फ़रवरी 12, 2017

इक ईमानदार की मौत ( आलेख-विडंबना ) डॉ लोक सेतिया

    इक ईमानदार की मौत ( आलेख-विडंबना ) डॉ लोक सेतिया

कुछ भी काल्पनिक नहीं , केवल सच। इक ईमानदार मर गया। बस इतनी सी बात है कोई खबर नहीं। पर क्यों और कैसे मरा पता चला तो लगा ये तो देश की वास्तविकता दिखाती कहानी है। बहुत साल पहले इक सरकारी विभाग में नौकरी करता था , कभी कुछ भी अनुचित नहीं किया। बहुत बार ऊपर के अधिकारी चाहते तब भी गलत काम नहीं कर पाते क्योंकि वह इक बाधा बन बीच में आ जाता था। उसको नहीं मालूम था बड़े अधिकारी उसको नापसंद करते हैं ईमानदार होने के कारण। उसको पीलिया रोग हो गया कुछ दिन इलाज हुआ छुट्टी लेकर , जब डॉक्टर ने उसको स्वस्थ बता दिया तब विभाग के बड़े अफ्सर ने और छुट्टी देने से मना कर दिया। उसे दफ्तर जाना ही पड़ा , मगर क्योंकि बिमारी से बहुत कमज़ोरी महसूस कर रहा था , इसलिये उसके सहयोगियों ने वहीं रखी चारपाई पर लेटने को कह दिया आराम करने को। तभी ऊपर के बड़े अधिकारी वहां आ गये थे और उसको सोता देखकर शराब पीकर लेटने का इल्ज़ाम लगा उसको निलम्बित कर दिया। वास्तव में उसने शराब का कभी सेवन किया ही नहीं था। उसने नोटिस मिलने पर जो बात सच थी लिख दी जवाब में , ये भी कि वो शराब नहीं पीता और ये आरोप झूठा और निराधार है। जब सेवा पर बहाल नहीं किया गया तब उसको न्याय पाने अदालत जाना पड़ा और अदालत ने उसकी बात को सही पाया दफ्तर के ही बाकी लोगों की गवाही और डॉक्टर के भी शराब नहीं पीने की बात को सही बताने पर। मगर बड़े अधिकारी अदालत के निर्णय के खिलाफ ऊपरी अदालत जाते गये तीस साल तक चुनौती देते और वो मरने तक इंसाफ होने का इंतज़ार ही करता रहा। उसके सेवानिवृत होने की उम्र बीत चुकी थी सालों पहले मगर उसे पेंशन कभी नहीं मिली , अभी फैसला आना बाकी था मगर मौत ने अपना फैसला पहले सुना दिया।

                  ये कहानी इतनी ही नहीं है , अभी असली बात बाकी है। वो शख्स इस सब को नियति समझ जी ही रहा था , अचानक कुछ दिन पहले उसको बताया डॉक्टर ने कि आपके हृदय का ऑपरेशन करना होगा। उसका पुत्र विदेश में नौकरी करता है वो आया और अपने पिता का ऑपरेशन दिल्ली के इक हॉस्पिटल से करवा वापस चला गया। लेकिन थोड़े दिन बाद उसको रात को सांस लेने में तकलीफ होने पर जब उनके अपने शहर में एक हॉस्पिटल ले गये तब जांच में पता चला कि ऑपरेशन करते समय उसको इंफेक्शन हो गया था और फिर ऑपरेशन की ज़रूरत है। दो लाख पहले जमा कराओ तब इलाज होगा , आधी रात को आजकल जब नोट बंदी की वजह से आप बैंक से भी नहीं निकाल सकते दिन में भी , रात को नकद राशि का प्रबंध करने में समय तो लगना ही था। जब तलक पैसे जमा करवाते वो शख्स ज़िंदा ही नहीं रहा , सरकार हैरान होती है जब हमने वादा किया हुआ है सब ठीक होने का फिर लोग कैसे बेवजह मर जाते हैं। पर लोग क्या करें जब ज़िंदगी नहीं मिलती मौत को गले लगाना ही पड़ता है। नोट बंदी में जो मरे उनके नाम पता होंगे कुछ लोगों को , ख़ुदकुशी करने वालों की भी पुलिस लिखती है एफ आई आर , मगर ऐसे लोग मरे कत्ल हुए या मरने को विवश कोई नहीं बता सकता। होनी प्रबल है कहकर सब बरी हो जायेंगे , किसी को कोई अपराधबोध तक नहीं होगा , जिन्होंने इक छोटी सी गलती सरकारी दफ्तर में खाट पे लेटने की को शराब में धुत होने का झूठा इल्ज़ाम लगा कर नौकरी से निकलवाया , अथवा जिस विभाग ने तीस साल तक न्याय होने नहीं दिया , कोई भी खुद को मानवता का दोषी नहीं मानेगा। शायद ऐसा पहली बार आपने भी देखा सुना होगा। मैं दो ऐसे लोगों को जानता हूं जिनको कभी वास्तविक दोष के कारण हटाया गया सरकारी नौकरी से और बाद में बहाल कर दिया गया।

        चालीस साल पुरानी बात है , इक पी डब्लयू डी के जेई को विभाग का सामान का गबन करने पर हटा दिया गया। दो साल तक घर बैठे आधा वेतन लेते रहे , दो साल बाद उनके इक मित्र विभाग में में एस डी ओ के पद पर उसी ऑफिस में आये तो उनको खुद पत्र भेजकर बहाल होने की जानकारी दी , उनसे कहा गया कि आप तीस हज़ार विभाग को राशि का भुगतान करें जिस का सामान गायब मिला था। कमाल की बात ये हुई थी कि उन्होंने तीस हज़ार भरने को दोबारा नौकरी में जाते ही तारकोल बेच उस पैसे का प्रबंध किया था। ऐसी इक और घटना भी है। इक डॉक्टर जिस जगह नियुक्त था नौकरी करना नहीं चाहता था अपने घर से दूर , बिना त्यागपत्र दिये चला आया और निलंबित कर दिया गया। उसने अपने शहर अपनी निजि प्रैक्टिस कर ली। बीस साल तक चलता रहा इसी तरह , फिर इक जान पहचान के नेता के मंत्री बनते उसको केवल नौकरी पर वापस बहाल ही नहीं किया गया बल्कि पिछले सालों का सारा वेतन लाखों रूपये भी मिल गये।

        जिस देश  में दोषी बच जाते हों , और निर्दोष सज़ा भोगते भोगते दुनिया से अलविदा हो जाते हों , उसकी व्यवस्था को क्या कहा जा सकता है। मुझे  इक पंजाबी गीत याद आ रहा है।

                          सच्चे फांसी चढ़दे वेखे , झूठा मौज मनाए ,
                        लोकी कहन्दे रब दी माया , मैं कहन्दा अन्याय ।

                        की मैं झूठ बोल्या , की मैं कुफ्र तोल्या , कोइना भई कोईना । 

 

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