हास्य रस की चौपाइयां - डॉ लोक सेतिया
सबक सिखाने को इक हस्ती है आई , करना सभी लोग बस नेक कमाई
अपने दिलों से मिटा कर गहरी खाई , रहो मिल जुल बनकर सब भाई भाई ।
बड़े प्यार से पास सभी को बुलाया , ख़ुदा ने भेजा फ़रिश्ता ज़मीं पे आया
बंद करवा आंखें सच दिखलाया , सूरत सभी की असली नज़र थी आई ।
सबको पाप पुण्य का भय जो दिखाता , खुद उसका नहीं कोई बही खाता
धर्म बेचता धर्म खरीदता सुबह शाम , मत पूछो उसकी कैसी है चतुराई ।
विद्यालय का शिक्षक है भाग्य विधाता , पढ़ाई ट्यूशन फीस लेकर पढ़ाता
चमचों को नकल करवा उत्तीर्ण कराए , शिक्षा से करता रहता है गुरुआई ।
डॉक्टर है ये इक सरकारी लगी है जिसे , ड्यूटी पर नहीं रहने की बिमारी
निजी अस्पताल में उपलब्ध हमेशा है , सबको लूटता हमेशा ही हरजाई ।
ऊंची दुकान पर मीठे फीके पकवान , बिकता खूब मिलावटी सामान है
तोल मोल कर बोलता मधुर बोल , होती तभी दोगुनी से चौगनी कमाई ।
नेता कितना बड़ा चाहे हो छोटा , नहीं कभी भी सगा किसी का होता
शहर राज्य देश सबका है लुटेरा , फिर भी कहलाता सबका है भाई ।
फ़र्ज़ नहीं निभाना उसको है आता , हरदम रहे मौज मनाता इतराता
कागज़ी महल भी खूब बनाता जाता , हर अधिकारी होता करिश्माई ।
दूध है कितना कितना मिला पानी , बड़ी अजब है उसकी भी कहानी
क्रीम मख़्खन पनीर दूध मलाई , असली क्या नकली की कठिनाई ।
इक बाबा बना है बड़ा कारोबारी , गली गली जिसकी दुकान खुलती
नाम पे उसके सब बढ़िया इश्तिहार , खुद ही अपनी बजाए शहनाई ।
ताज़ी कहकर बासी दे जाये सब्ज़ी , दाम चौगने पर फिर भी सस्ती
तराज़ू और गिनती में गड़बड़ है ज़रा , बस नहीं है कुछ भी और बुराई ।
नगरपालिका का है इक कर्मचारी , होगा भला वह कैसे कोई अनाड़ी
तीज त्यौहार उपहार की खातिर , होती गली की पूरी तरह सफाई ।
सबको आईने सामने बिठा कर , इधर उधर की हर खबर सुनाकर
बाल संवारे ख़िज़ाब लगाए जो , हेयर सैलून पार्लर है अब नहीं नाई ।
पत्नी को है रोज़ सताता जो , हरदम दहेज के ताने रहता सुनाता
माल ससुर का सब खा जाता , बड़ा बेशर्म होता है ऐसा भी जंवाई ।
😊 wah बहुत खूब
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