मार्च 31, 2023

ये ज़माना बड़ा ही ज़ालिम है , उसपे इल्ज़ाम धर गया कोई ( तैं की दर्द न आया ) डॉ लोक सेतिया

 ये ज़माना बड़ा ही ज़ालिम है ,  उसपे इल्ज़ाम धर गया कोई 

                     ( तैं की दर्द न आया ) डॉ लोक सेतिया

आधी रात को कितनी बार मुझे कोई घटना सोने नहीं देती कल शाम की खबर ने फिर मुझे झकझोर कर रख दिया । हरियाणा के चरखी दादरी में इक आईएएस अधिकारी के दादा दादी ने ज़हर खा कर ख़ुदकुशी कर ली । सरकार के लिए टीवी अखबार के लिए ये कोई पहली अनहोनी घटना नहीं है और देश की राज्य की सरकार से लेकर मानव अधिकारों की बात करने वाली संस्था इस पर अधिक से अधिक इक ब्यान देकर अपना दामन छुड़ा लेगी । कोई देश समाज की सड़ी गली व्यवस्था को लेकर शायद गंभीरता से विचार नहीं करेगा । अभी कुछ दिन पहले मैंने यही बात लिखी थी प्रधानमंत्री से लेकर राज्य सरकार के बड़े पदों पर बैठे अधिकारी राजनेताओं को , 
 
" राम - राज्य की परिकल्पना की बात करने से पहले अपने प्रशानिक अधिकारी कर्मचारी को मानवता और ईमानदारी का सबक अवश्य पढ़ने को निर्देश दें और जो अमानवीय आचरण करता हो उसको जनसेवा के पद पर अयोग्य घोषित कर देना उचित होगा "। 
 
  ये चिंता की नहीं रौंगटे खड़े करने वाली बात है कि ऐसे बेदर्द लोग जिनको अपने बड़े बज़ुर्गों की जान की परवाह नहीं और साधन पैसा सब पास होने पर भी उनको प्यार से आदर पूर्वक नहीं रहने देते बल्कि खाने तक की देखभाल नहीं करते , वो लोग ऊंचे पद पर नियुक्त होकर साधारण जनता की ख़ाक परवाह करते होंगे ।

  आज जब मैंने अपने ब्लॉग पर ख़ुदकुशी कर गया कोई लिख कर सर्च किया तो 43 पोस्ट पहले से लिखी मिली और कोई भी बिना कारण नहीं लिखी गई होगी आज की तरह कोई वजह रही होगी । 2012 की लिखी ग़ज़ल अंत में फिर से दोहराऊंगा बाक़ी सब कोई भी ब्लॉग पर खोज सकता है । सबसे पहली बात ये कोई किसी एक आईएस अधिकारी की बात नहीं है जनहित की बात लिखते सामाजिक समस्याओं पर बदलाव की कोशिश करते बार बार मुझे ऐसे लोग मिलते रहे हैं । सरकारी विभाग कानूनी शिकंजा लिए सामान्य नागरिक को जकड़ने को व्याकुल हैं और कोई भी ऊपर से उनको रहम और संवेदना का ख्याल रखने को निर्देश नहीं देता बल्कि चाहे किसी की रगों में खून बचा नहीं हो सरकार को हर ढंग से आखिरी बूंद तक निकाल लेने की बात समझाई जाती है । और ये सिर्फ सरकारी अफ़्सर कर्मचारी नहीं समाज में अधिकांश लोग अपने से कमज़ोर का शोषण करते रत्ती भर भी संकोच नहीं करते हैं । इक घटना याद आई मैं अपनी क्लिनिक के बाहर धूप में बैठा था कि इक गरीब मज़दूर मेरे पास आया बिलख रहा था , क्या हुआ पूछने पर उस ने बताया कि जिस रईस नाम शोहरत वाले समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति के पास नौकरी करता है उस से वेतन बढ़ाने की विनती की और जब नहीं स्वीकार की विनती तो नौकरी छोड़ने की बात कहने पर उस ने कहा था " जाओ और मेरे फार्म हाउस पर काम करते रहो अगर साल तक नहीं काम किया तो तुम्हारे घर में अनाज का इक दाना नहीं रहने दूंगा "। बिना उनका नाम दिए इक पत्र स्थानीय सांध्य दैनिक में भेजा जो छप गया था और उन महोदय ने संपादक से बात की थी पूछ कर बताओ ये लिखा किस को लेकर किस संदर्भ में है । मुझे कहना पड़ता है ये सामाजिक विषय की बात है व्यक्तिगत नहीं समझना चाहिए । सब जानते हैं चोर की दाढ़ी में तिनका जिस ने जो किया हो खुद समझ आता ही है । 

  राजनेताओं अधिकारियों से सूदखोर लोगों को किसी की विवशता का फायदा उठाते या किसी को प्रताड़ित करते हुए कोई अपराध बोध नहीं होता है । मैंने ऐसे लोगों को धर्मोपदेशक के पांव दबाते देखा है घर बुलाकर ढेर सारा धन दान करते देखा है जो उन्होंने शोषण लूट से जमा किया होता है ये उनके सर्व ज्ञानी संत भी जानते हैं और गीता रामायण पाठ करने वाले किसी को ये कभी नहीं कहते कि दान पुण्य महनत ईमानदारी से अर्जित पैसे से करना धर्म है पाप की हराम की कमाई से कोई लाभ नहीं होता केवल दिखावा है झूठ है आडंबर करते हैं काली कमाई से धार्मिक आयोजन करने वाले । तीन शब्द कल भी याद दिलवाये थे , हमदर्द होना धर्म है , खुदगर्ज़ होना अधर्म , और बेदर्द होना सबसे बड़ा  गुनाह होता है । कोई माने चाहे नहीं माने मैंने कितनी बार अन्याय करने वालों को समय आने पर अत्याचार का फल भोगते देखा है । इक कहानी है जिस में कोई अपना आठ सौ का घोड़ा पांच सौ में बेचने को तैयार होता है लेकिन खरीदने वाला घोड़े की सवारी कर परखता है तो कहता है भाई आपका घोड़ा तो अधिक कीमत का है आप सस्ते में कम दाम पर क्यों बेच रहे हो । घोड़ा बेचने वाला बतलाता है उसकी मज़बूरी है बेटी का विवाह करना है पांच सौ उस की ख़ातिर चाहिएं । खरीदने वाला सही दाम आठ सौ देता है तो घोड़ा बेचने वाला सवाल करता है आपको सस्ता मिल रहा था फिर आपने अधिक कीमत किसलिए दी है , जवाब मिलता है कि मेरी भी मज़बूरी है मेरा धर्म कहता है आपको जो चीज़ चाहिए सामान वस्तु उसे खरीदो मगर कभी किसी की मज़बूरी मत खरीदना वर्ना इक दिन कोई तुम्हारी भी मज़बूरी खरीदेगा । इक फिल्म देखी इन दिनों चौबीस घंटे कहानी काल्पनिक हो सकती है लेकिन अंतर्मन को झकझोर सकती है मनोरंजन नहीं फ़िल्म से भी सबक सीख सकते हैं । आखिर में नीरज जी की ग़ज़ल के बाद मेरी इक ग़ज़ल , जो आज बताता हूं दो डॉक्टर्स दंपति ने ख़ुदकुशी की थी सालों पहले तब लिखी थी स्याही से नहीं अपने आंसुओं से ।  

गोपालदास नीरज जी की ग़ज़ल :-

समय ने जब भी अंधेरो से दोस्ती की है
जला के अपना ही घर हमने रोशनी की है

सबूत है मेरे घर में धुएं के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने ख़ुदकुशी की है

ना लड़खडायाँ कभी और कभी ना बहका हूँ 
मुझे पिलाने में  फिर तुमने क्यूँ कमी की है

कभी भी वक़्त ने उनको नहीं मुआफ़ किया
जिन्होंने दुखियों के अश्कों से दिल्लगी की है

(अश्कों = आँसुओं)

किसी के ज़ख़्म को मरहम दिया है गर तूने
समझ ले तूने ख़ुदा की ही बंदगी की है

गोपालदास नीरज ।

 

ख़ुदकुशी आज कर गया कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

ख़ुदकुशी आज कर गया कोई
ज़िंदगी तुझ से डर गया कोई।

तेज़ झोंकों में रेत के घर सा
ग़म का मारा बिखर गया कोई।

न मिला कोई दर तो मज़बूरन
मौत के द्वार पर गया कोई।

खूब उजाड़ा ज़माने भर ने मगर
फिर से खुद ही संवर गया कोई।

ये ज़माना बड़ा ही ज़ालिम है
उसपे इल्ज़ाम धर गया कोई।

और गहराई शाम ए तन्हाई
मुझको तनहा यूँ कर गया कोई।

है कोई अपनी कब्र खुद ही "लोक"
जीते जी कब से मर गया कोई।   
 

 
 
 
 
 
 
 

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