इक गुलाबी रुमाल आया है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
इक गुलाबी रुमाल आया है
बन के लेकिन सवाल आया है।
दरो-दीवार सहमे सहमे हैं
जैसे घर में बवाल आया है।
खेल सत्ता कई दिखाती है
ये तमाशा कमाल आया है।
अब परिन्दे लगे समझने हैं
ले के सय्याद जाल आया है।
गर्दिशे वक़्त और तुम देखो
इक नई चल के चाल आया है।
खत ये लिक्खा हुआ गुलाबी है
जैसे होली-गुलाल आया है।
आज "तनहा" निखार कलियों पे
देख फिर बेमिसाल आया है।
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