सितंबर 21, 2023

शांति की कामना प्रार्थना और संदेश ( दिन मनाने का चलन ) डॉ लोक सेतिया

    शांति की कामना प्रार्थना और संदेश ( दिन मनाने का चलन ) 

                                    डॉ लोक सेतिया  

आज विश्व शांति दिवस है तो पहले उसी की चिंता करते हैं । शांति क्या और कैसी शांति मन की शांति या इक ऐसी शांति जो तूफ़ान से पहले की शांति होती है । हम तो कमाल करते हैं जिसे चैन से इक पल जीने नहीं देते उसकी मौत पर शांति शांति शांति की रट लगाते हैं शोक सभाओं में शोक कम दिखावा अधिक होता है । अभी तक कोई पढ़ा लिखा ज्ञानवान शांति का पता ठिकाना नहीं तलाश सका है जाने कितने साधु संत महात्मा शांति की ख़ातिर भटकते रहे और बेचैन रहे शांति के साक्षात दर्शन नहीं संभव हुए । बाद में उनके उपदेश सुनकर पढ़कर लोग किसी कल्पनालोक की कल्पनाओं में खोये रहते हैं । देशों में आपसी विवाद शांति से हल करने की बात जिस ने की थी पंचशील समझौता की बात कर उसको सभी ने दोषी अपराधी जाने क्या क्या नहीं साबित करने का जतन किया , उनकी भावना उनकी कोशिश उनकी समझ उनकी भविष्य की सोच , सब को इक जंग ने जो पड़ोसी देश ने पीठ में छुरा घोपने का कार्य कर सरहद पर विश्वास दोस्ती भाईचारे का खून बहाकर छेड़ दी थी उस ने व्यर्थ साबित कर दिया । अभी भी हम उसी ज़हरीले सांप को दूध पिलाने की परंपरा निभाते चले आते हैं । हर बार उसकी बातों में आते हैं अपना सब लुटाते गंवाते हैं फिर पाछे पछताते हैं । चिड़िया चुग गई खेत और हम कबूतर उड़ाते हैं ये सफ़ेद रंग वाले पंछी आशिक़ों के बड़े काम आते हैं बड़ी गोपनीयता से संदेश सोशल मीडिया की तरह पहुंचाते हैं । सभी देशों के शासक शांति दिवस का महत्व समझाते हैं हम अब कितने बलशाली हैं क्या क्या साज़ो-सामान बनाते हैं दुश्मनों को धूल चटाते हैं । दोस्ती का किसी से नाता नहीं है दुश्मनी का हिसाब बराबर रखते हैं बड़े बड़ी बातें करते इतराते हैं । शांतिदिवस कोई मकसद नहीं है बस इक औपचरिकता है जो जाने कितने अन्य भी अलग अलग नाम से मनाकर निभाते हैं ।  
 
  अभी फिर देश को पुराना भूला किस्सा याद आया संसद नई बनाकर नया ढंग आज़माया , पर महिला दिवस नहीं है ये चुनाव का है इक घना काला साया । शर्तों की बात लाज़िम है तीसरा हिस्सा मिले क्या कम है इक यही औरत पर सितम है उसका अधिकार नहीं सिर्फ रहम है हाय फिर भी कितना मातम है । अभी काफ़ी इंतज़ार करना होगा उनको जीने से पहले मरना होगा , ये सवाल बेमानी है जिस का कहना है मेहरबानी है कब उसने अपनी पत्नी को न्याय दिया सारी दुनिया की फ़िक्र नादानी है । आईए इक राह बनाते है इस आरक्षण को जड़ से मिटाते हैं आपको जनसंख्या की ज़रूरत है आधा-आधा फ़िफ्टी -फ़िफ्टी फार्मूला बनाते हैं । जितने भी दल हैं पचास फ़ीसदी पुरुष पचास फ़ीसदी महिला उम्मीदवार खड़े कर दिखाते हैं कि हम बराबर हैं महिलाओं से नहीं घबराते हैं । शिक्षा रोज़गार स्वास्थ्य सेवा इन सभी में बड़े फासले हैं अमीर और गरीब के लिए सही आज़ादी और समान विकास के लिए समानता लाते हैं ये अंतर ये ज़ुल्म देश पर इक कलंक है उसको मिटाते हैं । चांद से क्या लेना देना अपनी धरती को सुरक्षित बचाते हैं पेड़ जंगज काट काट कर पर्यावरण को बर्बाद किया है अब कसम खाते हैं सही राह लौट जाते हैं । अन्यथा मरघट की शांति की आहट सुनाई देने लगी है मानवता की खैर मनाते हैं इंसानियत को ज़िंदा रखते हैं सब फ़ज़ूल की बातें भूल जाते हैं । झूठ और सच को इक तराज़ू पर रख कर देख लिया है किस तरफ़ झुका पलड़ा क्यों थोड़ा समझते हैं समझाते हैं सत्ता वाले झूठ वाले पलड़े पर इक चुंबक लगाते हैं और अपनी सफलता पर इतराते हैं ये बहुमत की सियासत है जिस में इंसान नहीं बेजान तोले जाते हैं । 
 

 

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