जून 08, 2023

ख़ुश्क आंखें हैं जुबां ख़ामोश है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

ख़ुश्क आंखें हैं जुबां ख़ामोश है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

ख़ुश्क आंखें हैं जुबां ख़ामोश है 
हो गई हर दास्तां ख़ामोश है । 
 
रात जैसे दिन हैं सभी लगने लगे 
हो गया अपना जहां ख़ामोश है । 
 
बात करने को कई दिल में अभी 
हम भी चुप वो मेहरबां ख़ामोश है । 
 
हैं बड़े साये नहीं आवाज़ पर 
चुप ज़मीं है आस्मां ख़ामोश है । 
 
सरसराहट सी सुनी हमने यहां 
हर गली हर इक मकां ख़ामोश है ।
 
धूल भी होने लगी बेचैन क्यों 
रास्ते का कारवां ख़ामोश है । 
 
तोड़ दिल को पूछते ' तनहा ' बता
हो गया क्यूं जानेजां ख़ामोश है ।     
 
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