दिसंबर 08, 2024

POST : 1925 कौन था कोई नादान था ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

          कौन था कोई नादान था ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

कोई कथा कहानी नहीं है हक़ीक़त है अफ़साना नहीं कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं कभी भी अभी तलक भी किसी ने उस दुनिया बनाने वाले को पहचाना नहीं । युग बीत गए कोई हिसाब नहीं दुनिया क्या से क्या बन गई मगर शुरुआत आखिर कभी कोई करता अवश्य है तो जिस ने इस दुनिया को था इक खिलौना खेलने को बनाया उसी आदमी ने इक दिन बनाने वाले को नादान बताया । जिसने सब कुछ बनाया दुनिया का कण कण पेड़ पौधे पक्षी हवा पानी बादल गगन से धरती पाताल तक पर्वत से खाई तक , जानवर बना बैठा इंसान बना बैठा । तब वही उसी के लिए ख़तरनाक पहेली जैसे कभी कैसे कभी कैसे अपने आचरण को बदलने लगे तो उसने खुद को अदृश्य बना की आवरण के पीछे छुपा लिया । इक दिन फिर ऐसा हुआ उसका बनाया इंसान जब इक बार आंखें होते हुए भी गहरी खाई है नहीं देख पाया भगवान ने हाथ पकड़ा उसको बचाया , आदमी ने सवाल किया कौन है कहां से इधर है आया । परिचय दिया मैं विधाता हूं तुझे इस संसार को मैंने ही है बनाया , आदमी को कभी ईश्वर का यकीन नहीं आया , साबित करो कब क्या क्योंकर बनाया क्या किसी पर कोई पहचान का चिन्ह बनाया लिखा अपना नाम पता बताया । बोला वो मेरा नाम पता ठिकाना क्या सभी में मैं हूं समाया । आदमी खुद को समझदार मानता रहा उसको नादान अनजान सिरफिरा समझा उसकी बातों में नहीं आया कहने लगा बता मुझे खाई में गिरने से क्यों बचाया । भगवान ने अपना पीछा छुड़ाने को कहा भूल हुई बनाकर दुनिया बड़ा पछताया , बस उस के बाद ईश्वर किसी को आंखों से नज़र नहीं आया सवालों से किसी के तंग आकर खुद को सामने होते दिखाई नहीं देता ऐसा बनाया । इंसान को जब वो नज़र नहीं आया तब उसने समझा मुझसे घबरा गया छुप गया डर कर छुपाया अपने को या था कोई साया । जानवर और इंसान दोनों ही भगवान से खुद को ताकतवर समझ अवसर मिलते ही बदलने लगे इतना कि कब कोई आदमी हैवान बन जाता है कब कोई जानवर भी शैतान से मेहरबान बन जाता है यही पहेली इक रहस्य रहती है । 
 
युग युगांतर के बाद दुनिया रंग बदलते बदलते आधुनिक काल तक इतना बदलाव हो चुका था कि ऊपरवाला थक कर सो चुका था इंसान इंसानियत को खो चुका था । ये भी करोड़ों वर्ष पहले की बात है आदमी को कहां मालूम खुद उसकी कोई नहीं औकात है वो तो महज़ किसी की इक ठोकर लगाई सौगात है । बस इक आदमी ने अपने आस पास जितने भी इंसान दिखाई दिए उनको यकीन दिलवाया कि जहां तक जितना नज़र आता है उसी का है जिसको जो चाहिए ले कर उपयोग कर सकता है केवल उसकी अनुमति से उसे अपना दाता और विधाता मानकर । किसी को इस में कोई परेशानी नहीं महसूस हुई और सभी ने उसकी कही बात को मानकर उसे सरदार बना लिया । धीरे धीरे सरदार की उम्र बढ़ती गई और उस ने कुछ लोगों को अपना वारिस या भावी सरदार घोषित कर दिया और दुनिया में इंसान इंसान में बड़े छोटे शासक शासित जैसे वर्ग बनते गए भेदभाव होने लगा । अचानक दुनिया बनाने वाले की नींद खुली तो उसे खबर हुई कि इंसानों ने उसकी बनाई खूबसूरत दुनिया को बर्बाद कर दिया है । अपने आवरण से निकल अदृश्य से सामने दिखाई देने का विकल्प चुना तो देखने वालों ने उसे सिरफिरा समझ लिया क्योंकि अब तक कितने अलग अलग अपने अपने ईश्वर सभी ने बना अर्थात घोषित कर लिए थे । 
 
सरकार को जब पता चला तब हर शासक ने खुद को विधाता और जाने क्या क्या घोषित करने वालों ने उसे पकड़ने और बंदी बनाकर क़ैदख़ाने में रखने का फ़रमान सुना दिया । भगवान को तहखाने में छुपाना रखना चाहा सभी हुक्मरानों ने ये सोच कर कि कभी काम आएगा तो उसे बाहर निकाल इस्तेमाल कर लिया जाएगा ।लेकिन उन सभी को क्या खबर थी कि भगवान कभी भी अदृश्य होने का विकल्प चुन वहां से छूमंतर हो जाते थे । अपनी बनाई दुनिया को हर छोर से दूसरे छोर तक पहचाना परखा तो जाना कि कुछ भी वास्तविक नहीं रहा है सभी बाहर से कुछ लगते हैं भीतर से कुछ और होते हैं खोखले हैं बाहरी आकार बढ़ता गया है बिल्कुल उसी तरह जैसे रावण का पुतला ऊंचा और फैला हुआ पलक झपकते ही राख बन जाता है । भगवान कहलाना चाहते हैं भगवान जिस ने सभी कुछ बनाकर सौंप दिया उसे कोई घर कोई पहचान देना चाहते हैं । भगवान जो खुद सबको देता है उसे दुनिया से क्या चाहिए उसको कुछ देना अर्थात खुद को भगवान से अधिक बड़ा महान और ताकतवर समझते हैं । आदमी नहीं जानता कि खुद इंसान भगवान की बनाई इक अनबुझी पहेली है जिस ने उसे भी अचंभित कर दिया है कि ये क्या चीज़ बना बैठा मैं जो अब उसी को चुनैती देने लगी है ।  
 
भगवान है भी या नहीं कहीं किसी की मनघड़ंत कहानी तो नहीं ऐसा विचार कुछ जालसाज़ झूठे फरेबी और मक्क़ार लोगों को आया तो उन्होंने सभी कुछ पर अपना आधिपत्य कायम कर खुद को शासक प्रशासक न्यायधीश सुरक्षा करने वाले अलग अलग ओहदेदार बना कर लूटना और लूट को खैरात की तरह कुछ भाग बांटना शुरू कर दिया । कोई ऊपरवाला भगवान नहीं हैं बस सिर्फ हमीं हैं मसीहाई करते हैं । लोगों ने भी उनकी सत्ता को मंज़ूर कर लिया है और उनके ज़ुल्मों को इंसाफ़ कहने लगे हैं । दुनिया बनाने वाले ने शायद बेबस होकर खुद ही अपने आप को ख़त्म कर दिया है , ख़ुदक़ुशी नहीं अंतर्ध्यान होना समझ सकते हैं । अब कोई भगवान नहीं किसी को कोई डर नहीं सभी मनमानी करते हैं यूं समझ लें की भगवान को सत्य को पराजित कर दिया गया है । बिना किसी चुनावी प्रक्रिया हटा दिया गया है ।  उस एक वास्तविक भगवान को हटवा कर कई लाखों लाख नकली भगवान बने बैठे हैं , पहचान करना कठिन नहीं है क्योंकि असली के भगवान ने कुछ भी अपने लिए या अपने पास नहीं रखा न कभी बदले में कुछ मांगा किसी से जबकि ये जितने भी खुद को भगवान समझते कहलवाते हैं उन सभी को अपने लिए जितना भी संभव हो चाहते हैं किसी भी तरह से हथिया लेते हैं । समाज देश को इनसे मिलता कुछ नहीं खोखली बातें और कभी सच नहीं होने वायदे प्रलोभन और झूठे भाषण को छोड़कर ।
 
 
 भगवान के न होने का सबूत क्या है?
 

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