जुलाई 13, 2024

चश्मदीद गवाह क़त्ल का ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        चश्मदीद गवाह क़त्ल का ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

इतने साल तक खामोश रहने के बाद शायद उसकी अंतरात्मा जागी होगी तभी उस ने सार्वजनिक सभा में ये बताया कि जिस की तमाम लोग चिंता कर रहे हैं उसका तो कभी का क़त्ल किया जा चुका है । चारों तरफ सन्नाटा पसर गया और हर कोई उन के इस रहस्य को खोलने पर सकते में है । कोई उनसे सवालात ही नहीं कर सकता कि आपने खुद अपनी नज़रों के सामने ये हादिसा होते देखा फिर भी खामोश रहे । खुद उनको ही बताना पड़ा कि उस समय जिस का क़त्ल किया गया उस से मेरा कोई संबंध नहीं था अगर जान पहचान थी भी तो उस तरह की जिस तरह से दुश्मन से होती है । उसका ज़िंदा रहना मर जाना मेरे लिए कोई मायने ही नहीं रखता था , फिर आज जब समझ आई कि उसका वारिस बनकर मुझे मनचाहा सभी कुछ हासिल हो जाएगा तब करीबी रिश्ता बनाना ही पड़ा । 
 
  टीवी पर इस खबर को सुन कर मुझे भी इक घटना की याद आई है । इक सांध्य दैनिक अख़बार की गूंज शहर में सुनाई देती थी , उस को जाने कैसे इक गोपनीय पत्र मिला जिस में किसी बाबा के अपराधों का विवरण था । बिना किसी डर के अपनी औकात को समझे उस पत्रकार ने वो जानकारी अख़बार में छाप कर इक ऐसी भूल की जिस का अंजाम उस का सभी कुछ जलाकर राख होना सामने आया । पुलिस विभाग ने बाबा के अनुयाईयों पर रपट दर्ज करवा आगजनी करने वालों को मौके से ही गिरफ़्तार कर अदालत में पेश कर दिया । बाबा की पहुंच सरकार तक थी इसलिए दंगईयों को बचाने को पुलिस ने तमाम हथकंडे अपनाये लेकिन अदालत को यकीन कौन दिलाए । तब जिस का सब कुछ जलाया गया था उस को समझा कर समझौता करवाया गया और उस से झूठा ब्यान दिलवा कर आरोपी को बचाया गया । आंखों देखा हाल कविता उस घटना की वास्तविकता है कवि गोष्ठी में सरकारी मंत्री की उपस्थिति में ये कविता पढ़ी गई थी खूब तालियां बजी थी विडंबना की बात थी । 

कोई विश्वास करे चाहे नहीं करे उस घटना का कोई चश्मदीद कभी सामने नहीं आया , समझौता भी अमल में नहीं लाया गया था । आज जिस का क़त्ल हुआ बताया गया है उस अपराध का दोषी भी क़त्ल किया जा चुका है ऐसे में इंसाफ़ या सच्चाई की बात नहीं है ये आपदा का अवसर बनाना है लेकिन कब जब सभी कड़वी बातों को पीछे छोड़ वहां से कितना आगे निकल चुके हैं । अधिक नहीं कहते पुरानी हास्य-व्यंग्य कविता दोबारा पढ़ते हैं । याद करना चाहता नहीं मगर भूल भी नहीं सकते कि अभी भी किसी अदालत में कुछ लोगों पर अपराध का मुकदमा चल ही रहा है कोई फ़ैसला हुआ तो नहीं । पता चला है कि उस घटना के भी वही शख़्स चश्मदीद गवाह हैं मगर उसकी गवाही देने को अंतरात्मा से अभी कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी शायद । कहते हैं कि किसी और पर लांछन लगाने से पहले खुद अपने गिरेबान में अवश्य झांकना चाहिए । किसी को अपराधी मानकर उस पर पत्थर फैंकना हो तो शुरुआत वो शख़्स करे जिस ने कभी कोई पाप नहीं किया हो । ये सुनकर सभी के हाथ से पत्थर गिर गए थे कोई साक्ष्य कोई बेगुनाही का प्रमाणपत्र नहीं अपने भीतर से सभी जानते हैं इस दुनिया में सभी से कभी न कभी गुनाह हुआ होता है । राजनीति वैसे भी इक ऐसी दलदल है जिस में धंसा कोई भी साफ़ सुथरा रह पाए बहुत कठिन है , हुए हैं कुछ थोड़े से ऐसे लोग जिनको सत्ता से अधिक सामाजिक मूल्यों की कदर थी । अजब हाल है जिन के घर कांच के बने हैं वो भी दूसरों पर पत्थर उछालने का कार्य करने लगे हैं । दर्पण कोई नहीं देखता अन्यथा चेहरे पर दाग़ किसी से कम नहीं दुनिया भले आपकी नकली चमक दमक से प्रभावित हो इक अदालत है ऊपरवाले की जिस से कुछ भी छिपा नहीं है ।
 

आंखों देखा हाल ( हास्य-व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

सुबह बन गई थी जब रात
ये है उस दिन की बात
सांच को आ गई थी आंच 
दो और दो बन गए थे पांच।

कत्ल हुआ सरे बाज़ार 
मौका ए वारदात से
पकड़ कातिलों को
कोतवाल ने
कर दिया चमत्कार।

तब शुरू हुआ
कानून का खेल 
भेज दिया अदालत ने 
सब मुजरिमों को सीधा जेल।

अगले ही दिन
कोतवाल को
मिला ऊपर से ऐसा संदेश
खुद उसने माँगा 
अदालत से
मुजरिमों की रिहाई का आदेश।

कहा अदालत से
कोतवाल ने
हैं हम ही गाफ़िल 
है कोई और ही कातिल।

किया अदालत ने
सोच विचार 
नहीं कोतवाल का ऐतबार
खुद रंगे हाथ 
उसी ने पकड़े  कातिल 
और बाकी रहा क्या हासिल।

तब पेश किया कोतवाल ने 
कत्ल होने वाले का बयान 
जिसमें तलवार को 
लिखा गया था म्यान।

आया न जब 
अदालत को यकीन 
कोतवाल ने बदला 
पैंतरा नंबर तीन।

खुद कत्ल होने वाले को ही 
अदालत में लाया गया 
और लाश से
फिर वही बयान दिलवाया गया।

मुझसे हो गई थी
गलत पहचान 
तलवार नहीं हज़ूर 
है ये म्यान  
मैंने तो देखी ही नहीं कभी तलवार
यूँ कत्ल मेरा तो 
होता है बार बार 
कहने को आवाज़ है मेरा नाम 
मगर आप ही बताएं 
लाशों का बोलने से क्या काम।

हो गई अदालत भी लाचार 
कर दिये बरी सब गुनहगार 
हुआ वही फिर इक बार
कोतवाल का कातिलों से प्यार।

झूठ मनाता रहा जश्न 
सच को कर के दफन 
इंसाफ बेमौत मर गया
मिल सका न उसे कफन।  
 
 बाबरी मस्जिद विध्वंस का आंखों देखा हाल - saw the condition of babri masjid  demolition with my own eyes-mobile

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