सितंबर 21, 2018

POST : 909 धुआं - धुआं बस धुआं - धुआं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा'

    धुआं - धुआं बस धुआं - धुआं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा' 

धुआं - धुआं बस धुआं - धुंआ
न रौशनी का कहीं निशां । 

हैं लोग अब पूछते यही
कहां रहें जाएं तो कहां । 

बहार की आरज़ू हमें
खिज़ा की उसकी है दास्तां । 

है जुर्म सच बोलना यहां
सिली हुई सच की है ज़ुबां । 

जला रहे बस्तियां सभी
नहीं बचेगा कोई मकां । 

न धर्म कोई न जात हो
हमें बनाना वही जहां । 

उसी ने मसली कली कली
नहीं वो "तनहा" है बागबां । 
 

 

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