नवंबर 08, 2022

काले धन की आत्मकथा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

       काले धन की आत्मकथा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

मेरा नाम काला है जबकि वास्तव में मैं सबसे खूबसूरत और रंगीन हूं । मैं अजर अमर और हर युग काल देश में रहा हूं और हमेशा रहूंगा कोई मुझे मिटा नहीं सकता है । जिनको मुझसे जितना अधिक प्यार है वही मेरा नाम हर दिन जपते रहते हैं मुझे खत्म कोई नहीं करना चाहता बल्कि सभी मुझसे दिल जान से बढ़कर मुहब्बत करते हैं । जैसे कोई आशिक़ अपनी महबूबा को लेकर आहें भरता है उसको ज़ालिम क़ातिल कहता है मुझे प्यार करने वाले काला धन बर्बाद करता है की रट लगाते हैं लेकिन रात को नींद नहीं आती मेरी चिंता चाहत में जागते रहते हैं । कुछ साल पहले इक शासक को मेरे मोहजाल में इस कदर जकड़ लिया कि उसने इरादा कर लिया सारा का सारा काला धन अपने पास जमा करने का । फरमान जारी हुआ और जिस के पास जितना काला धन अपराध रिश्वत लूट घोटालों से जमा किया हुआ था बदल कर सफेद कर बदलवा दिया । शोर मच गया काला धन ख़त्म हो गया है जबकि मैं ऐसा राक्षस की तरह हूं जिस की हर खून की बूंद से इक नया दैत्य पैदा होता जाता है । 70 साल में जितना काला धन मेरे चाहने वालों की तिजोरियों में जमा हुआ था उस से दस गुणा पिछले सात सालों में इकट्ठा हो गया है और सबसे अधिक उसी के खुद के पास और उसके ख़ास दोस्तों के पास है जिस ने मुझे ख़त्म करने की कसम उठाई थी । झूठी कसमें मुहब्बत में खाना इक पुरानी रिवायत है । काला धन कोयले की खान जैसा है जो सोना बन जाता है बाज़ार में आकर शकल बदल जाती है । काले धन की तस्वीरें सुंदर लगती हैं जब रईस लोग शान से बड़े बड़े मंदिरों में चढ़ाते हैं गरीबों का लहू चूसकर धनवान बनने पर । हर सत्ताधारी शासक की सेज पर दुल्हन बनकर आलिंगन करती हुई भविष्य के दिलकश सपने संजोती हूं अगले चुनाव की रणनीति के रूप में । राजनेताओं धर्म उपदेशकों बड़े बड़े उद्योगपतियों ने मेरा दामन कभी छोड़ा नहीं है । पैसा बाज़ार से मुंबई के मनोरंजन कारोबार तक सिर्फ मेरा ही जलवा दिखाई देता है काला टीका बुरी नज़र से बचाता है इस बात से मेरा महत्व समझ सकते हैं । 

मैंने सिर्फ लिबास बदला है जैसे अभिनेता राजनेता बाहरी आवरण बदलते हैं अंदर से वही रहते हैं झूठे बेईमान और बदचलन बदनीयत इंसान । शराफ़त से मेरा कोई रिश्ता न कभी था न कभी हो ही सकता है शरीफ़ लोग गरीबी और बदहाली का ज़ेवर पहनते हैं चांदी सोना उनकी किस्मत में नहीं होता है । बचपन में इक सहपाठी जिसका रंग सबसे गोरा चिट्टा था सब उसको काला कहकर बुलाते थे क्योंकि उसकी मां ने उसको यही नाम दिया था बुरी नज़र नहीं लगे इस की खातिर । काला धन बदनाम है खराब नहीं है खराब लगता है जब किसी और की जेब में होता है खुद अपनी तिजोरी का काला धन लक्ष्मी बनकर पूजा जाता है । अब की दीवाली भी काले धन वालों की शानदार रही है खूब रौशनी पटाखे और उपहार लेना देना जुआ खेलना शुभ समझते हैं ।
 
 
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