मोबाईल एक उलझनें अनेक ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
अजब मुहब्बत है कितनी मुसीबत है दिन को चैन है न पल भर की फुर्सत है मोबाईल फोन इक ऐसा आफत है । इंसान की पहचान बस मोबाईल नंबर हो गई है जीते जी ग़ज़ब कयामत हो गई है । ख़रीदा महंगा संभालना पड़ता है आहट ज़रा सी हुई ध्यान रखना पड़ता है खुद अपने लिए इक सरदर्द मोल लिया है बिन इसके लगता नहीं जिया है । दुनिया सारी गुलाम बन गई है नेटवर्क नहीं मिलता तो लगता है जैसे शहर बस्ती की रौनक खो गई महफ़िल सुनसान बन गई है । अनलिमिटेड कॉल्स की सुविधा वरदान लगती थी अभिशाप साबित हुई है हर शख़्स को इक रोग लगा है इक फोन से रिश्ता निभाना है सारा ज़माना हुआ बेगाना है । कोई भी जगह हो मंदिर मस्जिद चाहे कोई ख़ुशी का अवसर या कहीं शोक प्रकट करने की घड़ी बजती है घंटी लगती है अटपटी । अनचाही कॉल्स की मुसीबत कम नहीं है कौन था क्यों कैसे इस से अनसुलझी कोई भी उलझन नहीं है । उसकी साड़ी उसकी कमीज़ से मुक़ाबला कठिन नहीं था इस की कोई सीमा नहीं है मॉडल से कंपनी तक बड़ी कठिनाई है स्मार्ट फोन सबसे बड़ा हरजाई है । नंबर बदलते हैं ज़माने से बचते है मगर बचना मुमकिन नहीं है बदला नंबर भी नंबर वन नहीं है ।
खो गया मोबाईल फोन लगता है ज़िंदगी ग़ुम हो गई है इक उसी संग रहने की आदत हो गई है जुदाई की हर घड़ी लगती है कयामत है नज़र लगी किसकी किसी की शरारत है । अचानक जब कभी उसकी आहट थम जाती है बस जितना साथ था ख़त्म हो जाता है नया खरीदने में उसे देना पड़ता है प्यार को अलविदा कहना पड़ता है । किश्तों पर जीना किस्मत बन गई है बढ़ती हसरत घटते घटते ख़त्म नहीं हुई अधिक बढ़ रही है । सरकार व्यौपार अख़बार सब का नाता बस इसी से संभव है , शुभ समाचार से शोक समाचार तक सिर्फ व्हाट्सएप्प संदेश से भेजते हैं निमंत्रण पत्र से जाने क्या क्या इसी से आदान प्रदान करते हैं । हवा पानी खाना पीना जैसे ज़रूरी है सोशल मीडिया पर एक्टिव होना उस से भी ज़रूरी है ये ज़रूरत थी बन गई मज़बूरी है । अजब हाल है ज़िंदगी बेहाल है मगर सबको लगता बंदा क्या कमाल है भूखा बदहाल लगता मालामाल है । मिलना मिलकर बातें करना भूल गए हैं घर बुलाना कभी चले जाना छोड़ दिया है बस इक ही रिश्ता सब से संदेश औपचारिक भेजने का निभाते हैं अब नहीं पुराने दिन याद आते हैं । व्हाट्सएप्प से अधकचरा ज्ञान पाकर इतराते हैं करते हैं नासमझी समझदार जानकार कहलाते हैं । सैंकड़ों हज़ारों नंबर हैं कौन हैं भूल जाते हैं याद नहीं आया किसका नंबर है खास दोस्त से कहते नहीं शर्माते हैं ।
इक बेजान चीज़ ने कितना बर्बाद किया है बड़ी लंबी इसकी कहानी है , ये इक रेगिस्तान में चमकता हुआ पानी है मृगतृष्णा की वास्तविकता जानी पहचानी है । इक दौड़ है प्यास की आखिर अंजाम वही होगा सोचो क्या नफरत क्या लूट क्या धोखा होने लगा है हर शख़्स अपने अश्कों से खुद अपना दामन भिगोने लगा है । कांटों का गुलशन संजोने लगा है । अजब सा नशा है बेबसी का आलम है कोई और नहीं अपनी खुद की उलझन है मुझको लगता उनके पास फोन नहीं मेरी कोई सौतन है । इक बेजान बेवफ़ा से दिल लगा बैठे हैं लोग मत पूछना क्या क्या नहीं गंवा बैठे हैं लोग । सामाजिक वातावरण इतना प्रदूषित हो गया है कि इस की गंदगी दुनिया का मुकदर हो गई है । ये ऐसा ज़हर है सबको खाना पड़ता है कड़वा है मीठा बताना पड़ता है । कभी किसी संत महात्मा ने उपदेश देते हुए स्वर्ग नर्क और मोक्ष की व्याख्या की थी जिस में समझाया गया था कि कुछ चीज़ों का मोह आदमी को भटका देता है मोक्ष स्वर्ग से नर्क भाने लगता है । तब उनका मकसद सामाजिक और राजनैतिक प्रशासनिक पतन को लेकर था कि सत्ता का नशा और अधिकार मदहोश कर देते हैं । लेकिन किसे पता था भविष्य में मोबाईल फोन इक ऐसा उपकरण साबित होगा जिसे हासिल कर सामान्य नागरिक भी स्वर्ग मोक्ष से बढ़कर आनंद का अनुभव नर्क से भी बदतर हालात बनाने वाले से अनुभव कर अनगिनत समस्याओं असंख्य उलझनों परेशानियों को आमंत्रण देने लग जाएंगे ।
मोबाइल के हम कितने लती हैं इस लेख में उजागर बखूबी किया है आपने। भाषा में तुकांत न होते तो और बेहतर लेकह होता...फिर भी आज की मोबाइल की सच्चाई को बताता लेख
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