अगस्त 21, 2021

शानदार अंत की अभिलाषा ( अजीब दस्तान ) डॉ लोक सेतिया

   शानदार अंत की अभिलाषा ( अजीब दस्तान ) डॉ लोक सेतिया 

यही टीवी सीरियल के पर्दे पर नज़र आया अंतिम एपिसोड में सब चंगा हो गया है। हर बात का खुलासा हो गया सभी राज़ खुल गए पूरी तस्वीर साफ़ हो गई शुरुआत से अनगिनत बार सिर्फ गलत और अनुचित आचरण करने वाला खलनायक पल भर में बदल गया माफ़ी मांगने लगा अपने किये पर पशेमान होता दिखाई दिया। अर्थात अनहोनी घट रही थी राक्षस अपना स्वभाव बदल देवता बन गया। कहानी लिखने वाले के पास कुछ भी बचा नहीं अंत करना ही विकल्प हो गया। कल उसी समय कोई और नया धारावाहिक शुरू होगा शुरआत लाजवाब होगी बाद में बोझिल दास्तान आखिर में अंत वही सब उलझन सुलझती हुई।
 
 वास्तविक जीवन में भी ठीक यही होता है। कोई कितना अकेला होकर जिया दुनिया से विदा होने के बाद शोक मनाने वाले बहुत चले आते हैं काश लोग जानते तो कब से मरने की ख़्वाहिश करते। बात क्या है कि मशहूर लोगों के घर , मौत का सोग होता है त्यौहार सा। गुड़िया गुड्डे को बेचा खरीदा गया , घर सजाया गया रात बाज़ार सा। डॉ बशीर बद्र जी की ग़ज़ल कितनी सच्ची है इतनी अच्छी बातें इतना अपनापन कहां नज़र आता है मतलबी दुनिया में अफ़सोस की घड़ी बिछुड़ने की कम मुलाक़ात की ज़्यादा लगती है। इक अजीब बात ज़रूर होती है शोकसभा में जिसकी तस्वीर पर पुष्प चढ़ाते हैं सभी उसकी बात शायद कोई करता है हर कोई हज़ार बातें करता है। न जाने क्यों लोग आकांक्षा करते हैं उनकी शोकसभा शानदार होनी चाहिए जबकि खुद देख नहीं सकते उनकी चर्चा कोई नहीं करता। रिश्ते नातों की कितनी बातें होती हैं उनके बहाने से लोग अर्से बाद मिलते हैं अपनी अपनी बात करते हैं। ख़ुशी भी दुःख दर्द भी असली नहीं लगते हैं अब सब खोखला खाली खाली लगता है भीड़ में आदमी की शख़्सियत खो जाती है।   
 
 धार्मिक सभाओं में उपदेशक वक्ता दोहराते हैं उन्हीं बातों को असंख्य बार , कहते हैं आप नाम नहीं जपते धार्मिक स्थल जाते नहीं भगवान की उपासना करते नहीं। जाने इतनी भीड़ मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे तमाम धार्मिक शहरों में किस तरह दिखाई देती है। लोग एक नहीं सभी धार्मिक जगहों पर दर्शन ईबादत पूजा अर्चना को जाते हैं किनको शिकायत है लोग नहीं धार्मिक आस्था पर चलते हैं। ईश्वर उनको कैसे बताते हैं मेरी भक्ति का उपदेश अभी थोड़ा है शायद इतना अधिक होने लगा है कि उसकी कीमत घट गई है। आदमी पल पल चिंता में रहता है कोई बात गलत नहीं हो जाए लेकिन हज़ार नज़रें उस पर गढ़ी हुई होती हैं जो हर क्षण उसकी कमियां तलाश करती रहती हैं। कोई खुद अपनी गलती नहीं देखता है। अधिकांश लोग अपनी भूल गलती क्या अपराध तक को अनुचित नहीं समझते हैं। औरों पर तलवार ताने हुए हैं खुद को आईने में नहीं देखते हैं। 
 
  विडंबना की बात है कि धार्मिक जगहों पर रिश्वत देकर पहले दर्शन करने से लेकर चढ़ावे और दानराशि की चर्चा होती है आस्था विश्वास और भक्ति भावना को कोई नहीं जानता समझता। भवसागर से पार लगाने की बात कहने वाले मोह माया में डूबे हैं खुद दीपक तले घना अंधकार है। लिखने से पहले मिटाना पड़ता है जो मनघडंत अतार्किक लिखा हुआ है। सोच की मानसिकता की स्लेट अथवा पट्टी को साफ करना होगा लिखावट ऐसे शब्दों में हो जिसको पढ़ा और समझा जा सके। बिना अर्थ समझे रटना किसी काम का नहीं होता है। सही मार्ग की तलाश करनी ज़रूरी है कब तक कोल्हू के बैल बनकर उसी दायरे में घूमते रहेंगे आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बांधे , जहां हैं वहीं रहेंगे। 

 

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