इन लबों पर हंसी नहीं तो क्या ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
इन लबों पर हंसी नहीं तो क्यामिल सकी हर ख़ुशी नहीं तो क्या।
बात दुनिया समझ गई सारी
खुद जुबां से कही नहीं तो क्या।
हम खुदा इक तराश लेते हैं
मिल रहा आदमी नहीं तो क्या।
दोस्त कोई तलाश करते हैं
मिल रही दोस्ती नहीं तो क्या।
ज़ख्म कितने दिए मुझे सबने
आंख में बस नमी नहीं तो क्या।
और आये सभी जनाज़े पर
चल के आया वही नहीं तो क्या।
यूं ही मशहूर हो गए "तनहा"
दास्तानें कही नहीं तो क्या।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें