आधा सच है आधा झूठ ( अधूरी बात पूरी ) डॉ लोक सेतिया
राजा के पुण्य का प्रभाव ( अंतर्यात्रा ) संकलित
एक धर्मात्मा राजा थे । मृत्यु होने पर यमदूत उन्हें अपने साथ ले गए । पूर्व काल में किए एक पाप की उनकी सज़ा सिर्फ़ इतनी थी कि उन्हें नर्क में ले जाकर लौट आना था । यमदूत नर्क में ले गए , तो वहां के प्राणियों की चीत्कार से राजा का दिल दहल गया । इसके बाद राजा को स्वर्ग लेकर चलने लगे , तो नर्क के प्राणियों ने यमदूतों से आग्रह किया कि राजा को कुछ समय यहां पर और ठहरने दीजिये । इनसे टकरा कर जो हवा हमें स्पर्श कर रही है , उससे बड़ी ही शांति मिल रही है ।
राजा ने पूछा ' इनको मेरे शरीर से टकराने वाली हवा से शांति क्यों मिल रही है । यमदूतों ने कहा कि आपके पूर्व में किये गए पुण्य कर्मों की वजह से इनके पाप क्षीण हो रहे हैं । राजा ने यमदूतों से कहा ' यदि मेरी वजह से इतने सारे जीवों को सुःख मिल रहा है , तो मैं यहीं रुकने को तैयार हूं '। यमदूत बोले राजन आप चलिए । देखिए आपको लेने स्वयं धर्मराज और इंद्रदेव आए हैं ।
राजा ने धर्मराज और इंद्रदेव से कहा , ' मैं स्वर्ग जाने की बजाय यहां ठीक हूं ' । इंद्र ने कहा ये लोग अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं । आप हमारे साथ चलें ।
राजा ने कहा ' मेरे लिए दूसरों को शांति पहुंचाना , स्वर्ग सुःख से ज़्यादा महत्वपूर्ण है ' । इंद्रदेव ने कहा राजन इस से तुम्हारे पुण्य और बढ़ गए हैं , इन्हीं के प्रभाव से ये नरकगामी भी सदगति को प्राप्त होंगे । इसके बाद राजा उनके साथ स्वर्गलोक चले गए ।
( अमर उजाला 29 जुलाई 2024 अंक से आभार सहित )
स्वर्गवासी और नर्कवासी महागठबंधन ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
लिखने वाले जब लिखते हैं तब उनको नहीं मालूम होता कि भविष्य में कैसे राजा कैसा शासन कैसे लोग धरती पर आधुनिक संस्करण में कथाओं को बदल कर क्या से क्या कर देंगे । चलो देखते हैं जब सभी को स्वर्ग मिल गया तब नर्क की ख़ाली जगह कौन कौन रहने लगा । कोई था इक ऐसा जिस ने स्वर्ग को भी ठोकर लगा दी थी क्योंकि उसको कारोबारी समझ थी कि स्वर्ग में नर्कवासी लोगों को चौकीदार सेवक नौकर चाकर बनाया जाएगा उनको उच्च वर्ग से अलग नीचा समझा जाएगा । जब वो नर्क छोड़ने को तैयार नहीं हुआ तो ऊपरवाले की चिंता का विषय बन गया कि किसी एक की खातिर नर्क की तमाम व्यवस्थाएं जारी रखना कठिन होगा । पूछने पर उस ने दोबारा धरती पर जाने का विकल्प चुना ताकि वहां अपने लिए मनचाहा वातावरण तलाश कर सके स्वर्ग उसकी पसंद कभी नहीं था । धरती पर शासक बन कर राजनीति को कीचड़ अथवा इक दलदल बना दिया जाएगा उसका इरादा था , धर्मराज इंद्रदेव यमदूतों से आग्रह किया अब जब मेरे सभी पाप क्षीण हो गए हैं तो मुझसे भी उस राजा की तरह अपनी मर्ज़ी पूछनी चाहिए । धर्मराज भी उस की मीठी मीठी बातों में आ गए और कह दिया बताओ आपको किधर जाना है । उसने कहा मुझे लगता है कि विधाता की निर्धारित व्यवस्था को ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए इसलिए मुझे धरती पर नर्क बनाना है और उस पर शासन करना है । धर्मराज दुविधा में पड़ गए तो उसने समझाया चिंता नहीं करें आजकल उस धरती पर कोई भी मरने के बाद नर्क नहीं जाता है सभी स्वर्गवासी कहलाते हैं । मुझे स्वर्ग को भी नर्क बनाना आता है और मेरे कुछ सहयोगी हैं जिनको इस खेल में आनंद आता है । लेकिन मेरा वादा है कि ऐसा करते हुए भी मैं भगवान और धर्म का डंका बजाता रहूंगा , स्वर्ग का सपना बेच कर जनता का दिल बहलाता रहूंगा । उस व्यक्ति को अजीब ढंग से सभी को अपनी कही गई झूठी बात को सच समझने का गुण हासिल था और उसने विधाता तक को अपना विधान बदलने की बात पर पुन: विचार करने पर सहमत करवा लिया था । ऐसा कहा कि आदमी को नर्क का भय और स्वर्ग की चाहत भगवान की स्तुति उपासना करने को ज़रूरी है । अन्यथा दुनिया ईश्वर पर भरोसा करना छोड़ देगी । बस इस तरह किसी ने देवताओं से वरदान हासिल कर लिया था और शासक बनकर नर्क से बदतर समाज बनाकर मोगैंबो खुश हुआ का अट्हास लगा रहा है । उस का कमाल है अपने खास लोगों को धरती पर ही स्वर्ग से सुंदर माहौल उपलब्ध करवाता है लेकिन जिनको स्वर्ग देखने की कामना है उनको मौत का टिकट देता है गारंटी के साथ । उसका शासन दोधारी तलवार है जिस में लालच भी है और डर भी सरकार चलाने को । उसके शासन में खुश कोई भी नहीं दो तरह की व्यवस्था है कुछ को सभी कुछ कुछ को कुछ भी नहीं मगर ख़ैरात मिलती है ज़िंदा रहने को ज़िंदगी जीने को नहीं ।
ऊपर जब स्वर्ग वालों को नर्क वालों के आगमन का पता चला तो स्वीकार कर लिया यही समझ कर कि उन में बहुत काबिल लोग भी हैं जो मुमकिन है स्वर्ग का कुछ विकास करने में उपयोगी साबित हों । एक तो भीड़ बढ़ गई दूसरा शांति भंग होने लगी मगर बदलाव अच्छा लगता है शुरुआत में । लेकिन नर्कवासी स्वर्ग में आकर भी मनचाहा वातावरण नहीं बनवा पाए तो हलचल होने लगी और बात सत्ता पलटने की होने लगी । आखिर लोकतंत्र से बेहतर क्या हो सकता है मगर गिनती में नर्कवासी अधिसंख्यक और स्वर्गवासी अल्पसंख्यक होने से समस्या विकट लग रही है । सब उल्टा पुल्टा होने की संभावना दिखाई दे रही है ऐसे में सबसे अधिक चिंता उसी की है जिस ने दुनिया बनाकर इक मुसीबत मोल ले ली थी अब ये नई आफ़त सामने खड़ी है ।
पूर्व नीति कथा में आज के शासकों की बात को बखूबी जोड़ा है। यही हो रहा है👌👍
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