जून 07, 2023

हुनर है अपना सभी नाज़ उठा लेते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

 हुनर है अपना सभी नाज़ उठा लेते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

हुनर है अपना सभी नाज़ उठा लेते हैं 
कहीं भी कोई मिले दोस्त बना लेते हैं । 
 
हसीन वादी में हमसफ़र मिले कोई गर 
तो रेगिस्तान में फूल खिला लेते हैं । 
 
उठा दुआ के लिए हाथ नहीं कुछ मांगा 
नसीब बिगड़ा हुआ खुद ही बना लेते हैं । 
 
जिन्हें अकेले में जीने का सलीका आता 
वो लोग ख़्वाबों की दुनिया को सजा लेते हैं । 
 
कभी हमारी वफ़ा को भी परखना इक दिन 
रस्म मुहब्बत की हर एक निभा लेते हैं । 
 
कहीं किसी से मिलें मिल के मुस्कुराते हैं 
ये अश्क़ अपने ज़माने से छुपा लेते हैं । 
 
कभी भी बेदर्द मत तुम बन जाना ' तनहा '
यकीन करते हैं तुम से जो दवा लेते हैं । 
 
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