फ़रवरी 13, 2017

वास्तविकता ( कहानी ) डॉ लोक सेतिया

           वास्तविकता ( कहानी ) डॉ लोक सेतिया

               रचना जब तक रोग-ग्रस्त रही , सुरेश रात-दिन उसके पास रहा देखभाल को , तभी इतनी गंभीर दशा से निकल कर फिर से पूरी तरह स्वस्थ हो सकी। आज दोबारा वही सवाल रचना के मन में आया और उसने सोचा आज साफ साफ पूछ ही लेती हूं। वो सुरेश से बोली क्या अभी भी तुमको नहीं लगता कि मैं ही वही लड़की हूं जिस से तुम्हें बहुत पहले ही विवाह कर लेना चाहिए था। सुरेश ने जवाब दिया , रचना मुझे तुमने इक बात कही थी बहुत साल पहले , मुझे आज भी याद है तुम भी भुला नहीं पाई होगी उस बात को। रचना ने कहा बिल्कुल याद है , मैंने यही कहा था सुरेश मैं तुम से अथाह प्रेम करती हूं , अगर शादी करूंगी तो सिर्फ तुम्हीं से। सुरेश ने याद दिलाया हां ये तो कहा था मगर इक बात और भी तुमने कही थी , कि अगर मैंने तुझे छोड़ किसी और लड़की से शादी की तो तुम जान दे दोगी। रचना बोली कही थी ये भी बात क्योंकि नहीं जी सकती तुमसे बिछुड़ कर , लेकिन तुमने नहीं बताया कि तुम मुझ से नहीं तो और किस से शादी करना चाहते हो। सुरेश ने कहा देखो रचना तब भी मैंने तुमसे यही कहा था कि हम बचपन के दोस्त हैं लेकिन मेरे मन में कभी तुम्हारे प्रति वो भावना नहीं आई कि मुझे तुम्हीं से विवाह करना चाहिये। बेशक मुझे और भी किसी लड़की से प्यार का कोई एहसास नहीं हुआ , मगर तुमने तब खुद कहा था कि तुम उस दिन का इंतज़ार करोगी जिस दिन मेरे दिल में भी वही भावना पनपेगी कि मुझे सिवा रचना के किसी से शादी नहीं करनी है। हम दोनों में कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ , कोई अनबन नहीं मतभेद नहीं , तुम में कुछ भी कमी भी हर्गिज़ नहीं है , फिर भी मुझे नहीं पता क्यों मुझे उस तरह का एहसास हुआ नहीं जो तुम चाहती थी और चाहती हो आज भी। रचना आज जब हम दोनों पचास साल से अधिक आयु के हो चुके हैं , अकेले अलग अलग रहते भी अच्छे मित्र बने हुए हैं , तब मुझे फिर से पुराना सवाल अनावश्यक लगता है। मगर क्योंकि तुम्हें ये सवाल बेचैन करता रहता है तो हमें इसका उत्तर तो खोजना ही होगा। रचना क्यों न हम अपने गुरु जी से इस बारे चर्चा करें , वो इन दिनों यहीं आकर ठहरे हुए हैं थोड़े दिन को। रचना ने कहा सही बात है , तुम जाकर मिलो गुरु जी से और उन से अकेले में मिलने का समय ले सको तो मैं साथ साथ चल कर उन्हीं से पूछना चाहती हूं , शायद वही मेरी दुविधा को दूर कर सकते हैं।

                     सुरेश ने जब गुरु जी को बताया कि रचना तंदरुस्त नहीं है और आपसे मिलना भी चाहती है , तब वो स्वयं ही शिष्या से मिलने और उसका हालचाल पूछने चले आये रचना के घर। रचना की तबीयत की बात जानने के बाद गुरु जी बोले , बताओ बेटी आपको क्या पूछना है मुझ से। रचना ने तब अपने और सुरेश के बारे सब कुछ बताकर पूछा , गुरु जी मैंने इतने साल तक इंतज़ार किया है , तब भी सुरेश के दिल में अपने लिए प्यार क्यों नहीं जगा पाई। गुरु जी ने रचना से पूछा , बेटी क्या तुम मानती हो कि तुम सुरेश से सच्चा प्यार करती हो , जबकि सुरेश के मन में वो भावना नहीं है। रचना ने जवाब दिया गुरु जी मुझे तो यही लगता है। गुरु जी बोले बेटी तुम्हारा विचार सही नहीं है। मुझे लगता है सुरेश ही है जो तुम से सच्चा अटूट और अथाह प्यार करता है , तभी उस ने तुम्हारी ख़ुशी को समझ कहीं और विवाह की बात सोची तक नहीं , इस डर से कि तुम कुछ अनर्थ नहीं कर बैठो। तुम शायद आकर्षित रही हो सुरेश के प्रति , उसको पाना भी चाहती हो , मगर प्रेम कभी विवश कर हासिल नहीं किया जाता है। बहुत मुमकिन है अगर तुमने कोई शर्त नहीं रखी होती अपनी जान देने  की , और कहती सुरेश तुम्हें जिस किसी से भी शादी करनी हो कर लेना , मुझे किसी दूसरे से नहीं करनी फिर भी तुम्हारी ख़ुशी में खुश रह लूंगी अकेली रह के भी। तब मुझे लगता है सुरेश खुद ही तुम से कह देता मुझे तुम से अच्छी लड़की कोई नहीं मिल सकती। जैसा तुम मानती रही हो रचना , वास्तविकता उस के विपरीत है। जितना प्यार सुरेश के मन में है तुम्हारे लिए , तुम्हारा प्यार उसके लिए उसके सामने कुछ भी नहीं। रचना बेटी तुमने प्यार को समझा भी नहीं जाना भी नहीं , आज रचना को पहचान हो गई थी प्रेम  की। सुरेश ही नहीं रचना भी समझ गई थी वास्तविकता।

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