उस की अदालत में पक्षपात नहीं होता ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया
अपने आस पास देखना इक न इक शख़्स आपको नज़र आएगा जो बड़ा शांत स्वभाव से साधारण ढंग से जीवन जीता है । किसी से कोई लड़ाई झगड़ा नहीं कोई छल कपट धोखा चालाकी नहीं करता न ही अपने आप को कोई ख़ास समझता है मन में किसी तरह का कोई अहंकार नहीं रखता है । शायद ही उसको ज़िंदगी में कोई असहनीय दुःख मिलता है बल्कि कभी किसी अन्य कारण से उसको कोई दर्द घाव मिले भी तो खुद ब खुद ठीक भी हो जाता है । मैंने देखा है कुछ ऐसे बज़ुर्गों को जो हमेशा अच्छे कर्म करते थे कभी धार्मिकता का प्रदर्शन नहीं करते थे । मैं समझता हूं उनको भगवान से कभी अपने पापों की क्षमा नहीं मांगनी पड़ी होगी और उनको कभी मानसिक तनाव और कोई पछतावा कितना पाया कितना नहीं हासिल हुआ को लेकर शायद नहीं रहा होगा ।
अब बात करते हैं हम जैसे सभी साधारण लोगों की , हम बहुत कुछ नहीं सब कुछ सबसे ज़्यादा पाना चाहते हैं और अपने मतलब की खातिर किसी से भी अनुचित व्यवहार कर सकते हैं । हम सुबह शाम भगवान से अपने पापों की अपराधों की क्षमा मांगते हैं । सोचते नहीं कि ईश्वर पक्षपात नहीं कर सकता है किसी को अनजाने में की भूल की माफ़ी दे सकता है लेकिन किसी अन्य व्यक्ति से किए गलत आचरण की माफ़ी कभी नहीं दे सकता क्योंकि ऐसा करने से पीड़ित व्यक्ति को न्याय नहीं मिल सकता है । अब थोड़ा ध्यानपूर्वक देखना कितने लोगों ने तमाम छल कपट धोखा साज़िश कर बड़ा लंबा चौड़ा साम्राज्य स्थापित कर लिया लेकिन धन दौलत नाम शहरत सब पाकर भी खुशहाल ज़िंदगी नहीं मिल पाई । जीवन भर दुःख दर्द परेशानियां और पीड़ा मिलती रहती है तब अपने पापों का प्रायश्चित नहीं क्षमा मांगते रहते हैं जो मिलती नहीं है । वास्तव में हमको भगवान से अपने अपराधों की सज़ा मांगनी चाहिए माफ़ी नहीं क्योंकि जिन जिन से भी हमारे कारण अन्याय हुआ उसका प्रायश्चित हो सके । मुझे नहीं लगता उस की सब से बड़ी अदालत में कोई दलील किसी के गुनाहों की सज़ा से बचा सकती है । विधि के विधान की बात सभी जानते हैं जैसे कर्म करते हैं भले-बुरे ठीक वैसा ही फल मिलता है बबूल बोने वाले आपको आम खाते मिल सकते हैं लेकिन उनके बाग़ में कांटे उगते हैं फल नहीं ये आपको नहीं पता कि बिना मेहनत आम खाने वालों की वास्तविकवता क्या है । साधारण लोगों की बात छोड़ उनकी बात करते हैं जो पेड़ नहीं लगाते पर आम खाने का जुगाड़ कर लेते हैं ।
शासक वर्ग यही करता है चलिए इक इक बात को विवरण सहित समझते हैं , प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री या चाहे किसी भी बड़े से बड़े पद पर नियुक्त होकर कोई वेतन सुविधाएं अधिकार उपयोग करता है लेकिन अपना कर्तव्य सच्चाई ईमानदारी और शुद्ध अंतकरण से निभाता नहीं है तो वो सबसे बड़ा गुनहगार है । विडंबना देखिए ये सभी क्या करते हैं अन्य सभी अधीनस्थः कर्मचारियों को समय पर दफ़्तर आने का नियम पालन करने को आदेश जारी करते हैं ख़ुद कभी उसका पालन नहीं करते हैं । ये अनुचित है कि कोई अधिकारी घर से ही तथाकथित कैंप ऑफिस की व्यवस्था कर मनमानी करे जब मर्ज़ी कार्य करे नहीं करे । इक बात और जो सामान्य लगती है प्रशासनिक अधिकारियों की अनावश्यक बैठकों का ताम झाम किसी पार्टी की तरह जलपान की भोजन की व्यवस्था जो उनकी घरेलू और दफ़्तर के समय के बाद होनी चाहिए । शासक नियुक्त होने का मतलब ये नहीं होना चाहिए कि आप देश राज्य शहर का कार्य करने को अनदेखा कर इधर उधर सैर सपाटा या किसी सभा समारोह में अपनी शान दिखाने या भाषण देने पर अपना समय और साधन उपयोग करें या अपनी राजनीति को बढ़ावा देने का प्रचार करने का कार्य करें । आपका राजनैतिक दल अलग है जिस की चिंता शासन और सरकार की नहीं होनी चाहिए । आपको किस धर्म देवी देवता में आस्था है उसका शासन सरकार से कोई सरोकार नहीं होना चाहिए । इस प्रकार का आयोजन ख़ुद सभी की निजी आय से और व्यक्तिगत रूप से किया जाना चाहिए । सरकारी दफ़्तर सरकारी कार्य के लिए हैं किसी आपसी मेल मिलाप या संबंध बनाने की जगह नहीं है ।
जितना भी धन साधन और समय सरकारी प्रशासन मंत्री अन्य पुलिस सुरक्षा बल न्यायपालिका के लोग ऐसे सरकारी संसाधनों से खर्च करते हैं उसको जुर्म से बढ़कर संगीन अपराध नहीं पाप समझा जाना चाहिए । अफ़सोस है यही होता रहता है और किसी को ऐसे जनधन की बर्बादी करते संकोच नहीं होता है । शासक नियुक्त होने से कोई देश का मालिक नहीं बन जाता जैसा हर राजनेता और अधिकारी मानने लगते हैं । जो लोग सार्वजनिक पदों पर बैठ सबसे अधिक अपने वर्ग नेताओ अधिकारियों के लिए शानदार भवन आदि निर्माण करते हैं उनको पहले सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन्होंने उनको पद पर बिठाया है या जिन की आय से कर एकत्र कर उनका वेतन मिलता है क्या उनको सब हासिल है सुख सुविधाएं उपलब्ध हैं । जब तक अधिकांश जनता को बुनियादी सुविधाएं नहीं उपलब्ध करवाई जा सकती उनकी शानो शौकत अपने अधिकारों का गलत मनमाना उपयोग अक्षम्य अपराध है , अफ़सोस ऐसा करने वाले दावे करते हैं कि उन्होंने जनता को क्या क्या दिया है जबकि बात इस के विपरीत है उन्होंने जनधन की लूट ही की है बर्बाद किया है ।
इक वर्ग है अख़बार टीवी चैनल सोशल मीडिया जिन्होंने अपना दायित्व भुला दिया है और देश समाज को सच दिखाने की बजाय झूठ को सच साबित करने लगे हैं । ये वो लोग हैं जिन्हें अंधेरा मिटाना था मगर ये खुद अपनी चकाचौंध में अंधे होकर विज्ञापन और विशेषाधिकार पाने की दौड़ में अपना रास्ता भटक गए हैं । आज़ादी के बाद न केवल सबसे अधिक नैतिक पतन इनका हुआ है बल्कि यही समाज की देश की बदहाली के लिए उत्तरदायी भी हैं क्योंकि इन्होने अंधेरे को सूरज नाम देने का कार्य डंके की चोट पर किया है । कुछ चाटुकार लोग सरकार अधिकारी से अनुकंपा पाकर समाजसेवी का चोला पहन अपना घर भर रहे हैं सरकारी खज़ाने से धन प्राप्त कर के । उद्योगपति धनवान व्यौपारी शासक से मिलकर जनता पर खर्च होने वाला पैसा अपनी तिजोरी भरने का अपराध करते हैं लेकिन मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारे को दान देने का दिखावा कर अपने पापों को ढकने की कोशिश करते हैं जबकि सब जानते हैं उनकी अमीरी कैसे बढ़ती है । उपरवाले की अदालत में न्याय होगा कोई पक्षपात नहीं इसलिए जीवन में ऐसे अपकर्म मत करें की उसकी अदालत में कटघरे में मुजरिम बनकर खड़ा होना पड़े ।
आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही बढ़िया लेख है सर...पोल खोल के रख दी है आपने
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