बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
हर गली हर बस्ती अपना घर लगता है
बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ।
सारे आलम में पसरा हुआ है सन्नाटा
सहमा -सहमा सा हर इक बशर लगता है ।
थरथर्राहट सी होने लगी धरती में
गिर गया आंधी में वो शजर लगता है ।
ओट लेकर छिपता फिर रहा है परिंदा
ले गया है कोई काट पर लगता है ।
आजकल हमसे कोई बहुत रूठा है
हम मना लेंगे इक दिन मगर लगता है ।
कब तलक दुनिया करती इबादत आखिर
लग गया उठने हर एक सर लगता है ।
रात दिन जो रहता था खुला ' तनहा ' अब
हो गया उस घर का बंद दर लगता है ।
Wah bdhiya ghazal 👍
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