अप्रैल 20, 2023

ज़मीं हो दर्द जैसे आस्मां खुशियां ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

    ज़मीं हो दर्द जैसे आस्मां खुशियां ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

ज़मीं हो दर्द जैसे आस्मां खुशियां 
नहीं कोई खबर रहती कहां खुशियां । 
 
जुदा होकर मिलन होगा किसी दिन तब 
रहेंगी फिर हमारे दरमियां खुशियां । 
 
जहां पर दर्द का बाज़ार सजता है 
ज़माना ढूंढता फिरता वहां खुशियां । 
 
सभी से प्यार अपनी तो हक़ीक़त है 
नहीं शायद हमारी दास्तां खुशियां । 
 
न जाने कब से हम इंतिज़ार करते हैं 
कभी आएं हमारे घर यहां खुशियां । 
 
हमेशा ख़्वाब देखे , जागते सोते 
यकीं लगती कभी लगती गुमां खुशियां ।  
 
किसी दिन इस जहां को छोड़कर ' तनहा '
रहेंगे जा वहीं मिलती जहां खुशियां । 
  


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