सितंबर 16, 2024

POST : 1889 सरकती जाये है नक़ाब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        सरकती जाये है नक़ाब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

वो जिनकी वफ़ा की कसम खाते थे ज़माने वाले बेवफ़ा सनम निकले , कहते हैं इंसान की असलियत जब तक पर्दे में ढकी रहती है सभी भले लगते हैं राज़ खुलने लगे तो सब एक जैसे हैं । बार बार देखा है जो किसी की बेईमानी की बड़ी बुराई किया करते थे वक़्त बदला तो उनकी ईमानदारी की छवि बिगड़ी तो ऐसे कि लोग अपनी सोच पर शर्मिंदा थे । सत्ता की सियासत के हम्माम में सभी नंगे होते हैं चाहे जितना छुपाते रहें कभी न कभी शराफ़त की नक़ाब उतरती ज़रूर है । उस के बाद लाख सफ़ाई देते रहें यकीन नहीं करता कोई भी ये अजीब बात है जिस जिस को लेकर धारणा बनाई जाती है कि अमुक नेता कभी झूठ नहीं बोलेगा छल कपट धोखा हेराफ़ेरी नहीं कर सकता उसी की वास्तविकता सामने आती है तो हैरान होते हैं जब प्रमाण सामने आने पर भी उसे शर्म नहीं आती बल्कि ऊंची आवाज़ में आरोप क्या प्रमाण तक को झूठा बताता है । शराफ़त के पुतले समझे जाते लोग बदमाशी भी करते हैं तो दावे के साथ ये उनका कमाल है दाल में काला नहीं अब काली पूरी दाल है ऐसे शरीफ़ बदमाशों के हाथ सच्चाई की मशाल है । सत्ता की टकसाल का यही हाल है हर इक शासक बन गया ऐसा दलाल है जिस को सरकारी धन लगता ससुराल का माल है बुनता ऐसा जाल है कि जनता हुई बेहाल है । 
 
जो वास्तव में शरीफ़ होते हैं शराफ़त का बोझ जीवन भर ढोते हैं शरीफ़ कहलाना अच्छा है शराफ़त से रहना खराब है । शराफ़त अली को शराफ़त ने मारा अपने सुना होगा , इक नवाज़ शरीफ़ थे क्या बताएं कैसे और कितने शरीफ़ थे दोस्त थे मगर रक़ीब थे जितना फ़ासला था लगते उतने करीब थे आदमी अजीब थे । छोड़ो उनकी नहीं अपने देश समाज की बात करते हैं शराफ़त का चोला पहन कर क्या क्या करते हैं पकड़े जाएं तो सच से मुकरते हैं । अपने ही घर में खुद अपने ही दल की महिला की पिटाई करवाते हैं झूठ को सच और सच को झूठ बनाते हैं दुनिया को क्या समझाते हैं । हमारे देश में राजनेताओं की शराफ़त का डंका बजता है हर घोटालेबाज़ निर्दोष साबित होता है हर क़ातिल मासूम दिखाई देता है मगरमच्छ के आंसू बहाकर इंसाफ़ को डुबोता है । सबसे अधिक अपराधी जिस दल के सांसद हैं वही न्याय धर्म और सुरक्षा देने का जनता को भरोसा दिलवाता है कौन तेरी गली से ज़िंदा बचकर कभी आता है जो भी इंसाफ़ की गुहार लगाता है बेमौत मर जाता है । उनकी इंसानियत का अलग बही खाता है जो देता है बस वही पाता है अपनों को बचाना उनको आता है । देश की राजनीति में आजकल चला नया दौर है हम सभी एक जैसे हैं लेकिन सवाल यही है कि कौन कितना बड़ा चोर है । 
 
अमेरिका की शराफ़त कमाल की चीज़ है जिस देश की सहायता करते हैं उसे अपने जाल में ऐसा उलझाते हैं कि उन पर विश्वास करने वाले हमेशा पछताते हैं । विश्व बैंक आईएमएफ़ सभी को उंगलियों पर नचाते हैं लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर अपना कारोबार चलाते हैं । हमारी शराफ़त की पुरानी कहानी है काने राजा की अंधी महारानी है अंधी पीसे कुत्ता खाये दुनिया जानी पहचानी है । सरकार की खूबसूरत इक तस्वीर है जनता के पांव में बंधी हुई कितनी जंज़ीर है नेताओं अधिकारियों उद्योगपतियों की खुली तकदीर है जो जितना ज़ालिम है उतना कहलाता शूरवीर है । हमारे देश में भिखारी मालामाल हैं मेहनतकश लोग भूखे और बेहाल हैं सरकार जनता की सुविधाओं की ख़ातिर धन नहीं है समझाती है बाहर किसी देश की सहायता कर अपना गौरव बढ़ाती है । देशवासियों को बांटते हैं लड़वाते हैं चुनाव जीतने की खातिर दंगे फ़साद करवाते हैं मगर किसी अन्य देश में जाकर दो देशों में समझौता करवाने को चर्चा करवा शांतिदूत कहलाते हैं । अब हमारे देश में शराफ़त और ईमानदारी की कोई राजनीति संभव ही नहीं है सब एक थाली के चट्टे बट्टे हैं शरीफ़ नाम है इसलिए बड़े अच्छे हैं झूठे हैं लगते सच्चे है अभी आम कच्चे हैं । शराफ़त की नक़ाब धीरे धीरे सरकती जाती है उतरने नहीं दी जाती लोकतंत्र की लाज बचाने को थोड़ा घूंघट रखते हैं दिखाई भी देता है कुछ थोड़ा छुपा भी रहता है । कैसा पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं ।   

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