ज़मीं हो दर्द जैसे आस्मां खुशियां ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
ज़मीं हो दर्द जैसे आस्मां खुशियां
नहीं कोई खबर रहती कहां खुशियां ।
जुदा होकर मिलन होगा किसी दिन तब
रहेंगी फिर हमारे दरमियां खुशियां ।
जहां पर दर्द का बाज़ार सजता है
ज़माना ढूंढता फिरता वहां खुशियां ।
सभी से प्यार अपनी तो हक़ीक़त है
नहीं शायद हमारी दास्तां खुशियां ।
न जाने कब से हम इंतिज़ार करते हैं
कभी आएं हमारे घर यहां खुशियां ।
हमेशा ख़्वाब देखे , जागते सोते
यकीं लगती कभी लगती गुमां खुशियां ।
किसी दिन इस जहां को छोड़कर ' तनहा '
रहेंगे जा वहीं मिलती जहां खुशियां ।
बहुत खूब
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