सितंबर 22, 2018

सब से सुंदर तस्वीर ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

         सब से सुंदर तस्वीर ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

         दुनिया की मूर्खताओं में अवल नंबर की मूर्खता होती है खुद अपने आप की बढ़ाई करना। ये जांच ही नहीं गहन जांच का विषय है कि कितने लोग ऐसा करते हैं। कुछ लोग जानते हैं वो वास्तव में किसी काबिल हैं नहीं मगर सोचते हैं कोई नहीं समझता उनकी वास्तविकता को। कुछ जीते ही इसी खुशफहमी में हैं कि हम से अच्छा कोई नहीं है पर लोग समझते नहीं हमारी अच्छाई को नासमझ जो ठहरे। मैंने ऐसे लोगों को देखा है जिनको लिखना आता नहीं फिर भी ज़ुल्म ढाते हैं लिखने को लिखते जाते हैं , कभी किसी से लिखवाते हैं तो कभी कहीं से चुराते हैं। कुछ खुद को ग़ालिब दुष्यंत बताते हैं जब उनका कलाम महफ़िल में सुनाते हैं। कोई नहीं जनता किस चक्की का पिसा आटा खाते हैं कोई बाबा हैं जो सितम ढाते हैं। अपना माल छोड़ सबका माल नकली बताते हैं , कहते हैं मुनाफा नहीं कमाते हैं फिर भी मालामाल होते जाते हैं। चलो आज ऐसे सबसे सच्चे सबसे अच्छे लोगों से मिलवाते हैं। मगर पहले किसी शायर का शेर है दोहराते हैं।

         नर्म आवाज़ भली बातें मुहज़्ज़ब लहज़े , पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते हैं। 

    इश्क़ करते हुए मुलायम रेशमी लोग शादी के बाद फौलाद से हो जाते हैं। दुनिया वाले मतलब रहने तक भलाई दिखलाते हैं मतलब नहीं पूरा होते ही अपनी औकात पर लौट आते हैं। जो कल देवता था उसी को दानव बताते हैं। दोस्ती नहीं आती न ठीक से दुश्मनी ही निभाते हैं , फिर से दोस्त बनने की बात समझ नहीं पाते हैं और हद से बढ़ जाते हैं। जो टीवी चैनल सच को झूठ साबित कर दिखाते हैं वही सारे जहां से सच्चे कहलवाते हैं। सच को ज़िंदा रखेंगे की दुकान जो चलाते हैं कत्ल सच को हर दिन करते जाते हैं। आपको फिर वही किस्सा सुनाते हैं , फ्लैशबैक में लेकर जाते हैं। खेल में कुछ बच्चे इक शर्त लगाते हैं , मास्टरजी पूछते हैं तो बतलाते हैं। हम झूठ बोलने को प्रतियोगिता चलाते हैं , जो सबसे बड़ा झूठ बोले उसे ईनाम दिए जाते हैं। आज इस कुत्ते के पिल्ले पर शर्त लगी हुई है जो सबसे झूठा उसी को मिलेगा ये। मास्टरजी बोले भला क्या ज़माना है बच्चे झूठ पर इतराते हैं , हम जब बच्चे थे जानते तक नहीं थे झूठ किसे कहते हैं। सुनकर मास्टरजी की बात सभी बच्चे चिल्लाते हैं आप जीते आज की शर्त पिल्ला आपका ले जाओ हम भी घर जाते हैं। सारे जहां से सच्चा होने का दम भरने वाले और सच को ज़िंदा रखने की दुकान चलाने वाले उस्ताद लोग हैं जो पहला स्थान पाते हैं। हर खबर सबसे पहले वही लिखते हैं दिखलाते हैं। सब को उल्लू बनाते हैं। 
 
        खालिस सोने के गहने तिजोरी की शोभा बढ़ाते हैं , पालिश चढ़ाई हुई वाले शान को बढ़ाते हैं। कौन हैं जो सोने के ज़ेवर बिकवाते हैं आपको क़र्ज़ लेने की सलाह देने की भी कीमत पाते हैं। नायक ही नहीं महानायक बताये जाते हैं , बिना तेल मालिश करते हैं , मसालों के स्वाद को मां से बढ़कर बतलाते हैं , जाने कैसे करोड़पति का मंच सजाते हैं। सम्मोहन में सभी लोग फंस जाते हैं , हर एपीसोड में सबसे अधिक वही कमाते हैं , आवाज़ की बात मत पूछो क्या फरमाते हैं। कभी बीच बीच में दरबारी राग गाते हैं , सच तो ये है कि खुदा पैसे को समझते हैं जितनी दौलत बढ़ती जाती है उतने गरीब होते जाते हैं , ऐसा हर धर्म वाले समझाते हैं। ऐसी झूठ बोलने की कमाई से दो चार फीसदी समाजसेवा को देकर दानवीर बन जाते हैं। अंत में असली विषय पर लाते हैं। आपको इक पेंटिंग दिखलाते हैं , सबसे सुंदर तस्वीर का इनाम मिला है जिसे उस में तमाम भूखे अधनंगे और मैले कुचैले लोग विरोध की आवाज़ उठाते हुए बाजुओं को लहराते हैं। अगर ये बगावत है तो समझिये बगावत हो चुकी सलीम मुगलेआज़म का डायलॉग दोहराते हैं। किसी पेंटर को अनारकली बादशाह अता फरमाते हैं मगर कलाकार अपनी बनाई पेंटिंग के पास जाते हैं जिस में लोग हाथी के पांव के नीचे कुचले जाते हैं। बादशाहों की अनुकंपा में और ज़ुल्म में कुछ भी अंतर नहीं होता है इस सच से परदा उठाते हैं। बस वही कलाकार कलमकार साहित्यकार होते हैं जो सत्ता से खुद जाकर टकराते हैं। आजकल तमाम लोग जो कलमकार और सच के पहरेदार होने का दावा करते हैं पालतू कुत्ते की तरह तलवे चाटते नज़र आते हैं। जो खुद बिक चुके हैं अपना बाज़ार लगाते हैं खुद को महंगा बेचकर कीमत पर गर्व से इठलाते हैं। सारे के सारे सच्चे झूठ की कमाई खाते हैं जो नहीं है उसकी खबर बनाते हैं। झूठे विज्ञापनों से दर्शकों को मूर्ख बनाकर धन दौलत कमाते हैं। खबर की परिभाषा क्या है उनको शायद मालूम नहीं है हमीं फिर फिर याद दिलाते हैं। खबर वो सूचना है जो कोई छुपा रहा है खबरनवीस का कर्तव्य है उसका पता लगाना और सब को बताना। मगर आप की खबरों में कोई राज़ की बात नहीं है जो नेता सरकार अधिकारी बाकी लोग शोर मचा मचा बताना चाहते हैं उसको खबर नहीं कहा जा सकता है जिस पर आप दिन भर नूरा कुश्ती करवाते हैं और खुद अपराधी होकर भी सज़ा सुनाते हुए न्यायधीश बने नज़र आते हैं। क्या उसी की चक्की का आता खाते हैं जिसकी तस्वीर हर खबर के नीचे दिखाते हैं। अख़बार के पहले पन्ने आजकल इश्तिहार बनकर आते हैं तो लोग समझ जाते हैं कि आप खबरें नहीं छापते विज्ञापनों की खातिर अख़बार का धंधा अपनाते हैं। रोज़ अपने ही गुण गाकर अपनी खिल्ली उड़ाते हैं। आप का दावा है औरों को आईना दिखाते हैं फिर खुद अपने चेहरे के दाग़ क्यों नज़र नहीं आते हैं। कोई नकाब है या फिर कोई मुखौटा लगाते हैं , किस से मेकअप करवाते हैं जो सज धज कर आते जाते हैं। आपके कपड़े राजा नंगा है की कहानी को और ही ढंग से पढ़वाते हैं। राज़ क्या है झूठ की किस ब्रांड की क्रीम लगाते हैं। 

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