सितंबर 11, 2024

POST : 1882 दिलदार से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                  दिलदार से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

शादी - विवाह जन्म जन्म का बंधन होता है अक़्सर सात जन्मों की भी चर्चा होती है लेकिन ये पहला है कि आख़िरी भगवान भी नहीं बता सकता हां उम्र भर साथ निभा सकें तो उतना भी काफी है लेकिन खुश रह कर । कुछ प्रेम विवाह करते हैं कुछ दो परिवार मिलकर आपसी तालमेल से व्यवस्थित ढंग से कुंडली इत्यादि मिलाकर विवाह करवाते हैं लड़के लड़की को आपस में मिलवा कर समझ कर उनसे पूछ कर निर्धारित करते हैं । विवाह जैसा भी हो नतीजा वही होता है समझ विवाह होने के बाद आती है ये वास्तविकता कि शादी के बाद हर लड़की केवल पत्नी और हर लड़का केवल पति बन कर रह जाते हैं । पति - पत्नी दोनों शब्द एक समान प्रतीत होते हैं जबकि दोनों का भाग्यफल कभी एक जैसा नहीं हो सकता है । घर परिवार गृहस्थी की गाड़ी इन दो पहियों पर चलती है संतुलन कायम रखना पड़ता है । पत्नी को इक विशेष अधिकार हासिल होता है कि वो अपने पति को हर दिन बताती रहे कि उस में क्या क्या खामियां हैं शायद उसको पहले से मालूम होता है कि अपने जैसा काबिल समझदार जीवनसाथी इस जन्म में मिलना संभव नहीं । जैसा भी उपलब्ध है उसे ही सुधारना है उम्र भर अगले जन्म सही पति मिल सके इस कामना से । अपने पति की अच्छाई को भी नासमझी और मूर्खता साबित करना पत्नी का दायित्व होता है ऐसा उसको कोई समझाता नहीं बल्कि खुद ब खुद उसे ऐसा परमज्ञान प्राप्त हो जाता है । दार्शनिक जैसे लोगों ने बताया हुआ है कि विवाहित जीवन में सही तालमेल बिठाने को इस बात को स्वीकार करना आवश्यक होता है कि सभी अच्छे गुण पत्नी में हैं और हर पति अवगुणों की खान है । समझदार पति हमेशा विनती करता रहता है ' मेरे अवगुण चित न धरो ' । 
 
भगवान की तरह पत्नियां अपने पति की इस विनती को कभी सुनती नहीं हैं । अपने पति परमेश्वर की गलतियां ढूंढ कर उसे प्रताड़ित कर पत्नी मानती है कि उसे पति से अथाह प्रेम है जान से बढ़कर चाहती है उसको । वास्तव में इस गूढ़ रहस्य को कभी कोई नहीं समझ पाया है कि जो व्यक्ति किसी काम का नहीं लगता उसी से सभी काम बढ़िया ढंग से करवाने की आकांक्षा रखते हैं । विवाह कोई गलती नहीं भूल नहीं कोई गुनाह भी नहीं तब भी ऐसा करने की सज़ा दोनों को मिलती अवश्य है । बड़े बज़ुर्ग कहते हैं कि पति पत्नी का रिश्ता प्यार का कम तकरार का अधिक होता है प्यार घट भी सकता मगर तकरार कभी कम नहीं होती ख़त्म हो नहीं सकती बढ़ती ही जाती है । विवाहित युगल में झगड़े होना हैरानी की बात नहीं होती चिंता तब होती है जब दोनों तंग आकर चुपचाप रहने लगते हैं । ये खतरा है आने वाले तूफ़ान का संकेत है जिसे अनदेखा करने पर नौबत अलग अलग रहने की चाहत में तलाक तक पहुंच सकती है जिस से संतान और परिवार का ढांचा बिगड़ सकता है । समझौता दोनों को करना पड़ता है सामाजिक पारिवारिक संबंधों को कायम रखने के लिए । 
 
संबंध मधुर होना अच्छा है कभी थोड़ा नमकीन भी चलता है , खट्टा - मीठा ठंडा गर्म अपनी अपनी जगह उचित होते हैं मगर जब बात कड़वाहट या तीखा असहनीय हो जाये तब वातावरण बोझिल होने लगता है । ऐसे में किसी एक को गलती नहीं करने पर भी क्षमा याचना करनी पड़ती है और जो झुकता है वही सच में समझदार होता है । तोड़ना आसान जोड़ना कठिन होता है , शादी विवाह इक ऐसी पहेली की तरह है जो लगती आसान है लेकिन कोई भी हल नहीं कर सकता बस इस बात की कठिनाई है । मान्यता है कि जो समझदार होते हैं पति पत्नी उन से अच्छा कोई दोस्त नहीं हो सकता लेकिन जो नासमझ होते हैं वो किसी खतरनाक दुश्मन से भी खराब होते हैं । दाम्पत्य जीवन में खबर नहीं होती कि कब कौन दोस्त नहीं दुश्मन की तरह आचरण करने लगता है जो सही शिष्टाचार को नहीं समझे उस दिलदार से तौबा करना उपाय होता है । 
 
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