अगस्त 21, 2019

उम्मीद का दामन छोड़ दिया ( दास्तान ए ज़िंदगी ) डॉ लोक सेतिया

 उम्मीद का दामन छोड़ दिया ( दास्तान ए ज़िंदगी ) डॉ लोक सेतिया 

  नहीं मुझे किसी से कोई गिला नहीं कोई शिकवा-शिकायत भी नहीं है। इंसान तो क्या भगवान से भी कुछ भी नहीं कहना बाकी अब। बहुत मनाया हर किसी को सरकार से भी चाहा कहना सब हाल देश समाज का अपना भी उनका भी जो मुझे बेगाना समझते हैं। हर किसी को अपनाने की कोशिश में खुद अपने आप को ही खो दिया अब तो अपनी तलाश भी करने को फुर्सत नहीं है। मुझे न दुनिया समझ आई न दुनिया के दस्तूर न भगवान से सरकार तक पता चला कि है क्या और नज़र आता क्या है। सब ने कहा हमारा समाज धार्मिक है हमारा देश महान है यहां के लोग दया धर्म की मिसाल हैं बड़ी अच्छी अच्छी परंपरा की मिसाल देते हैं हर कोई भला होने का दम भरता है हर किसी को औरों में बुराईयां दिखाई देती हैं खुद को सब सोचते हैं सबका शुभचिंतक हैं। अब ऐसे अच्छे महान लोगों में मुझ जैसा आदमी जो किसी भी काबिल नहीं जीना चाहे भी तो कैसे जी सकता है। बचपन से सभी ने कमियां बताई हैं नहीं किसी को कुछ भी अच्छाई नज़र आई कभी मुझ में। गुनहगार समझते हैं लोग बेबाक सच कहता है जो भी।  भला इस सूरत ए हाल में कोई आदमी कैसे जी सकता है , हम सभी पल भर भी मरते  हैं  इसी कोशिश में कि शायद कोई अपना या बेगाना या कोई दोस्त या अजनबी या शहर गांव समाज का कोई खुश हो जाये मगर नहीं संभव होता है ये कभी भी। सच का पक्ष लेना साथ देना कोई नहीं चाहता , सच बोलने वाले को पागल कहते हैं और झूठ की जय जयकार करते हैं समझते हैं बड़ी अच्छी बात करते है।  चलो पुरानी सब बातों को छोड़ आज की बात करते हैं। 

          सरकार जनता की भलाई को बनाई जाती है और हर सत्ताधारी जनता का सेवक होने का दावा करता है। विकास के नाम पर सरकार कितनी इमारतें बनाती है ये जितने लोग हैं पहले से इनके पास कितने आलीशान भवन हैं बंगले महल से बढ़कर सरकारी दफ्तर भी और तमाम विभाग के अनगिनत मकान ज़मीन और साधन भी। नहीं होता तो जिस मकसद से विभाग बनाये जनता की समस्याओं का निवारण का काम। आज सब से अधिक जगह भवन दफ्तर अन्य विभागीय जायदाद इन के पास है जिनका उपयोग तक नहीं होता है फिर भी और बनाने की बात की जाती है जबकि देश की करोड़ों की आबादी को रहने को घर नहीं पढ़ने को स्कूल कॉलेज धनवान लोगों के लिए अस्पताल भी गरीब लोगों के लिए कम रईस लोगों के लिए आधुनिक और तमाम सुविधा से लैस। महान देश की यही निशानी है कुछ को बहुत किसी को पेट भरने को दो वक़्त रोटी भी नसीब नहीं। जाने किस धर्म की बात करते हैं क्या नफरत सिखाने वाला कोई धर्म हो सकता है। ऐसे समाज में जीना कौन चाहता है। सरकार आदेश देती है सभा में नेता भाषण देते हैं हर दिन उनके इश्तिहार गली गली सड़क चौराहे पर नज़र आते हैं। आम नागरिक सुन सकता है बता नहीं सकता अपना दर्द अपनी व्यथा , नहीं किसी अधिकारी को नेता को सुनने की चाहत नहीं फुर्सत नहीं ज़रूरत नहीं। सब अपने खुद को जो नहीं हैं बताने की बात करते हैं। भगवान की बात क्या करें सरकार की तरह कितना उसी के नाम पर जाने किन किन लोगों ने जमा किया हुआ है जिसको धार्मिक कार्य दीन दुखियों की सहायता पर नहीं बाकी सब पर खर्च किया जाता है। संचय नहीं करने का उपदेश देते हैं मगर सबसे अधिक संचय वही करते हैं जो खुद को धर्म के जानकर बताते हैं। आशावादी कोई चाहे भी कैसे बना रह सकता है। विकास मानवता का होता तो कुछ बात थी सरकार और संस्थाओं ने अपने भवन अपने खातिर तमाम साधन खड़े करने को विकास नाम दे दिया है। अदालतों में इंसाफ की हालत दफ्तरों में काम की चाल बिगड़ी है मगर चमक दमक बढ़ रही है।

   जनता पर नियम लागू किया जाता है ये नहीं हुआ तो आपका परिसर बंद आपका कारोबार बंद किया जा सकता है। सरकारी विभाग हर काम में असफल रहते हैं उनको बंद करने की कोई बात नहीं करता। काश उन पर भी नियम लागू किया जाता जिस काम को विभाग बनाया जिस कर्तव्य को अधिकारी कर्मचारी नियुक्त किये वो काम नहीं हुआ तो उनकी होने की ज़रूरत क्या है। हर नियम की तलवार आम जनता पर दहशत कायम रखने को है और असंभव नियम बना देते हैं या फिर कमाल की बात सरकार अपने कानून को लागू करने पर बदलती रहती है पचास बिस्तर तक के अस्पताल पर कानून नहीं लागू किया जायेगा ऐसा करने से अपने तीन चौथाई लोगों को छूट दे दी। हर किसी पर समान नियम एक देश एक कानून की चर्चा होती है तो ऐसा किसी एक राज्य की बात क्यों हो देश भर में और सबसे पहले खुद कानून बनाने वालों पर सख्ती से लागू हो। किसी भी तरह का अपराध अनधिकृत निर्माण अवैध कब्ज़ा जिन सरकारी अधिकारियों के समय हुआ उन्होंने होने क्यों दिया उनके पद पर होने का औचित्य क्या था। ज़रूर उनकी मिलीभगत रही होगी उनको छोड़ना अर्थात वही सब भविष्य में होने देना।

       गरीबी की रेखा की बात कोई नहीं करता बल्कि अब सरकार आंकड़े देती है इतने करोड़ भूखे नंगे गरीबों को क्या क्या सहायता दे रही है। जनता को भिखारी रखकर देश का विकास नहीं हो सकता है। जिस बात पर सरकार को शर्म आनी चाहिए उसी को एहसान बता रहे हैं। ये भी लूट है कि आपको राजा महाराजा की तरह शानो शौकत से रहना पसंद है जिस देश में लोग दो वक़्त रोटी क्या साफ पीने के पानी को तरसते है मगर आपके सामने मिनरल वाटर की बोतल सजी रहती हैं। आपको सब सस्ते में मुफ्त में हासिल होना ये कैसी देश की जनता की भलाई है जनसेवा है। राजनीतिक चंदे को गोपनीय बनाना विदेशी चंदे का हिसाब नहीं बताना और हर दिन सभाओं पर बेतहाशा धन उड़ाना देश की जनता की बदहाली पर ठहाके लगाना है। नहीं जनसेवक नहीं हैं जो लोग संसद विधायक होने की कीमत जीवन भर लेते हैं। ये देश संपन्न है इसको गरीब रखा है कभी विदेशी लुटेरों ने तो अब अपने ही चुने विधायक संसद और नियुक्त अधिकारी कर्मचारी वर्ग ने। इनकी तथाकथित सेवा की बड़ी महंगी कीमत चुकाते हैं हम लोग। देश का मंत्री प्रधानमंत्री राज्य का मुख्यमंत्री या बड़े अधिकारी सफ़ेद हाथी की तरह हैं जिनका मकसद जनता की भलाई नहीं सत्ता की मलाई खाना है। जब ये अपने इश्तिहार छपवाते हैं तो कोई नहीं पूछता ये अपने दिया है या जनता को उन्हीं का धन भी नाम भर को देने को महान बताते हैं कोई श्वेत पत्र जारी हो कितना धन खुद इन पर खर्च किया गया और उसका औचित्य क्या है। देशभक्ति देशसेवा जनता की भलाई का नाम देकर जो किया गया उसको रहबर बनकर रहजनी कहते हैं अर्थात रखवाला बनकर लूटने का रक्षक बनकर भक्षक का काम करना। सबसे बड़ा अपराध इन्होने देश के संविधान को अपनी ज़रूरत या मर्ज़ी से बदला तोड़ा मरोड़ा है उसकी भावना को दरकिनार करते हुए। स्वार्थ में अंधे लोग देश समाज को नफरत की आग में झौंकते हैं सत्ता की रोटियां सेंकने को उनसे उम्मीद रखना खुद को धोखे में रखना होगा।


                                           

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