अप्रैल 01, 2023

अपना यही विचार है ( पहली अप्रैल ) डॉ लोक सेतिया

      अपना यही विचार है ( पहली अप्रैल ) डॉ लोक सेतिया 

कौन है अपना कौन पराया , पुराना हुआ ये विचार है 
सबकी महफ़िल सबकी रौनक , यही बस व्यौपार है । 
 
चोरों की बस्ती में चर्चा है यही , जो सबसे बड़ा मूर्ख 
सरदार बनेगा वही आज अप्रैल फूल का बड़ा त्यौहार है ।
 
सबसे पहले ईमानदारी की परिभाषा नई बनाई गई है 
जनता को कहना होगा सच्ची सरकार सच्चा सरदार है । 
 

                       परिभाषा एक ( कविता )  

है अपना तो साफ़ विचार
है लेन देन ही सच्चा प्यार ।

वेतन है दुल्हन  तो रिश्वत है दहेज
दाल रोटी संग जैसे अचार ।

मुश्किल है रखना परहेज़
रहता नहीं दिल पे इख्तियार ।

यही है राजनीति का कारोबार
जहां विकास वहीं भ्रष्टाचार ।

सुबह की तौबा शाम को पीना
हर कोई करता बार बार ।

याद नहीं रहती तब जनता
जब चढ़ता सत्ता का खुमार ।

हो जाता इमानदारी से तो
हर जगह सबका बंटाधार ।

बेईमानी के चप्पू से ही
आखिर होता बेड़ा पार ।

भ्रष्टाचार देव की उपासना
कर सकती सब का उध्धार ।

तुरन्त दान है महाकल्याण
नौ नकद न तेरह उधार ।

इस हाथ दे उस हाथ ले
इसी का नाम है एतबार ।

गठबंधन है सौदेबाज़ी
जिससे बनती हर सरकार ।
 

                      परिभाषा दो ( कविता ) 

वतन के घोटालों पर इक चौपाई लिखो
आए पढ़ाने तुमको नई पढ़ाई लिखो ।

जो सुनी नहीं कभी हो , वही सुनाई लिखो
कहानी पुरानी मगर , नई बनाई लिखो ।

क़त्ल शराफ़त का हुआ , लिखो बधाई लिखो
निकले जब कभी अर्थी , उसे विदाई लिखो ।

सच लिखे जब भी कोई , कलम घिसाई लिखो
मोल विरोध करने का , बस दो पाई लिखो ।

बदलो शब्द रिश्वत का , बढ़ी कमाई लिखो
पाक करेगा दुश्मनी , उसको भाई लिखो ।

देखो गंदगी फैली , उसे सफाई लिखो
नहीं लगी दहलीज पर , कोई काई लिखो ।

पकड़ लो पांव उसी के , यही भलाई लिखो
जिसे बनाया था खुदा , नहीं कसाई लिखो । 
 

 


 

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