अगस्त 02, 2024

POST : 1872 लोग ही सारे बुरे हैं ( तरकश के तीर ) डॉ लोक सेतिया

          लोग ही सारे बुरे हैं ( तरकश के तीर ) डॉ लोक सेतिया  

यही होने लगा है सभाओं में , धार्मिक उपदेश देने वाले आलीशान भवन में उपस्थित भीड़ को जैसे लताड़ लगा रहे होते हैं । कहते हैं लोग धार्मिक तौर तरीके भूल गए हैं ऊपरवाले की पूजा इबादत नहीं करते सब अपने स्वार्थ को महत्व देते हैं । सबको ही जैसे सभी को कटघरे में गुनहगार साबित करने का प्रयास किया जाता है , शायद कोई इस पर विचार नहीं करता कि अगर ऐसा वास्तव में है तो फिर मंदिर मस्जिद गिरजाघर और गुरूद्वारे में धार्मिक अनुष्ठान आयोजन में इतनी संख्या में कौन दिखाई देते हैं । क्या जो लोग ऐसा कहते हैं बस वही अच्छे हैं बाक़ी सभी लोग ख़राब हैं , ये कैसे नवाब हैं । कुछ ऐसा ही धनवान लोग शासक बनकर सत्ता पर बैठे लोग ख़ुद को महान और जनता को नासमझ नादान समझते हैं शोहरत की बुलंदी पर शैतान भी अपने को भगवान समझते हैं । अपनी लूट को भी तमाम लुटेरे किसी का दिया वरदान समझते हैं , फ़र्ज़ निभाने को सरकार गरीबों पर एहसान समझते हैं । 
 
सोशल मीडिया पर भेजते हैं अधिकांश संदेश प्रचारित करते हुए कि कोई भी दोस्ती घर परिवार समाज के प्रति कर्तव्य नहीं निभाता है लेकिन कभी किसी भी ऐसे संदेश को नहीं सांझा करते कि जीवन में कितने लोगों ने कितनी बार बिना स्वार्थ भलाई करने का कार्य किया अपने पराये सभी की ख़ातिर । मतलब ये कि कोई जीवन भर भलाई करता रहे दुनिया को दिखाई नहीं देता लेकिन सभी औरों में बुराई तलाश करने का अवसर ढूंढते रहते हैं । जहां एक तरफ अवगुण तलाश करते हैं अपने करीब नाते रिश्ते दोस्त और गली मोहल्ले में वहीं जो धनवान या राजनेता कितने ही अपराध कर किसी न किसी ढंग से सज़ा से बच निकलते हैं कानून से खिलवाड़ कर उनकी आयोजित सभाओं में सब जानते हुए भी लोग तालियां बजाते हैं । तब किसी को उन में अपराधी बलात्कारी दिखाई नहीं देता है , हद तो ये है कि जो धर्मगुरु उपदेशक बनकर सभी को धर्म का उपदेश देते हैं ऐसे गुनहगार को अपना शिष्य बनाकर उसकी बढ़ाई करते हैं । 
 
सत्ताधारी शासक ऐसे अपराधी से गठजोड़ कर राजनीति को गंदा कर जाने कैसे किसी धर्म और संविधान की न्याय की बात कर सकते हैं । कभी कभी महसूस होता है इस आधुनिक समाज में अच्छाई और सच्चाई कोई अभिशाप हैं भलेमानुष बनकर किसी को दुनिया जीने क्या चैन से रहने तक नहीं देती है । शायद तभी इसको कलयुग कहते हैं क्योंकि कलयुग में पापी अपराधी बदमाश आदरणीय कहलाते हैं जबकि शराफ़त से आचरण करने वाले अपमानित होते हैं । क्या यही आसपास नहीं होता है हर दिन सोचना ।  
 
इस युग में पैसा ही भगवान बन गया है , पैसे की खतिर धनवान और शासक ही नहीं धर्मउपदेशक से लेकर तमाम बड़े आदरणीय कहलाने वाले शिक्षक डॉक्टर वकील न्यायधीश समाजसेवा का दम भरने वाले तथा सच का झंडाबरदार खुद को घोषित करने वाले अपना ईमान तक त्याग कर झूठ के दरबार में खड़े मिलते हैं । जनता का धन सरकारी संसाधन सभी ऐसे ही लोगों को खैरात में मिलता हैं । वास्तव में इनका गुज़ारा अपनी ईमानदारी से मेहनत से की कमाई से हो ही नहीं सकता है । इन सबका जैसे संगठित कोई गिरोह है जिसने अपने नियम कायदे ही नहीं नैतिकता के मूल्य तक बदल कर अपनी व्याख्या कर अनुचित को उचित करार कर दिया है । भगवान और धर्म को इक बाज़ार बनाकर ये सभी अपने अधर्म अन्याय अनाचार को छिपाना चाहते हैं , सभी को बुरा साबित कर खुद महान कहलाना चाहते हैं । 1970 में गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने गोपी फ़िल्म में बिल्कुल यही भविष्यवाणी की थी । एक एक शब्द सच साबित हुआ है ध्यान से पढ़ना इसको ।

रामचंद्र कह गये सिया से ऐसा कलयुग आयेगा , हंस चुगेगा दाना दुनका कव्वा मोती खायेगा । 

सुनो सिया कलयुग में काला धन और काले मन होंगे , चोर उच्चके नगरसेठ और प्रभु भक्त निर्धन होंगे। 

जो होगा लोभी और भोगी वो जोगी कहलायेगा , हंस चुगेगा दाना दुनका कव्वा मोती खायेगा ।

 रामचंद्र कह गए सिया से - Ramchandra Keh Gaye Siya Se Lyrics

 

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