जून 08, 2023

कौन किस तरह जीता , सोचता कोई नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

   कौन किस तरह जीता , सोचता कोई नहीं ( ग़ज़ल ) 

                        डॉ लोक सेतिया ' तनहा '  

कौन किस तरह जीता , सोचता कोई नहीं 
बदनसीब जनता को  , देखता कोई नहीं । 
 
हाथ जोड़ कर तुम सरकार से खैरात लो 
लूट को अमीरों की रोकता कोई नहीं । 
 
अब नहीं मिलेगा उनको खुला आकाश जब 
पर उड़ान भरने को खोलता कोई नहीं ।  

छटपटा रहे जकड़े बेड़ियों में लोग हैं
कुछ रिवायतों को अब तोड़ता कोई नहीं । 

कौम के मुहाफ़िज़ होते नहीं ऐसे कभी 
बेज़मीर सारे सच बोलता कोई नहीं । 
 
दौर नफ़रतों का ऐसी सियासत देश की 
चोर सब सिपाही हैं मानता कोई नहीं । 

देशभक्त होने का टांग तमगा जो लिया 
कौन दे गया  ' तनहा ' पूछता कोई नहीं । 




 

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