नवंबर 21, 2023

ख़्वाब तो ख्वाब थे अब ताबीर दिखा दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

ख़्वाब तो ख्वाब थे अब ताबीर दिखा दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

ख़्वाब तो ख़्वाब थे अब ताबीर दिखा दो 
खूबसूरत नई इक तस्वीर बना दो । 
 
रहनुमा किस तरह सब बर्बाद हुआ है 
अब छुपाओ नहीं कुछ सब साफ़ बता दो । 
 
राम का राज कहते रहते सब रावण 
ज़ालिमों के महल की बुनियाद हिला दो । 
 
आप कछुए नहीं हम ख़रगोश नहीं हैं 
इस नये दौर के कुछ किरदार पढ़ा दो ।
 
तुम खिलाना मुहब्बत के फूल हमेशा 
दोस्तो नफ़रतों को मत और हवा दो । 
 
रौशनी को घटाएं क्या रोक सकेंगी 
बन के सूरज अंधेरों को जड़ से मिटा दो ।
 
सबको आता यहां पर बस आग लगाना 
आप बारिश करो ' तनहा ' आग बुझा दो ।   
 

  ( 11 सितंबर 2003 को लिखी डायरी पर रचना संशोधित किया है। ) 


 

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