सितंबर 19, 2018

POST : 907 गरीब जनता की खातिर भी अध्यादेश जारी करिये ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

    गरीब जनता की खातिर भी अध्यादेश जारी करिये ( आलेख ) 

                                          डॉ लोक सेतिया 

    आपने कह दिया और सबने मान लिया कि आप सब करना चाहते हैं और पहले किसी ने कुछ भी नहीं किया है। मगर उस कुछ नहीं करने वालों का किया दिखाई देता है आपका कहा सच हुआ कहीं नज़र नहीं आता। जो जो अपने वादा किया सब झूठ निकला और जो जो आप हमेशा से कहते आये उसे भी भूल गये। ये विकास होता है करोड़ों की मूर्तियां बनवाना हर दिन सैर सपाटे पर जाना अपने नाम की धूम मचाने को मीडिया का घर भरते जाना। अपराधियों को गले लगाना अपनों को सौदेबाज़ी में मुनाफा दिलवाना। और कोई भी काम करते हुए बिल्कुल नहीं शरमाना। जैसे भी हो अपने दल की सरकार बनवाना , किसी का हाथ पकड़ लेना किसी का छोड़ जाना। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक पर अध्यादेश ले आये हो , अपनी पत्नी को बिना तलाक जो छोड़ आये हो उस पर भी कुछ बताना। अपनी नाकामी को सफलता समझना हर झूठ को अपने सच कहलवाना। सबसे अच्छे आप हैं यही मनवाना है मान लेंगे हम बस इक काम कर दिखाना। इस देश की जनता को भीख नहीं चाहिए केवल अधिकार मांगती है। जिन्होंने अभी तक लूटा देश को उनका हिसाब है चुकाना। वोटों की खातिर ही सही एक अध्यादेश और लाना , सबको बराबर बराबर सब मिले ज़रूरी है। करना मुश्किल भी नहीं है चाहोगे कर दिखाना। आज़ादी की बात पर इक कविता सुनते जाना फिर सोचना किया क्या और क्या था कर दिखाना। सत्ता की भूख नेताओं की जाने कितने सितम ढायेगी सबको सत्ता पाना और जनता को धोखा खाना , बस बहुत हो गया विराम है लगाना। बेकार है हर दिन अपने ही गीत गाना सुनकर गरीबों की चीखें और बेटियों पर ज़ुल्म होते टीवी पर सभाओं में सभी तथाकतित झंडाबरदारों का मुस्कुराना बस बहस में जीत हार की बाज़ी लगवाना। आपकी थाली भरी है और जश्न होते आपके घरों में मातम है जनता के हिस्से नहीं पेट में इक भी दाना। ऐसा महान भारत किसी और को दिखलाना , सत्ता की चाहत में लोगों को बांटते जाना फिर भी देशभक्त कहाना। बंद करो आग को हवाओं से बुझाना , मिल सके तो राहत का पानी लाना। 
 

जश्न ए आज़ादी हर साल मनाते रहे ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

जश्ने आज़ादी हर साल मनाते रहे ,
पर शहीदों की हर कसम भुलाते रहे।

भगत सिंह और गाँधी सब भूले हमें ,
फूल उनकी समाधी पे चढ़ाते रहे।

दम भी घुटने लगा हम न ये समझे मगर ,
काट कर पेड़ क्यों शहर बसाते रहे।

जो लिखा फाइलों में न दिखाई दिया ,
लोग भूखे हैं नेता झुठलाते रहे।

दाग़  ही दाग़ कुछ इधर भी कुछ उधर भी ,
आइनों पर सभी दोष लगाते रहे।

आज सोचें ज़रा क्योंकर ऐसे हुआ ,
बाड़ बनकर रहे खेत भी खाते रहे।

यह न सोचा कभी आज़ादी किसलिए ,
ले के अधिकार सब फ़र्ज़ भुलाते रहे।

मांगते सब रहे रोटी ,रहने को घर ,
पांचतारा वो होटल बनाते रहे।

खूबसूरत जहाँ से है हमारा वतन ,
वो सुनाते रहे लोग भी गाते रहे।

   हम मान लेंगे आप जो भी कर रहे हैं वोटों की खातिर नहीं कर रहे हैं। हम ये भी मान लेंगे कि आपको सत्ता जाने का कोई भय नहीं है। इतना भी मान लेंगे कि आप को अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए आप तो देश की सेवा और चौकीदारी करना चाहते हैं। आपके स्वच्छ भारत अभियान गंगा सफाई से भ्र्ष्टाचार समाप्त करने और अच्छे दिन लाने की बात इक फरेब साबित हुआ हम फिर भी उनपर आपकी हर बात मान लेंगे। हम मान लेंगे अभी तक देश में कोई भी विकास नहीं हुआ था और आज जो भी है सब आपका किया विकास ही है। स्कूल अस्पताल देश भर में सड़कें बिजली सिंचाई को बांध से लेकर मनरेगा तक सब आपका करिश्मा है। देश का उद्योग तीनों सेनाओं की ताकत से परमाणु बंब तक सभी आपकी देन है। रात को दिन कहोगे हम मान लेंगे और भी जो चाहो मान लेंगे इतना भी कि आपको जीवन भर को सत्ता बिना चुनावी जंग के मिलने की भी बात मानी जा सकती है। मगर बदले में आपको इक अध्यादेश गरीब जनता की खातिर भी जारी करना होगा , उस में क्या क्या होगा बता देते हैं। 
 
        आपको शायद इतिहास अपनी तरह से याद हो मैं अपने ढंग से बताना चाहता हूं। कई साल पहले ज़मीदार के पास अधिकतम कितनी ज़मीन हो इसका कानून लागू किया गया है। सीमा से अधिक ज़मीन उस पर खेती करने वालों को मिली थी। आजकल राजनेताओं ही के पास हज़ारों एकड़ ज़मीन है सब जानते हैं , मगर मुझे उसकी बात नहीं करनी है। देश की संपदा का तीन चौथाई से अधिक हिस्सा केवल सौ परिवारों के पास है , उसका बटवारा हो गरीबों की खून पसीने की कमाई है जो। जितने भी राजनितिक दल हैं उनको देश की सेवा करनी है तो उनके पास धन दौलत और ज़मीन जायदाद किसलिए , कोई व्यौपार है ये। किसी भी संसद सदस्य विधानसभा सदस्य के पास सादगी से जीने भर की जगह और साधन रहें और बाकी गरीबों को बांटा जाना चाहिए , मतलब इतना है कि जैसा आपने बताया है सत्तर साल की लूट जिस में आपके शासन के चार साल भी शामिल हैं लुटेरों से छीन कर हकदार लोगों को हिस्सा दिया जाये। किसी भी उद्योगपति के पास महल और धन का अंबार नहीं रहना चाहिए , जी ये सच्चे राम राज्य की अवधारणा है। किसी सरकारी अधिकारी को लाखों की सुविधाएं और वेतन भी नहीं दिए जाने चाहिएं और उनके कर्तव्य नहीं निभाने या अनुचित कार्य करने की सज़ा भी कड़ी होनी चाहिए। सब से पहले देश के हर नागरिक को जीवन की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिएं वीवीआईपी लोगों को किसलिए देश की जनता से बढ़कर सभी कुछ हासिल हो जब मालिक जनता है और अधिकारी और मंत्री उसके सेवक। जो भी दल अपने सदस्यों को आज़ादी नहीं देता अपने विचार व्यक्त करने की अपना मत जिसे मर्ज़ी देने की उसको लोकतंत्र में चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। दलों की आड़ में गिरोह की तरह किसी डाकू का शासन नहीं होना चाहिए। भाषण बहुत हो चुके अब वास्तव में अपनी देशभक्ति दिखलाने का समय है अपना सर्वस्व देश को अर्पित करने वाला ही जनता का सांसद विधायक बन सके , त्याग की बात नहीं त्याग किया जाना चाहिए। धन दौलत के अंबार जिस किसी के पास भी हैं चाहे कोई धर्मं हो या और संस्थाएं सब का सब गरीबों को ऊंचा उठाने पर खर्च किया जाये। किसी भी के नाम पर स्मारक बनवाने की अनुमति नहीं हो और जितनी ज़मीन ऐसे काम को उपयोग की जाती रही है उसको गरीबों को घर स्कूल अस्पताल बनवाने को इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इक कानून इक अध्यादेश से हर बाकी समस्याओं का निदान हो सकता है तो जिस से देश की दो तिहाई जनता की भलाई हो और कुछ लाख लोगों से ज़रूरत से ज़्यादा धन दौलत ले ली जाये उसे क्यों नहीं लाया जाना चाहिए। झूठे वादों और सत्ता पाकर शान से रहने को बंद करना तो होगा। टुकड़ों में जनता को बांटकर राहत नहीं दो कोई उपाय ऐसा करो कि सब को बराबर सब हासिल हो। इक अध्यादेश की दरकार है। और  भी कहने को कितना बाकी है किसान की मौत पर किसी दिन शोक तो मनाना , छोड़ो अब अपराधी बाबाओं और धनवालों को बचाना , जाते जाते इक ग़ज़ल सुनते जाना। आपकी आरज़ू है इतिहास में नाम है लिखवाना , मुमकिन है चाहो अगर कर दिखाओ अमीर गरीब का अंतर तो है मिटाना। जानती है जनता सारे ताज उछालना और हर तख्त को गिराना , धैर्य को हमारे अब मत आज़माना।


सरकार है बेकार है लाचार है - लोक सेतिया "तनहा"

सरकार है  , बेकार है , लाचार है ,

सुनती नहीं जनता की हाहाकार है।


फुर्सत नहीं समझें हमारी बात को ,

कहने को पर उनका खुला दरबार है।


रहजन बना बैठा है रहबर आजकल ,

सब की दवा करता जो खुद बीमार है।


जो कुछ नहीं देते कभी हैं देश को ,

अपने लिए सब कुछ उन्हें दरकार है।


इंसानियत की बात करना छोड़ दो ,

महंगा बड़ा सत्ता से करना प्यार है।


हैवानियत को ख़त्म करना आज है ,

इस बात से क्या आपको इनकार है।


ईमान बेचा जा रहा कैसे यहां ,

देखो लगा कैसा यहां बाज़ार है।


है पास फिर भी दूर रहता है सदा ,

मुझको मिला ऐसा मेरा दिलदार है।


अपना नहीं था ,कौन था देखा जिसे ,

"तनहा" यहां अब कौन किसका यार है।  


 


1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुंवर नारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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