जून 10, 2023

ज़हर खुद ही आकर पिला दे कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

   ज़हर खुद ही आकर पिला दे कोई  ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

ज़हर खुद ही आकर पिला दे कोई
मुहब्बत करने की सज़ा दे कोई ।
 
नहीं कोई शिकवा ग़मों का फिर भी 
कहां रहती खुशियां बता दे कोई । 
 
गुज़ारी हमने उम्र हंसते गाते 
रहें चुप हम कैसे सिखा दे कोई । 
 
मेरे सीने में आग जलती कब से 
कभी आ कर उसको बुझा दे कोई । 
 
यही दिल की इक आरज़ू है बाक़ी 
मुझे गा कर लोरी सुला दे कोई । 
 
अंधेरों ने बर्बाद कर दी दुनिया 
बुझे सारे दीपक जला दे कोई । 
 
लिखा जो तुमने उम्र सारी ' तनहा '
नहीं कोई पढ़ता मिटा दे कोई । 
 

 
 


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