कभी दो प्रेमी थे जिनका मिलन नहीं हुआ किसी पिछले जन्म में और पुनर्जन्म लेकर ये पेड़ बनकर इस वन में साथ साथ रहने लगे कुछ फ़ासला रख कर । कहते हैं ये भी इक सबक है कि प्यार हमेशा बना रहे इस के लिए इन की तरह थोड़ा फ़ासला रखना चाहिए , आपस में बात कर सकें देख सकें मगर इक दायरा रहे जकड़ना नहीं चाहिए इक दूजे को कभी भी । प्यार ऐसा एहसास है जिसे महसूस किया जाता है परखने की ज़रूरत नहीं होती है । प्यार को कभी किसी भी तराज़ू पर तोला नहीं जा सकता कि कौन किसी से कितना प्यार करता है । 
 
आज इक लड़की आई है पेड़ से लिपट कर अपना दर्द बताने लगी है , तुझसे लिपट कर लगता है अपनी सब से प्यारी सखी से मिल रही हूं , जैसे वो मुझे उदास देख कितने सवाल पूछ रही हो । तुम्हारी आवाज़ नहीं सुनाई देती मगर मेरे मन में अपने आप सवाल आने लगे हैं शायद उसकी तरह तुम भी मेरा दुःख दर्द समझ रहे हो मैं कुछ भी छिपाना नहीं चाहती सब बताउंगी । मेरा नाम अंजलि है कॉलेज में पढ़ती हूं हम लड़कियां महिलाएं सजती संवरती हैं बनाव श्रृंगार करती हैं सुंदर वस्त्र पहनती हैं और इक सपना देखती हैं  कि कोई दिल की गहराई से चाहने वाला कभी मिले और अपना बना कर सब उसी पर न्यौछावर कर दें । माना नारी को सभी को खूबसूरत बनाया है मगर शारीरिक नहीं भीतरी सुंदरता किसी किसी में होती है , हर लड़की शायद लड़का भी ढूंढता है उसको जो उसके सुंदर मन को देख सके और प्यार करे । इसलिए जब कोई हमको वह बात कहता है जिसे सुनने को हम व्याकुल हैं तब हमारा दिल उड़ने लगता है ऊंचाइयों को छूने को क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है वही दुनिया में इक है जो हमारे लिए और हम उसी के लिए हैं । प्यार करने वालों के पास वही कुछ तौर तरीके होते हैं चांद तारे तोड़ लाना बिना आपके नहीं जीना जैसी बातें कहना जो काल्पनिक हैं जानते हुए भी अंतर्मन को छू जाती हैं । 
 
मुझे भी साहिल ने कहा था और मुझे उस पर विश्वास हो गया था , मैंने जैसे अपनी ज़िंदगी अपनी दुनिया सिर्फ साहिल तक सिमित कर ली थी , उसे पाकर कुछ भी और पाना बाकी नहीं रह गया था । हम सुनहरे सपनों की अपनी दुनिया में सातवें आसमान पर खुश थे । आपस में एक दूसरे को इक साधारण चांदी का छल्ला देते तो लगता ज़माने की सबसे कीमती चीज़ है । अचानक दो साल बाद साहिल बदला बदला लगने लगा है , वो विवाहित जीवन की ज़रूरतों परेशानियों पर संवाद करता है और घर बजट की चिंता पर विचार करने लगा है ।मेरा मन शादी करने से घबराने लगा है । खुले गगन में आज़ाद पंछी सी चिड़िया को पिंजरे का मंज़र सताने लगा है । साहिल कहता है विवाह ठीक से सोच समझकर करना चाहिए केवल प्यार से ज़िंदगी नहीं चलती है ।लगता है उस के प्यार में वो  पहले जैसी कशिश नहीं रही , इक ख़्वाब टूटता महसूस होने लगा है । उसकी प्रेमिका होना चाहती हूं जैसी पत्नी उसकी ज़रूरत है मेरे लिए बन पाना कठिन क्या नामुमकिन लगता है । मैंने सोचा है तो लगता है हमारा रिश्ता यहीं तक शानदार है विवाहित संबंध बनाने से प्यार बचेगा नहीं उसे जैसी संगिनी चाहिए कोई और हो सकती है । तभी इक फूल अंजलि की झोली में गिरा था और उसका अर्थ यही समझ आया था कि अंजलि का विचार सही है । अंजलि मन में कितनी उलझनें लिए आई थी मगर लौट रही थी शांत हो कर उचित निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंच कर । 

लड़की के चले जाने के बाद दोनों पेड़ उसी की चर्चा करने लगे थे , लाल फूल वाला पेड़ कह रहा था कि आजकल की युवती युवक को सालों लगते हैं समझने में प्रेमी प्रेमिका में जो अच्छा लगता है पति पत्नी में नहीं स्वीकार कर पाते हैं । उनको पति चाहिए जिस के पास ऐशो आराम सुख सुविधा और खूबसूरत आमदनी का साधन उपलब्ध हो कोई आर्थिक भौतिक कमी नहीं होनी चाहिए , बेशक प्यार की करने की फुर्सत तक नहीं मिले । शायद इस लड़की के माता पिता ने कोई ऐसा लड़का ढूंढ लिया है जिस से शादी करने को ये हामी भर देगी और प्रेमी से किसी अगले जन्म में मिलने की बात कह भूलने भुलाने का वादा करेगी , उस लड़के की सोच क्या है कौन जाने । 

अगले दिन सुबह ही उस लड़की अंजलि का प्रेमी साहिल पीले फूलों  वाले पेड़ के पास आया था । बेहद उदास था असमंजस में लग रहा था दिल कुछ चाहता था दिमाग़ कुछ अलग समझाना चाहता था । दुविधा में कोई निर्णय लेना कठिन होता है पेड़ से मुखतिब हो बोला था दोस्त तुम ही बताओ मुझसे कहां भूल चूक हुई जो मेरी प्रेमिका ने कल मुझे प्रेम संबंध को तोड़ने की बात कही है । उसको खुश रखने को क्या क्या नहीं किया अभी तक लेकिन पढ़ाई खत्म कर नौकरी मिली तो अलग शहर में रहने पर तजुर्बा हुआ कि वेतन में गुज़ारा करना है तो खर्चों में कटौती करना ज़रूरी होगा । माता पिता दोस्त कब तक सहयोग कर सकते हैं प्रेमिका को जिस शानदार आरामदायक ज़िंदगी की चाहत है उसे पूरा करने में खुद को भुलाना होगा जीना दुश्वार हो सकता है । ज़रूरतें बढ़ती जाती हैं महीने के आखिर में क्रेडिट कार्ड की सीमा समाप्त हो जाती है , प्रेमिका को समझाना कठिन है और शादी के बाद पत्नी से नहीं कहा जा सकता कि कोई चिराग़ नहीं होता जो मांगने पर असंभव को भी संभव करे । अंजलि प्यार भरे सपनों की बात सुनना चाहती है समझना नहीं चाहती कि जीवन सपना नहीं कठोर वास्तविकता है । 

          आप से दोस्त की तरह सच बता रहा हूं कि मुझे नहीं मालूम ज़िंदगी में प्यार महत्वपूर्ण है या फिर व्यावहारिकता से निर्णय लेना चाहिए । मुझे बड़ा भाई समझाता है कि अपने साथ दफ़्तर में नौकरी करने लड़की से संबंध बना लेना चाहिए उसे लगता है वो भी ऐसा चाहती है तभी मुझ से अपनी ज़िंदगी की बातें करती है । दोस्ती प्यार की  शुरुआत हो सकती है शायद वो दफ़्तर की साथी यही चाहती है मैंने महसूस किया है लेकिन अंजलि को लेकर जैसा होता है वो भावना नहीं लगती मुझे । लेकिन मेरा यकीन है कि वो जीवन की वास्तविकता को समझती है और अच्छी पत्नी साबित होगी । क्या मैं अंजलि से संबंध तोड़ कर उस कार्यालय सहयोगी से गंभीरतापूर्वक विवाह करने को संबंध बनाने की पहल कर सही करूंगा जब खुद अंजलि भी यही सोचती है । शायद हम दोनों का प्यार अपनी परिणीति तक नहीं पहुंच सकता है । अपने चाहने वाले की इच्छा पूरी करना , ये भी प्यार ही तो है ।  अब लगता है तुम दोनों लाल फूल और पीले फूल अलग अलग क्यों हुए होंगे । मुझे भी हालात को समझ यही निर्णय स्वीकार कर दूर से ही प्यार को देखना  उसकी महक को ज़िंदा रखना होगा । जैसे ही साहिल ने ये बात कही पेड़ से इक फूल उसकी झोली में आ गिरा था । उसकी चिंता दूर हो गई थी ज़िंदगी को इक मोड़ देना था खूबसूरत छोड़ने से नई शुरुआत करने के लिए ।
 
 Sahir Ludhianvi Nazm Chalo Ek Baar Phir Se Ajnabi Ban Jayein - Amar Ujala  Kavya - टूटे हुए दिलों को ख़ूबसूरत मोड़ देती है साहिर की यह नज़्म
 
     

सितंबर 11, 2024

POST : 1882 दिलदार से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                  दिलदार से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

शादी - विवाह जन्म जन्म का बंधन होता है अक़्सर सात जन्मों की भी चर्चा होती है लेकिन ये पहला है कि आख़िरी भगवान भी नहीं बता सकता हां उम्र भर साथ निभा सकें तो उतना भी काफी है लेकिन खुश रह कर । कुछ प्रेम विवाह करते हैं कुछ दो परिवार मिलकर आपसी तालमेल से व्यवस्थित ढंग से कुंडली इत्यादि मिलाकर विवाह करवाते हैं लड़के लड़की को आपस में मिलवा कर समझ कर उनसे पूछ कर निर्धारित करते हैं । विवाह जैसा भी हो नतीजा वही होता है समझ विवाह होने के बाद आती है ये वास्तविकता कि शादी के बाद हर लड़की केवल पत्नी और हर लड़का केवल पति बन कर रह जाते हैं । पति - पत्नी दोनों शब्द एक समान प्रतीत होते हैं जबकि दोनों का भाग्यफल कभी एक जैसा नहीं हो सकता है । घर परिवार गृहस्थी की गाड़ी इन दो पहियों पर चलती है संतुलन कायम रखना पड़ता है । पत्नी को इक विशेष अधिकार हासिल होता है कि वो अपने पति को हर दिन बताती रहे कि उस में क्या क्या खामियां हैं शायद उसको पहले से मालूम होता है कि अपने जैसा काबिल समझदार जीवनसाथी इस जन्म में मिलना संभव नहीं । जैसा भी उपलब्ध है उसे ही सुधारना है उम्र भर अगले जन्म सही पति मिल सके इस कामना से । अपने पति की अच्छाई को भी नासमझी और मूर्खता साबित करना पत्नी का दायित्व होता है ऐसा उसको कोई समझाता नहीं बल्कि खुद ब खुद उसे ऐसा परमज्ञान प्राप्त हो जाता है । दार्शनिक जैसे लोगों ने बताया हुआ है कि विवाहित जीवन में सही तालमेल बिठाने को इस बात को स्वीकार करना आवश्यक होता है कि सभी अच्छे गुण पत्नी में हैं और हर पति अवगुणों की खान है । समझदार पति हमेशा विनती करता रहता है ' मेरे अवगुण चित न धरो ' । 
 
भगवान की तरह पत्नियां अपने पति की इस विनती को कभी सुनती नहीं हैं । अपने पति परमेश्वर की गलतियां ढूंढ कर उसे प्रताड़ित कर पत्नी मानती है कि उसे पति से अथाह प्रेम है जान से बढ़कर चाहती है उसको । वास्तव में इस गूढ़ रहस्य को कभी कोई नहीं समझ पाया है कि जो व्यक्ति किसी काम का नहीं लगता उसी से सभी काम बढ़िया ढंग से करवाने की आकांक्षा रखते हैं । विवाह कोई गलती नहीं भूल नहीं कोई गुनाह भी नहीं तब भी ऐसा करने की सज़ा दोनों को मिलती अवश्य है । बड़े बज़ुर्ग कहते हैं कि पति पत्नी का रिश्ता प्यार का कम तकरार का अधिक होता है प्यार घट भी सकता मगर तकरार कभी कम नहीं होती ख़त्म हो नहीं सकती बढ़ती ही जाती है । विवाहित युगल में झगड़े होना हैरानी की बात नहीं होती चिंता तब होती है जब दोनों तंग आकर चुपचाप रहने लगते हैं । ये खतरा है आने वाले तूफ़ान का संकेत है जिसे अनदेखा करने पर नौबत अलग अलग रहने की चाहत में तलाक तक पहुंच सकती है जिस से संतान और परिवार का ढांचा बिगड़ सकता है । समझौता दोनों को करना पड़ता है सामाजिक पारिवारिक संबंधों को कायम रखने के लिए । 
 
संबंध मधुर होना अच्छा है कभी थोड़ा नमकीन भी चलता है , खट्टा - मीठा ठंडा गर्म अपनी अपनी जगह उचित होते हैं मगर जब बात कड़वाहट या तीखा असहनीय हो जाये तब वातावरण बोझिल होने लगता है । ऐसे में किसी एक को गलती नहीं करने पर भी क्षमा याचना करनी पड़ती है और जो झुकता है वही सच में समझदार होता है । तोड़ना आसान जोड़ना कठिन होता है , शादी विवाह इक ऐसी पहेली की तरह है जो लगती आसान है लेकिन कोई भी हल नहीं कर सकता बस इस बात की कठिनाई है । मान्यता है कि जो समझदार होते हैं पति पत्नी उन से अच्छा कोई दोस्त नहीं हो सकता लेकिन जो नासमझ होते हैं वो किसी खतरनाक दुश्मन से भी खराब होते हैं । दाम्पत्य जीवन में खबर नहीं होती कि कब कौन दोस्त नहीं दुश्मन की तरह आचरण करने लगता है जो सही शिष्टाचार को नहीं समझे उस दिलदार से तौबा करना उपाय होता है । 
 
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POST : 1881 तौबा प्यार से तौबा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

         तौबा प्यार से तौबा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

कोई झूठ नहीं कल्पना की नहीं सच और असलियत की बात करते हैं लोग हर बात पर मुझे तुझसे है प्यार कहते हैं । किसी के इनकार को भी छुपा हुआ इकरार कहते हैं जाने किस तरह जिया तेरे बिन बेकरार होता है इक उम्र में यही इंतिज़ार होता है । कोशिश करते हैं जो जाने क्या नसीब होता है जो ख़्वाब देखते हैं मिलन होगा कभी किसी से हाल उनका अजीब होता है । हमने कई बार अपने जज़्बात को संभाला है ऐसा कोई रोग जानकर नहीं पाला है दोस्तों को देखा है सिगरेट पीते नशे में हाल ए दिल बताते सुराही खाली टूटा प्याला है । आख़िर सभी ने समझाया है जब भी इश्क़ किया धोखा खाया है ये स्वर्ग नर्क संग संग हैं खोया है खुद को नहीं बदले में कुछ हाथ आया है । प्यार मृगतृष्णा है चमकती हुई रेत लगती प्यासे को पानी है प्यास बुझती कभी नहीं जान इक फरेब को सच समझते जानी है । 
 
क्या बला है ये प्यार हमने तो कभी नहीं देखा किसी से प्यार मिला नहीं किसी से प्यार किया भी तो बर्बाद हुआ खुद अपना जहां जाएं तो जाएं कहां । आपने भी देखा तो नहीं कभी सच बताओ फिर क्यों अपने को ही दिलासा देते हो वो समझेगा दिल की बात इक दिन । क्यों समझते हैं लोग प्यार बिना ज़िंदगी बेकार है क्या प्यार कोई मीठा मिष्ठान है या लज़ीज़ अचार है समझोगे तो ये भी कोई इश्तिहार है जिस में कितनी शर्त हैं बंदिशें हैं घाटा निश्चित है अजब कारोबार है । दुनिया भर में लोग ज़िंदा हैं जिनको कभी किसी से प्यार मिला ही नहीं सबको मिलता तो इस जहां में सिर्फ और सिर्फ प्यार होता , ग़ालिब कहते हैं कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतिबार होता । प्यार मिलता तो ज़रूर है लेकिन किताबों कहानियों किस्सों में अथवा आधुनिक बदले ढंग वाले स्वरूप में टीवी सीरियल फ़िल्मी अंदाज़ में । कमाल है जिस से नफरत तकरार होती है उसी से बाद में जान से भी बढ़कर प्यार हो जाता है । प्यार अंधा ही नहीं पागल भी है जो खलनायक अपशब्द अनुचित आचरण करने वाले पर कुर्बान होने को ख़ुशी से तैयार हो जाते हैं । सुना था प्यार ख़ामोशी का नाम है त्याग का नाम है जिससे प्यार करते हैं उसके लिए हद से गुज़रने की बात है , चुप चाप आंसू बहाने खुद ही इक आग में जलते हैं , लेकिन आजकल डर छल कपट झूठ किसी भी तरीके से किसी को अपना बनाने को प्यार समझते हैं और अगर नहीं मिले तो क़त्ल तक करने को प्यार का पागलपन बताते हैं । सोचना कितना खुदगर्ज़ कितना भयानक नफरत से भरा दिल दिमाग़ ऐसा वहशीपन करता है जिसे प्यार नाम देना अपराध है ।    
 
आप कहते कि रोटी हवा पानी बिना ज़िंदा नहीं रहा जाता तो मैं मान भी लेता हालांकि लोग इनके बगैर भी जीते हैं कोई मानेगा नहीं इतना अवश्य मानोगे कि फ्रिज टीवी और स्मार्ट फोन बिना भी लोग ज़िंदा रहते थे और अधिक ख़ुशी से चैन से जीते थे मगर अब इन से ऐसा रिश्ता बन गया है कि दुनिया घर बार छूट जाए बस ये साधन सुविधाएं मिलती रहें तो मौज ही मौज है । बिजली और इंटरनेट नहीं थे तब भी दुनिया थी सभी कुछ शानदार था अब पल भर इनके बिना रहना आफत लगती है । अब सभी की सबसे अधिक चाहत यही हैं जिनका भावनाओं से कोई सरोकार नहीं भौतिकता महत्वपूर्ण है । प्यार नहीं बेबसी है मज़बूरी है कोई ऐसा प्यार किसी से महसूस नहीं करता कि उस के बगैर क्षण भर भी चैन नहीं आता हो । मशीनों से लगाव उनकी ज़रूरत को मुहब्बत नहीं विवशता कहते हैं , रिश्तों में आजकल ऐसा नहीं दिखाई देता कोई करीब नहीं रहता तो कितना कुछ और होता है । किसी की याद में ज़िंदगी बिताना कौन करता है सफर चलता रहता है हमराही हमसफ़र हमदर्द बदल जाते हैं बिछुड़ने का एहसास थोड़ी देर बाद खो जाता है । 
 
कहते हैं इश्क़ प्यार आदमी को दीवाना बना देता है मजनू बना देता है , दर्द के सिवा कुछ नहीं हासिल होता है लेकिन इक गीत है कि किसी ने बर्बाद किया फिर भी कहते हैं इल्ज़ाम किसी और पर जाए तो अच्छा होगा । हमको तो प्यार का अंजाम कभी खूबसूरत दिखाई नहीं दिया ज़माने में इसलिए उस डगर पर कभी नहीं जाना तय कर लिया है । तौबा मेरी प्यार से तौबा सौ बार तौबा । जिस प्यार में ये हाल हो उस प्यार से तौबा । 

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सितंबर 07, 2024

POST : 1880 बेटिकट का सुःख दुःख ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

         बेटिकट का सुःख दुःख ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

चाहने से सभी कुछ हासिल नहीं होता है कीमत चुकानी पड़ती है दुनिया में हर चीज़ की मगर कुछ चीज़ें जो अनमोल नहीं भी होती कोशिश करने पर भी हर किसी को हासिल नहीं होती मानव के खुश होने निराश होने का आधार प्रतीत होती हैं । बस या रेलगाड़ी में बिना टिकट यात्रा का अनुभव अलग अलग होता है लेकिन चुनावी खेल में टिकट नहीं मिलने पर मैदान में उतरना सभी को नहीं आता है । संसद चुनाव में जिस दल की सरकार बनने की संभावना दिखाई देती है उस का टिकट मोक्ष से बढ़कर लगता है तो राज्य के चुनाव में किसी विधानसभा चुनाव में स्वर्ग का द्वार खुलता लगता है । राजनेताओं की कहानी की विडंबना यही है कि पल भर में ऊपर से नीचे पहुंच जाते हैं जबकि नीचे से ऊपर जाने में सौ खतरे उठाने पड़ते हैं ज़िंदगी का सभी कुछ दांव पर लगाना पड़ता है । नेता गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं मगरमच्छ की तरह आंसू बहाते हैं अक़्सर लेकिन कभी कभी बेबसी में भी आंखें भर आती हैं आंसू छलक आते हैं । टीवी वाले कराह पड़ते हैं कहते हैं आप क्यों रोये रोयें आपके दुश्मन जनता है रोती रहती है , रुलाने वाला खुद रोने लगता है तो लगता है जैसे उनके अश्क़ चांद तारों को डुबो देंगे और फ़ना हो जाएगी सारी खुदाई , आप क्यों रोये । ये नज़ारा देख कर इक पुरानी रचना याद आई है विषय अलग है शीर्षक को छोड़ कुछ भी मेल नहीं खाता फिर भी जो कभी अप्रकाशित रही उस से लेखक का मोह जाता नहीं है । रचना है बेटिकट यात्रा का सुःख बहुत पहले नवभारत टाइम्स अख़बार में छपी थी । पेश है वही शुरुआत और अंत आधुनिक संदर्भ में नया है । 
 
कुछ लोग बेटिकट यात्रा का जोखिम उठा लेते हैं , पकड़े गए तो दस गुणा जुर्माना या कैद का विकल्प होता है जबकि कुछ लोगों को अधिकार मिला होता है कि वो बिना टिकट यात्रा कर सकते हैं । साहित्य अकादमी का निमंत्रण पत्र मिलता है जिस में लेखक को आने जाने का किराया देने की बात के साथ इक और बात भी लिखी होती है कि जिनको सरकार से मुफ्त यात्रा की सुविधा मिली हुई है उनको ये राशि नहीं दी जाएगी । पुलिस विभाग का परिवहन विभाग से झगड़ा चलता रहता है मगर पुलिस विभाग और परिवहन विभाग के परिवार से संबंध रखना टिकट नहीं लेने का आधार और अधिकार रहता है । पत्रकारों की बात अलग है उनको इतना नहीं बहुत कुछ और चाहिए जिस की कोई सूचि बन नहीं सकती पत्रकार होने का तमगा पास हो तो कोई कठिनाई रास्ते में नहीं आती है । नेता अधिकारी सभी खुद उपलब्ध करवाते हैं जो भी चाहो यही इक कार्य है जिस में मनचाही मुराद पूरी होना अनिवार्य शर्त है । हरियाणा में हमेशा कोई शुरुआत होती है कुछ साल से महिलाओं को सरकारी बस में राखी के दिन बिना टिकट यात्रा का प्रावधान किया गया है जो शायद महिलाओं को कुछ अनुभव भी करवाता है निःशुल्क कुछ मिलना मुसीबत भी लगता है । हरियाणा की राजनीति बाहरी तो क्या हरियाणवी लोग भी समझ नहीं पाए कभी । हरियाणवी लोकतंत्र लठतंत्र नहीं न ही प्रजातंत्र जैसा है ये पारिवारिक विरासत का बोझ है जिसे जनता को ढोना पड़ता है विवश होकर ।
 
इक घटना पुरानी है नाम को छोड़ देते हैं , रेल मंत्री के सास ससुर बिना टिकट यात्रा करते पकड़े गए । इस में उनको कोई गलती नहीं थी बस अपनी बेटी दामाद को पहले बताते तो टिकट पूछना तो दूर है रेलवे स्टेशन पर अधिकारी हाल चाल जानने सुविधा उपलब्ध करवाने को तैयार रहते । रेलवे विभाग परिवहन विभाग को नेताओं के परिवार के सदस्यों की जानकारी मिलनी चाहिए । किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं जो पत्नी से ये कहे की तुम्हारे मायके वालों ने मुझे कितनी मुसीबत में डाल दिया है , हद से हद यही कहते हैं कि अपने मायके वालों से कह दें कि कोई यात्रा करनी हो तो मुझे पहले बता दें ताकि उनको आसानी होगी । हमारे राज्य में बात बिल्कुल अलग है जब भी जो भी नेता सत्ता में होता है बाप भाई चाचा ताऊ साला बहनोई मामा से दूर के नाते वाले रिश्तेदार होने का ढिंढोरा पीटते रहते हैं , हर दिन हर किसी को धमकाते हैं जानते नहीं मैं कौन हूं । शहर गांव गली सभी उनको इसी तरह जानते हैं अन्यथा कोई उनकी पहचान नहीं होती है । मेरे शहर  में आधे लोग ख़ास इसी कारण समझे जाते हैं बाकी आधे बाप दादा की ज़मीन जायदाद से जाने जाते हैं अन्यथा वह लोग शून्य ही होते हैं । लॉटरी पर कभी प्रतिबंध लगाया जाता है कभी सरकार खुद यही करती है लेकिन लॉटरी का टिकट खरीदना आदत होती है आसानी से धन कमाने की आजकल नाम बदल कर करोड़पति बनने का शो या ऐप्प्स पर जाल फैंकने में कौन शामिल नहीं है ।  
 
चुनाव में टिकट मिलने से जीत होना ज़रूरी नहीं है फिर भी शासक दल की टिकट मिलना आर्थिक रूप से लाभकारी होती है इसलिए भले लग रहा हो सरकार नहीं बनने वाली तब भी टिकट मिलने को कोई कोशिश छोड़ते नहीं है । दल से मिलने वाली धनराशि का कोई हिसाब किताब नहीं होता जैसे जब सरकार बनने का भरोसा होता है तब पैसे दे कर भी टिकट खरीदी जाती है । कई नेता पहले करोड़ों देते हैं टिकट पाने को अगली बार दल वाले टिकट देते हैं साथ कई गुणा धनराशि भी चुनाव लड़ने को । मगर कुछ बदनसीब होते हैं जिनको दल फिर से टिकट नहीं देता क्योंकि उसकी जगह कोई और अपनी शतरंज पहले बिछा चुका होता है । राजनीति की यात्रा में भी सावधानी रखना ज़रूरी है अन्यथा दुर्घटना घटते देर नहीं लगती है । ताश की बाज़ी में पत्तों की तरह सही पत्ते मिलना टिकट कब किस से मिला इस पर निर्भर करता है । निर्दलीय चुनाव लड़ने में जीत कर तभी अहमियत बढ़ती है जब किसी को भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हो तब घोड़ा मंडी में हर नस्ल की कीमत बराबर समझी जाती है । आज़ाद उम्मीदवार त्रिशंकु विधानसभा में नायक होते हैं ।   
 
 Haryana Election 2024: कांग्रेस में दागी और दो बार चुनाव हारने वालों का  कटेगा पत्‍ता; पार्टी किन नेताओं को देगी टिकट? - Haryana Election 2024  Congress will not give tickets to ...

सितंबर 04, 2024

POST : 1879 रंग बदलती दुनिया ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

      रंग बदलती दुनिया ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

  चुनावी राजनीति की बात है मौसम रंगीन है ,  नज़र आये चाहे कुछ भी समझ नहीं आये नज़ारा हसीन है । संख्या अनगिनत है चुनाव में सभी मैदान में उतरने को तैयार हैं जिस भी दल से टिकट मिल जाए उसे लेकर विचार बदल जाते हैं । जीत हार बाद की बात है अवसर मिलने की बात है कितनी हसीं मुलाक़ात है चांद भी है और उनका साथ है वाह भाई वाह क्या बात है । फूल है हाथ में , हाथ छोड़ना नहीं , ऐसा जज़्बात है इक यही खेल है जिसमें होती करामात है बिन बादल बरसती नोटों की बरसात है । हमारा देश और समाज कभी चलता था सोच समझ कर कुछ सार्थक पहले से बेहतर बनाने की दिशा में कोशिश करते हुए । लेकिन अब लगता है जैसे हम ठहर गए हैं किसी तालाब के पानी की तरह बहना दरिया नदिया की तरह भूल गए हैं । जिसे भी देखते हैं खुद की खातिर कोई अवसर ढूंढता है अन्य सभी को पीछे छोड़ आगे बढ़ना चाहता है , इक कारवां था जिस में तमाम लोग शामिल थे उसे बिखरने दिया मतलब की खातिर । भीड़ है फिर भी हम सभी अकेले ही नहीं अजनबी लगते हैं खुद को भी पहचानना कठिन लगता है । चर्चा बहुत होती है सार्थक संवाद नहीं होता है क्योंकि विचार विमर्श करते हुए भी हमारा ध्यान निष्कर्ष को लेकर नहीं उसका हासिल क्या हो सकता है हमें ऊपर ले जाने के लिए इस की चिंता रहती है । 

सभी को इक छलांग लगाकर शिखर पर पहुंचना है सत्ता हथियानी है लेकिन सत्ता का उपयोग कर देश समाज को कोई दिशा देनी है ऐसा कभी सोचते ही नहीं । अर्थात हमारे पास सब कुछ हो सिर्फ खुद के लिए ऐसा संकीर्ण मानसिकता का समाज बन गया है । और ये इक राजनीति की बात नहीं है शिक्षा स्वास्थ्य धर्म से न्याय व्यवस्था सुरक्षा प्रणाली प्रशासन तक सभी ईमानदारी से कर्तव्य निभाना छोड़ मनमानी करने लगे हैं । विडंबना है कि बावजूद इस के सभी मानते हैं हम देश और समाज की सेवा करते हैं जबकि लूट का कारोबार करने में इक होड़ सी लगी है । कारोबार व्यौपार उद्योग से लेकर सिनेमा टीवी चैनल लेखन तक हर कोई सही राह से भटक गया है आईना बेचने लगे हैं दर्पण को देखते नहीं हैं । बारिश में जैसे मेंढक टरटराने लगते हैं हम सभी की आदत बन गई है रोज़ किसी बदले विषय पर बातचीत करते हैं । कोई गिनती नहीं रोज़ कुछ न कुछ नया होता है नव वर्ष से लेकर त्यौहार या खास अवसर ही नहीं महिला दिवस बाल दिवस स्वतंत्रता दिवस गणतंत्र दिवस से तमाम दिन निर्धारित हैं किस दिन हिंदी की बात करनी है कब संविधान को लेकर कुछ कहना है । बस उस दिन उस अवसर को छोड़ कभी किसी की चिंता करना अनावश्यक लगता है , सभाओं में भाषण भी इक सिमित परिधि में देते हैं सुनते हैं और अधिकांश औपचारिकता निभाते हैं कोई प्रभाव नहीं छोड़ते इस कदर खोखले हो गए हैं । 

कोई चित्रकार इक चित्रकारी करते हुए कितने रंगों का उपयोग करता है अपनी बात को अभिव्यक्त करने को अब लगता है तस्वीर खूबसूरत नहीं डरावनी लगती है । दोष तस्वीर का रंगों का नहीं है जो सामने दिखाई देता है उसी को दर्शाना होता है । आज इस रचना में भी बात निराशा की नहीं है अंधकार ही अंधकार है हर तरफ और कहीं कोई आशा की किरण नहीं दिखाई देती तो उस बेबसी का दर्द झलकता है शब्दों में सिर्फ कल्पना लोक में जीना संभव नहीं रचनाकार के लिए । मुझे जिस सुंदरता की चाहत है लाख कोशिश करने पर भी उसका कोई निशान कोई सिरा मिलता नहीं है तो महसूस होता है भटक गए हैं अब फिर से उसी जगह से नई शुरुआत करनी होगी जिस मोड़ से हमने राह बदल ली थी भटक गए हैं । वक़्त लौटता नहीं कभी भी तब भी सफ़र में जब समझ आये कि मंज़िल नहीं दिखाई दे रही तो सोच समझ कर इक मोड़ लेना ज़रूरी है । नहीं तो चलते चलते थक कर सोना हमेशा हमेशा के लिए नियति बन जाएगी । उलझी हुई तस्वीर है बिगड़ी हुई तकदीर है टूटी हुई शमशीर है शिकारी खुश निशाने पर है घायल हुआ हर तीर है ।
 
 
Die Geheimis der Kletterkünstler: Lianen leisten Wäldern unschätzbare  Dienste - [GEO]