ढंग आधुनिक राजनीति का ( उल्टी पढ़ाई ) डॉ लोक सेतिया
( सबक दो )
पहले सबक में आपने समझा था कि देशभक्ति का पेटेंट जिस सत्ताधारी दल के पास है आपको बस उसी में शामिल हो जाना है। कोई विचारधारा का लफड़ा नहीं है अब विचार आदर्श और मकसद एक ही है शासन करना और मौज मनाना। आपको मान लेना है कि उस दल को छोड़ बाकी सभी दल सत्ता तो क्या विपक्षी दल होने के भी अधिकारी नहीं हैं। लेकिन ध्यान रखना आपकी निष्ठा दल से नहीं समाज से तो कोई सरोकार ही नहीं और देश को लेकर कभी चिंता ही नहीं करनी है , आपके लिए बस कोई एक नेता जो बड़े पद पर है वही भगवान से भी बढ़कर है। उसको लेकर कोई शंका कोई विरोध कोई आलोचना आपको स्वीकार नहीं करनी है। उसकी हर बात आखिरी सच है और विवेचना से ऊपर शंका से परे विश्वास नहीं अंधा भरोसा करना है। अब आपको चुनावी खेल का खिलाड़ी बनना है और कोई नियम नहीं पालन करना है इस खेल का नियम ही यही है , जो जीता वही सिकंदर कहलाता है। हारी बाज़ी को जीतना जिसे आता है वही बाज़ीगर सबको भाता है , कोई बही है न कोई खाता है जो भी देता है वही पाता है। सबका सबसे यही रिश्ता है सभी का स्वार्थ का ही नाता है।
नेता जी की उलझन बढ़ गई है सब को दल में शामिल करने से दाल किसकी गलेगी नहीं जानते हैं। इतने केंचुए पलड़े में हैं कोई किसी को छोड़ता नहीं है सब एक जैसे हैं टांगखिंचाई में माहिर हैं। किसी का अपना कोई जनाधार नहीं है सबका आधार ऊपरवाला है उसके नाम से डूबते पत्थर तैरते हैं कहते हैं। उसी की माया है उसी का करिश्मा है उसी के नाम का भरोसा है। धन दौलत क्या है अपना ईमान ज़मीर आत्मा तक बिक जाये कोई मलाल नहीं बस उम्मीदवार होने का अवसर मिल जाये। टिकट का सवाल है बाबा , हाथ पसारे पांव पकड़े आरती गाते भेंट चढ़ाते मन में यही चाहत रखते हैं। बंद कमरे में बिकवाली में हर कोई टिकट की कीमत बढ़ चढ़ कर अपनी हैसियत अनुसार लगाता है। जिसकी पॉलिश चमकीली जूता उसी पर रहम खाता है , चांदी का जूता क्या गज़ब ढाता है। फ़ैल गई ये माहमारी है हर बेटा बाप पर भारी है कोई भी रहा नहीं अनाड़ी है। नेता जी को सबने यही कहा है कीमत की कोई चिंता नहीं आप बताओ उस से बढ़कर देने को तैयार हैं। आपका हाथ सर पर होते ही धन दौलत की बरसात होती है टिकट मिली तो अमावस भी पूनम की रात होती है।
आलाकमान को ऐसे में ख्याल आया है चुनाव आयोग को समझाया है कि बस दल के नाम पर बल्कि उनके नेता के नाम पर वोट मिलने हैं किसी भी व्यक्ति के नाम का कोई महत्व ही नहीं है। इसलिए ईवीएम मशीन में हर जगह उनके दल के चुनाव चिन्ह के सामने बड़े साहब का नाम लिखा हो और जीत के बाद उनकी मर्ज़ी जिस को विधायक सांसद घोषित कर दें और चाहें तो बारी बारी सब को साल या महीने या बेशक कुछ दिन को कुर्सी पर बिठा दें जब चाहें कुर्सी से गिरवा दें। एक दिन भी राज करने को मिल जाये कम नहीं होता है। एक दिन के बादशाह की कहानी सबने सुनी हुई है देखी नहीं अब देख कर मज़ा लेंगे। हर दिन या हर सप्ताह या हर महीने या फिर साल बाद नया शासक हर शहर को मिलेगा। सौ दो सौ साल की बात है सबकी बारी आएगी। सबको अच्छे दिन मिल सकेंगे। मामला विचाराधीन है। खाली झोली लिए हर कोई खड़ा है उसी दर पर भिखारी बनकर।