कलयुग का अच्छा नामकरण ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
सरकार को कलयुग नाम काले धन की तरह लगता है इसलिये गुप्त ढंग से प्रभु से सीधी मन की बात करने का तरीका खोज ही लिया गया। अब क्योंकि प्रभु को संदेश ही यही भेजा गया था कि सरकार केवल भारत देश ही नहीं पूरे विश्व में स्वच्छता अभियान से लेकर अपनी हर योजना को पहुंचाना चाहती है ताकि सब के दुःख-दर्द खत्म हो सकें तो प्रभु इनकार नहीं कर सके। उत्सुक थे भारत की सरकार की कौन सी ऐसी योजना है जो वो कर सकती है जो खुद प्रभु नहीं कर पाये अभी तक उसको जानने समझने को। सरकार इक प्रस्ताव लिखित में लाई थी जिस में अनुरोध किया गया था कलयुग का नाम बदलने को , क्योंकि घोटाले शब्द की तरह कलयुग भी बेहद बदनाम हो चुका है और सरकारी दल अगला चुनाव इसी को लेकर लड़ना चाहता है कि हमने कलयुग का अंत कर सतयुग ला दिया है। प्रस्ताव को समझ प्रभु ने कहा आपका विचार तो शुभ है और सतयुग का आगमन हो भी सकता है , मगर उस में कुछ भी छुपा नहीं होगा। आप कुछ करते कुछ कहते और सोचते कुछ और हैं तो आपको कठिनाईयां झेलनी पड़ेंगी। सब जनता की आमदनी ही नहीं खुद अपने चंदे की पाई पाई का हिसाब साफ रखना ही होगा , खासकर झूठी शपथ , झूठे वादों की जो परंपरा आपकी रही है हर जगह उसी से बहुत भयानक परिणाम सामने आएंगे और आपकी मुश्किलें बढ़ाएंगे। झूठी शपथ लेते ही प्राण पखेरू उड़ जाएंगे , वादा नहीं निभाया तो आप जी भी नहीं सकेंगे और आपको मौत भी नसीब नहीं होगी। वास्तव में सतयुग लाने की खातिर आप जितने भी कलयुगी प्रवृति के लोग हैं उनका विनाश प्रलय द्वारा करना होगा। सब से महत्वपूर्ण ये है कि सतयुग में आपका ही शासन हो ये असंभव होगा। अब बतायें आपको वो सतयुग चाहिए जिस में कोई दूसरा शासक हो आपकी जगह।ऐसा है तो ये रहने दो मगर कोई दूसरा विकल्प हो तो बतायें , हमें निराश वापस नहीं भेजें। जिस में कलयुग का अंत तो हो मगर शासन मेरा इस ही नहीं अगले कार्यकाल भी चलता रहे। तब आपको मेरे त्रेता युग के अवतार श्री राम जी से जाकर विनती करनी चाहिए , शायद वो फिर दोबारा अवतार लेने को राज़ी हो जायें तब त्रेता युग लाया जा सकता है। जैसे ही श्री राम जी को जानकारी मिली कि ये लोग उसी दल से संबंधित हैं जो राम मंदिर बनाने की बात किया करता था तो उनहोंने सरकार से मुलाकात करने तक से मना ही कर दिया। कहा मुझे ऐसे भक्तों से डर लगता है जिनके लिये मैं इक मोहरा हूं राजनीति का। जब श्री राम जी नहीं मिले तो श्री कृष्ण जी याद आये , किसी तरह उनसे मिलने का रास्ता निकाल ही लिया। चलो सतयुग त्रेता युग न सही द्वापर युग भी हो तो क्या बुरा है। श्री कृष्ण थोड़ा ध्यानमग्न होकर सोचने समझने लगे और जान गये इनका अभिप्राय क्या है , सतयुग नहीं , त्रेता युग भी नहीं तो द्वापर ही सही। क्या क्या समझौते करते हैं बिना विचारे , भला इनसे क्या निभेगी। श्री कृष्ण बोले मैं तो जब जब धरती पर अधर्म बढ़ता है आता ही हूं सब जानते हैं , मगर है कोई अर्जुन भी तो हो जिसका सारथी मुझे बनना है। अर्जुन दिखाई नहीं देता मगर कंस गली गली मिलते हैं और आपकी राजनीति तो दुर्योधनों से भरी पड़ी है। कितनी सभाओं में उन्हीं को गदा धनुष और तलवार तक भेंट की जाती रही है। एक भी युद्धिठर भी नहीं कोई। किसको शासक बनाने को धर्मयुद्ध किया जायेगा , मुझे समझाओ तो। किस को मेरे ज्ञान की ज़रूरत है , आप सभी तो खुद को महाज्ञानी मानते ही हो। जिस तरह आपने हर अवतार को देवी देवता को हर धार्मिक ग्रन्थ को अपने मकसद को इस्तेमाल किया , अपनी सुविधा और मर्ज़ी से परिभाषित कर अर्थ का अनर्थ किया बार बार उस जानकर कोई अवतार कोई देवी देवता क्यों जाना चाहेगा धरती पर धर्म किसको कहते हैं ये समझाने। आप को क्या मालूम है जिन जगहों पर आप उपासना या दर्शन करने जाते हैं उन में कोई देवी देवता या अवतार रहता ही नहीं है। कोई दूसरे ही लोग हैं जो उनके नाम पर कारोबार करते हैं झूठा दावा और प्रचार कर के कि वो किस का मंदिर या कोई धर्मस्थल किसी भी धर्म का है। मुझे छलिया कहकर बुलाया जाता है मगर मैंने अपने स्वार्थ के लिए छल किया नहीं कभी किसी के साथ।
श्री राम जी और श्री कृष्ण जी से निराश होकर फिर सरकार प्रभु की शरण में आये तो प्रभु बोले अब मेरे बस में कुछ नहीं है जब कोई देवी देवता कोई अवतार तुमसे सहमत नहीं है। तब सरकार ने अपनी फाइल से इक नया प्रस्ताव सामने रख दिया , जो पहले से तैयार कर लाये थे अपनी आदतानुसार। प्रभु आप कलयुग को कोई और नाम दे दो अच्छा सा। प्रभु बोले ये है तो अजीब बात ही जैसे तुम राजनेता लोग सत्ता पाते ही पुरानी सरकार की योजना को अपनी पसंद का नया नाम दे देते हो , फिर भी इतना हठ बार बार नये नामकरण का करते हो तो जाकर घोषणा कर दो कि आगे से कलयुग को हठयुग कहकर बुलाया जायेगा। यही नाम उचित है आपको देखकर प्रतीत होता है , लेकिन ये समझ लो कि बाल हठ , स्त्री हठ , में कोई समस्या नहीं है पर राजहठ का परिणाम कभी कभी बहुत बुरा हुआ करता है। तुम अगर अपना हठ त्याग सको तो अच्छा होगा , अन्यथा किसी नये अवतार का धरती पर आना तुम्हारे लिये भी शुभ तो कदापि नहीं होगा।
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