जून 06, 2023

ग़ज़ल पहले प्यार की ( नहीं कहते ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

   ग़ज़ल पहले प्यार की ( नहीं कहते ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा ' 

दिल धड़कने को मुहब्बत नहीं कहते 
सर झुकाने को इबादत नहीं  कहते ।  
 
गर कभी तकरार हो दोस्ती में तब 
भूल जाते हैं अदावत नहीं कहते । 
 
दिल लगाना दिल्लगी मत समझ लेना 
साथ रहने को ही उल्फ़त नहीं कहते । 
 
बेक़रारी ख़त्म होती नहीं मिलकर 
चैन आ जाए तो राहत नहीं कहते । 
 
प्यार को दुनिया ख़ता मानती क्यों है 
है दिलों की उनकी चाहत नहीं कहते । 
 
दूर होने से वफ़ा और कम नहीं होती 
हो गई उनसे है नफ़रत नहीं कहते । 
 
ये मुहब्बत इक तराना सुनो ' तनहा '
हर फ़साने को हक़ीक़त नहीं कहते । 
 
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