जुलाई 12, 2024

POST : 1863 बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी ( सरकारी फ़रमान ) डॉ लोक सेतिया

  हत्या हुई फिर भी ज़िंदा है ( सरकारी फ़रमान ) डॉ लोक सेतिया  

अध्यादेश जारी किया गया है कि उस दिन संविधान की हत्या हुई थी , इमरजेंसी लगी थी इस विषय पर बहुत कुछ सभी ने लिखा है पहले भी । मैंने भी हमेशा उसका विरोध किया है खुद गवाह रहा हूं 25 जून 1975 की दिल्ली में रामलीला मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की सभा में भाषण सुनने वाली भीड़ में शामिल था । लोकतंत्र को लेकर सवाल उठते रहते हैं कितना स्वस्थ है कितना बीमार है लेकिन संविधान की हत्या का प्रमाण जारी करना किसी नीम हकीम का ज़िंदा को मुर्दा बताना जैसी बात नहीं है । संविधान की शपथ उठाकर सरकार बनाने संसद का सदस्य बनने वाले क्या किसी निर्जीव किताब की बात कर रहे थे अर्थात उनको भरोसा ही नहीं था कि देश ने जिस संविधान को अपनाया उसे कभी किसी राजनेता ने अगर क़त्ल किया तो सभी खामोश बैठे देखते रहे होंगे । तमाम लोग आपात्काल में भी तमाम तरह से विरोध जताते रहे लेकिन जो जेलों में बंद थे उनकी चिंता संविधान होनी चाहिए थी जबकि आपात्काल हटते ही वो तमाम लोग संविधान को भूलकर सत्ता का शतरंज का खेल खेलने लगे थे और कुछ ही महीने बाद आपसी खींचतान ने जनता को निराश कर दिया और विपक्षी दलों की जनता पार्टी सरकार को अपने स्वार्थों की खातिर गिरा दिया गया । आज भी कुछ लोग जो कहते हैं उन्होंने आपात्काल में संघर्ष किया वास्तव में जेल जाने से डरे हुए छिपते फिरते थे , मैंने तब निडर होकर ऐसे लोगों को अपने घर में रखा था । 
 
संविधान ज़िंदा है कभी कोई उसकी हत्या नहीं कर सकता है  झूठा है ये सरकारी अध्यादेश । महात्मा गांधी की हत्या की जा सकती थी इंदिरा गांधी की भी हत्या की जा सकती थी लेकिन कोई तानाशाह कितना भी खुद को ताकतवर समझता हो देश के संविधान की हत्या की कोशिश भी नहीं कर सकता है । भारत एक शांति का संदेश दुनिया को देने वाला देश है लेकिन अपने संविधान की रक्षा खुद जनता करना जानती है । संविधान है लोकतंत्र ज़िंदा है तभी जो भी आज सत्ता पर बैठे हैं उनको अवसर मिला है जैसा ये हत्या हुई की घोषणा करता अध्यादेश समझाना चाहता है वैसा कदापि संभव नहीं अन्यथा क्या पिछले करीब 49 साल तक संविधान कोई मुर्दा लाश था ऐसा कहना शोभनीय नहीं अचरज की बात है । सत्ता की लड़ाई में भी इक मर्यादा का पालन किया जाना चाहिए लेकिन लगता है कुछ लोगों को संविधान सिर्फ सत्ता हासिल करने को इक मार्ग है कोई जीवंत आदर्श ग्रंथ नहीं जैसा सिख धर्म में गुरुग्रंथ साहिब को मानते हैं । वास्तव में हमने अपने सभी धर्म ग्रंथों को इसी तरह समझ लिया है उन से कोई सबक नहीं लेते केवल कहने को शीश झुकाते हैं पूजा करते हैं उन की समझाई राह पर चलते नहीं कभी । धर्मों का हाल सामने है कोई एक मिसाल देने की ज़रूरत नहीं है मगर उस ढंग से संविधान को हत्या हो चुकी है ऐसा सोचना भी देश समाज को रसातल में धकेलना है । 
 
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी , सत्ता का मनमाने ढंग से उपयोग किस किस ने कितनी बार किया असली सवाल यही है । आपात्काल की घोषणा भी संविधान में प्रावधान का उपयोग कर की गई थी और धारा 370 भी संविधान के अनुच्छेद का हिस्सा था उसको हटाया भी गया संविधान में बदलाव कर । दोनों ही कार्य कितने सविधान की भावना और लोकतान्त्रिक मर्यादा को ध्यान में रख कर किए गए और कितना किसी और सत्ता की चाहत को महत्व देने को ऐसे सवाल अनगिनत हैं । विडंबना है कि हर मनोनीत अथवा निर्वाचित शासक अभी भी जब जैसा चाहता है नियम कानून को मनमाने तरीके से बदल या परिभाषित कर लेता है । संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा का राजनेताओं में नितांत अभाव रहा है , कोई चाहे परिवारवाद को बढ़ावा दे या किसी संगठन की विचारधारा को महत्व दे अंतर कुछ भी नहीं है । छाज तो बोले छलनी क्या बोले जिस में हज़ारों छेद हैं । संविधान को जो मानते नहीं थे बदलना चाहते थे जिन्होंने कभी देश की आज़ादी में कोई योगदान नहीं दिया बल्कि गुलामी को पसंद करते थे उनसे संविधान की चिंता की बात पचती नहीं है । 
 
कुछ पोस्ट पहले की लिखी हुई हैं नीचे लिंक दिया गया है :-
 
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देश में अब 25 जून को मनेगा संविधान हत्या दिवस, केंद्र सरकार ने जारी किया  नोटिफिकेशन - modi govt declares 25th june as samvidhan hatya diwas to  honour sacrifices of people during

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