आत्मा - अलग , ज़िंदा लाश लोग ( हास्य-व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
ये कोई झूठी मनघडंत कथा कदापि नहीं है इस विषय पर शोध विचार विमर्श सभी कुछ करने के बाद इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि वास्तव में हर आदमी औरत की आत्मा का अस्तित्व होता है और कोशिश करने पर खोज सकते हैं कि किस की आत्मा का निवास किस जगह है । आजकल कोई सोशल मीडिया पर नियमित रूप से निरंतर सक्रिय व्यक्ति जब कुछ दिन तक दिखाई नहीं देता तब उसके परिचित अपने और बेगाने तक महसूस करते हैं कोई अनहोनी घटना हो गई हो संभव है । खुद सुबह से देर रात तक स्मार्ट फ़ोन की तिलस्मी दुनिया में खोए रहने वाले फोन या इंटरनेट की कमी को सहन नहीं कर सकते और उनको जीवन व्यर्थ प्रतीत होता है बगैर सोशल मीडिया के । जिस्म और रूह का रिश्ता हमेशा ऐसा उलझा हुआ रहा है आदमी का जिस्म धर्म उपदेश सुनता दिखाई देता है जबकि मन किसी और दुनिया में विचरण करता रहता है । प्राण आत्मा की उपस्थिति है अन्यथा देह सिर्फ़ मिट्टी है किसी पत्थर की तरह जिस में कोई संवेदना नहीं होती है । धनवान सेठ की आत्मा तिजोरी में बंद रहती है तो राजनेताओं की आत्मा जो भले मर चुकी होती है तब भी सत्ता की कुर्सी के पाये से जकड़ी रहती है कुर्सीविहीन राजनेता बिना जल मछली की तरह छटपटाते हैं । शासक की आत्मा किसी एक जगह टिकती नहीं बस भटकती रहती है कहते हैं कोई अभिशाप मिला हुआ है तख़्त ओ ताज़ को चाहे कितने नर्म मुलायम कपड़े से सामान से निर्मित हों शासक को कांटों की चुभन का आभास देते हैं ।
सभी सरकारी प्रशासन वालों की आत्मा अपने बदन से निकल कर शासक की चरणों की धूल से घुलमिल जाती है अपना वजूद मिटाकर तभी मनवांछित फल प्राप्त होते हैं । आत्मा परमात्मा से मिले चाहे नहीं मिले बड़े लोगों की अंतरात्मा को सुकून सामान्य प्राणियों से अपनी प्रशंसा सुनकर ही मिलता है । जनता आम आदमी भूखे नंगे गरीब बदहाल लोग अमीरों शासकों धनवान उद्योगपतियों सत्ताधारी और विपक्षी राजनेताओं की सबसे बड़ी आवश्यकता होते हैं अन्यथा खास वर्ग के सभी खुद को सबसे बड़ा ऊंचा और महत्वपूर्ण होने का अहंकार लिए फिरते हैं । अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को कभी नहीं सुनने वाले लोग ही नाम शोहरत रुतबा हासिल कर पाते हैं यही साधारण से विशिष्ट होने की शर्त है । शायर राजेश रेड्डी जी कहते हैं ,
' न बस में ज़िंदगी उस के , न काबू मौत पर उस का , मगर इंसान फिर भी कब खुदा होने से डरता है '।
विषय था आत्मा का अस्तित्व तलाश करने की तो खोजने पर शोध करने पर पाया गया कि जैसे कहानियों में किसी की जान किसी तोते में बसती थी कुछ उसी तरह हम सभी की आत्माएं निवास करती हैं जिस किसी भी से हमारा प्रेम लगाव मोह सबसे अधिक होता है । लिखने वालों की आत्मा अपनी किताबों रचनाओं में उलझी रहती है , प्रकाशक की किताबों की बिक्री की आमदनी से जकड़ी लिखने वाले की रॉयल्टी की उलझन से निकलने को बेताब रहती है । अख़बार टीवी चैनल वालों की आत्माएं विज्ञापनों और टीआरपी की अंधी दौड़ में कहने को सबसे तेज़ दौड़ते लगता हैं जबकि वास्तव में कोल्हू के बैल की तरह उसी इक दायरे में घूमते रहते हैं । कोल्हू के बैल की तरह से ही उनकी आंखों पर बंधी स्वार्थ और विवेकहीनता की पट्टी उनको खबर नहीं होने देती कि सबको ख़बर देते देते खुद से बेखबर क्या करना था करने क्या लगे हैं । आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास की हालत हो गई और समाज में सबसे बढ़कर पतन इन्हीं का हुआ है होता जा रहा है ।
आखिर में उनकी बात जिनको समाज की व्यवस्था की लोकतंत्र की मर्यादा की न्याय की समानता की हमेशा रखवाली करनी थी उनहोंने अपनी आत्मा अपना ज़मीर सोने चांदी के चंद सिक्कों के बदले कहीं बंधक रख दिया है । अब कठपुतली क्या कर सकती है जिस के हाथ धागे हैं उसी के इशारे पर नाचने को विवश हैं । कोठे पर नाचने वाली जिस्म का सौदा किया करती थी ये सभी ज़मीर तक का सौदा करते हैं और चुपके चुपके नहीं सरे आम खुले बाजार में बेशर्मी से किया करते हैं । जिस्मफ़रोशी की तरह इस कारोबार में धन दौलत सभी मिलता है लेकिन बदनाम नहीं कहलाते बुरे हैं लेकिन नाम शोहरत वाले समझे जाते हैं । ये बातों से झगड़ा दंगा फ़साद सब करवाते हैं सुबह शाम बहस करवाते हैं तकरीर सुनवाते हैं ये काठ की तलवारों से जंग लड़ते हैं हार को जीत साबित कर शूरवीर बन जाते हैं । कहीं जाना नहीं ब्रेक के बाद आते हैं कितनी बार दर्शक पर सितम ढाते हैं ।
देश की आबादी की संख्या एक सौ चालीस करोड़ है लेकिन उन सभी को ज़िंदा नहीं समझा जा सकता है बहुत लोग चलते फिरते सांस लेते खाते हैं पीते हैं लेकिन सिर्फ जिस्मानी तौर पर । उनकी रूहें उनकी आत्माएं उन से अलग कहीं मुर्दा जैसी पड़ी रहती हैं । शिक्षा विज्ञान आधुनिक संसाधन बढ़ने से सभी की बौद्धिक प्रगति नहीं होती है । सोचना समझना अपने विवेक का उपयोग कर उचित अनुचित अच्छा बुरा सही गलत का आंकलन करना छोड़ सब को देख कर भीड़ का हिस्सा बन कर कितने ही लोग ज़िंदगी भर किसी लाश की तरह जीवन बिताते हैं उनका दुनिया में आना दुनिया से चले जाना वास्तव में कुछ भी अंतर नहीं लाता है । शायद अधिकांश लोग सोचते ही नहीं कि ज़िंदगी को सार्थक ढंग से जीने का ढंग क्या होना चाहिए । आपको आत्माओं का इक घर दिखलाते हैं ।
Bahut shandaar lekh h sir...Vyangya se bharpoor 👌
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