अगस्त 25, 2021

ख़ुशी की तलाश में ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

           ख़ुशी की तलाश में ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया    

पढ़ने से पहले समझ लो ख़ुशी पाने की बात यहां नहीं हो रही है। खुश रहना जिनको जीवन का मकसद लगता है ख़ुदगर्ज़ लोग होते हैं भौतिक वस्तुओं से आनंद की अनुभूति होती है। खुश रहने के तौर तरीके अंदाज़ समझाने वाले संदेश भेजने वाले बहुत मिलते हैं ख़ुशी क्या होती है शायद उनको खुद मालूम नहीं नाचना गाना मौज मस्ती करना घूमना फिरना अच्छा लगता है ख़ुशी देता है ऐसा नहीं है। ख़ुशी कोई बाज़ार में बिकता सामान नहीं होता है अपने भीतर से उपजा एहसास होता है। अगर हमारे आस पास समाज में असमानता अन्याय भूख गरीबी जैसी समस्याएं हैं मगर हम जश्न मनाते हैं सुःख सुविधा साधन पाकर तब हमारी ख़ुशी मानवता की भावना को समझे बिना झूठी खोखली और दिखावे की अस्थाई पल दो पल की है बस ज़रा सा झौंका आकर उसको कभी भी दुःख दर्द परेशानी में बदल सकता है। ख़ुशी ऐसा एहसास है जो हासिल करने से नहीं बांटने देने से मिलता है सभी के दुःख दर्द परेशानियां समझना उनका एहसास करना अपना समझ उनको मिटाने की कोशिश करना सच्ची मानसिक ख़ुशी देता है। बिना कोई स्वार्थ सबकी सहायता करना कोई नाम शोहरत उपकार करने की चाह नहीं रखते हुए मानवीय संवेदना की खातिर हर किसी की भलाई की कामना रखना ख़ुशी पाने का वास्तविक ढंग है। ख़ुशी इक मासूम बच्ची की तरह है जिसको जन्म देने में महीनों इंतज़ार करने के बाद अपने भीतर पलना पड़ता है और असहनीय पीड़ा झेल कर जन्म देना होता है। हर ख़ुशी छोटी से बड़ी होती जाती है देखभाल करने से संभालने से प्यार से हर समस्या से बचा कर रखने से। मगर हमने ख़ुशी को समझा नहीं जाना नहीं पहचाना नहीं एवं धन दौलत नाम शोहरत भौतिक चीज़ों को पाने को खुश रहने का तरीका मान लिया है। अनुचित ढंग से छल कपट से धोखा देकर विवश कर जालसाज़ी द्वारा हासिल ख़ुशी वास्तविकता उजागर होते ही परेशानी दुःख दर्द की वजह बन जाती है। चोर डाकू लुटेरे पकड़े जाने पर मुजरिम ठहराए जाते हैं गुनाह की सज़ा मिलती है मगर जिनको बिना महनत अनुचित कार्य से धन दौलत नाम शोहरत मिल भी जाती है उनकी खुद की अंतरात्मा ख़ुशी अनुभव नहीं होने देती और अधिकांश लोग खुश होने का आडंबर दिखावा करते हैं ख़ुशी को अनुभव नहीं कर सकते हैं। 
 
रईस लोग बड़े धनवान लोग शासक बनकर ऐशो आराम पाने वाले पल पल जो मिला है उसको खोने का डर उनको चिंतित किये रहता है खुश नहीं रहने देता तभी जिनको बहुत अधिक हासिल है उनकी और ज़्यादा पाने की चाहत की हवस मिटती नहीं और वास्तव में वो सबसे गरीब होते हैं। हमने देवता और दानव की कथाएं कहानियां पढ़ी सुनी हैं , आदमी जब अपने पास जितना है किसी और को देता है ज़रूरतमंद को तब वो इंसान देवता बन जाता है। मगर दानव होते हैं जो किसी से उसका सब छीन लेते हैं अपनी इच्छा कामना की खातिर। देवता देते हैं राक्षस लेते हैं यही अंतर है अच्छे बुरे होने का , खेद की बात है आधुनिक समाज के मापदंड और नैतिक मूल्य आदर्श बदलते बदलते गलत को सही समझने लगे हैं। तेज़ चलने आगे बढ़ने की दौड़ में हमने पतन को उन्नति का नाम दे दिया है। जितना नीचे गिरते हैं लगता है ऊंचाई पर हैं और सबको पीछे छोड़ने में खुद अपनी ज़मीन से कट जाते हैं। 
 
आपको धर्म समाज की शिक्षा ने कितने कर्तव्य कितने क़र्ज़ गिनाये होंगे माता पिता से लेकर तमाम लोगों के लिए आभारी होने और उनका उपकार चुकाने की बातें। लेकिन कभी सोचा है जिस धरती पर रहते हैं जिस समाज से हमको कितना कुछ मिलता है उसका कोई क़र्ज़ हमपर बाकी रहता है चुकाने को। अपना घर परिवार संतान के इलावा देश समाज से जीवन भर कितना बिना मांगे बगैर शर्त मिलता रहा उनको कुछ वापस देना याद रहा ही नहीं। जिनके पास बहुत है उनको देना चाहिए उनको जिनके पास कुछ भी नहीं क्योंकि विधाता ने धरती हवा पानी प्रकृति सभी के लिए बराबर बनाई है जिन्होंने अपने हिस्से से बढ़कर हासिल किया है औरों का अधिकार छीन रहे हैं। सिर्फ कहने को सबका भला विश्व का कल्याण हो व्यर्थ की बात है जब हम सिर्फ अपनी ख़ुशी अपनी ज़रूरत को समझते हैं मतलबी बनकर अन्य लोगों के लिए असंवेदनशील हो जाते हैं। इस युग का आदमी अनगिनत लाशों के ढेर पर खड़ा उल्लास और अट्हास का प्रदर्शन कर हैवानियत का कार्य कर रहा है। मुट्ठी भर लोगों की हंसी के नीचे तमाम लोगों की आहें चीखें दबी हुई हैं। ख़ुशी चाहते हैं तो ऐसा समाज बनाना होगा जिस में सभी एक समान हों छोटा बड़ा ऊंचा नीचा ख़ास आम जैसा भेदभाव नहीं हो। 

 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-08-2021को चर्चा – 4,168 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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