मेकअप नहीं , मुखौटा है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
हमारे देश के राजनेताओं की अलग बात है दुनिया उनको पहचानती है मगर असली चेहरे से कम मुखौटे से अधिक । जनता की बर्बादी देख कर भी उनके चेहरे पर शिकन नहीं आती आपदाओं का अवलोकन करते समय भी मुस्कुराहट खिली रहती है कैमरा दर्शाता है । आरोप लगने से छोड़ो अपराध साबित भी हो जाएं तब भी त्यागपत्र देते समय ऊपरी अदालत से निर्दोष साबित होने का आत्मविश्वास कायम रहता है । घोटाले लूट सरकारी संसाधनों और पैसे का अनुचित उपयोग सरकार प्रशासन को नज़र नहीं लग जाये बचाने के काजल से लगाए काले टीके प्रतीत होते हैं शर्मसार होना सीखा नहीं किसी ने भी । कभी हादिसा हो जाये तब उस जगह मगरमच्छ के आंसू बहाते हैं कुछ पल बाद किसी और जगह ठहाके लगाते दिखाई देते हैं । कुछ साल पहले अखबार में खबर छपी थी ब्रिटैन के प्रधानमंत्री को खिला खिला नज़र आने को मेकअप पर सैंकड़ों पौंड खर्च करने पड़ते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति को भी हज़ारों डॉलर खर्चने की आवश्यकता होती है । तब हमारे लिए वो खबर हैरान करने वाली थी जबकि अब हमारे प्रधानमंत्री पर कोई हिसाब नहीं कितना पैसा उनकी बनावट पर खर्च किया जाता है । शारीरिक सुंदरता की बात छोड़ उस की बात करते हैं जिसे शानदार महान छवि प्रस्तुत करना कहते हैं उसका बजट असीमित है विज्ञापन से होर्डिंग लगाने से लेकर सोशल मीडिया प्रबंधन तक पैसा पानी की तरह बहाया जाता है । क़ातिल को मसीहा दिखलाया जाता है झूठ को सच बनाया जाता है जनता को सावन का अंधा समझ हरा ही हरा दिखाई दे रहा बताया जाता है ।
डेमोक्रैसी नाम की दुल्हन को सजाते हैं बार बार सोलह श्रृंगार करवाते हैं लाख कोशिश कर के भी राजनीति के दाग़ छुपाने से छुपते नहीं हैं इसलिए राजनेता मेकअप नहीं मुखौटों से काम लेते हैं । नकली चेहरों का फैला हुआ बहुत बड़ा बाज़ार है सरकार मुंह नहीं छिपा सकती चेहरे बदलती रहती है कहती मंत्रिमंडल विस्तार है । हर दिन करोड़ों रूपये मंत्रियों सांसदों विधायकों पर खर्च करते हैं अर्थव्वस्था का हुआ बंटाधार है मगर आम जनता के लिए शिक्षा है न कोई स्वास्थ्य सेवा न ही रोज़गार है उसका जीना मरना बेकार है लेकिन देश बढ़ता जा रहा है सरकारी इश्तिहार है । कोई दार्शनिक बता रहा था कि जैसे प्रयोगशाला में असली नकली की जांच होती है खाद्य पदार्थ से दवाएं तक मिलावट मिलती है कोई तरीका हो परखने को नेताओं की सच्चाई ईमानदारी देश भक्ति से ईश्वर पर आस्था तक सभी नदारद मिलेंगी बस कहने को समाजसेवा खाना है खूब सभी को मेवा । डेमोक्रैसी की दुल्हन लगती है किसी की बेबस बेवा ।
अल्पसंख्यक हिमायती होने का मुखौटा है किसी ने लगाया हुआ किसी ने धर्मनिरपेक्षता वाला लगा लिया है , दलितों से हमदर्दी का मुखौटा हर कोई रखता है जब भी ज़रूरत पड़ती है उपयोग करते हैं । अधिकांश ऐसे चेहरे भावशून्य होते हैं जिन पर हंसता हुआ नूरानी चेहरा लगाया होता है नकली किदार की तरह से ही । असलियत बिल्कुल विपरीत होती है विश्व को सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का आडंबर किया जाता है जबकि वास्तव में लोकतांत्रिक मर्यादा को ताक पर रख कर विरोध के अधिकार को ताकत और सत्ता के गलत उपयोग से दबाने में कोई संकोच नहीं करते हैं । सरकार राजनेता पुलिस प्रशासन देश में असामाजिक तत्वों को बढ़ावा देकर अन्याय अत्याचार का पक्ष लेने के बावजूद विदेशों में मानवता और विश्व कल्याण तथा लोकतंत्र का ढोल पीटती रहती है ।
सही बात है मुखोटे लगाए रहते हैं राजनेता👍
जवाब देंहटाएं