सितंबर 18, 2023

ज़हर हंस कर के पीना आ गया है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

 ज़हर हंस कर के पीना आ गया है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा ' 

ज़हर हंस कर के पीना आ गया है 
रोज़ मर मर के जीना आ गया है । 
 
ज़ख़्म देने हैं जितने आप दे लो 
हम को ज़ख़्मों को सीना आ गया है । 
 
जिस जगह भी कदम थक कर रुके हैं 
बस वहीं घर का ज़ीना आ गया है ।  
 
ज़िंदगी आख़िरी दम तक लड़ेगी 
मौत को क्यों पसीना आ गया है । 
 
थी कभी सब शरीफ़ों की ये बस्ती
दौर अब जामो मीना आ गया है । 
 
दफ़्न जिसको किया था आपने ख़ुद 
है खबर फिर कमीना आ गया है । 
 
साल ' तनहा ' नया आना था लेकिन 
एक गुज़रा महीना आ गया है । 
 

  

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