अप्रैल 21, 2023

विरासत बोझ बनती जा रही है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

   विरासत बोझ बनती जा रही है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

विरासत बोझ बनती जा रही है 
सियासत बस यही समझा रही है ।  

करेंगे ज़ुल्म  दहशतगर सभी पर 
वो चुप रहने के गुर सिखला रही है । 

सभी भूखे मनाओ मिल के खुशियां 
हां सबको याद नानी आ रही है । 

नचाती सबको तिगनी नाच सत्ता 
वीभस्त राग सुर में गा रही है । 

हुक्मरानों की बातें राज़ हैं सब 
बुढ़ापों पर जवानी छा रही है । 

थी जनता आ गई झांसों में उनके 
उन्हें दे वोट खुद पछता रही है । 

करो मत बात आदर्शों की  ' तनहा '
रसातल तक पहुंचती जा रही है । 
 

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ कहें तो...

    सियासत बोझ बनती जा रही है।
    अभी तक तो यही समझा रही है

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  2. हुक्मरानों....की ...बुधापों पर जवानी...👌👍

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