अप्रैल 25, 2013

POST : 334 नहीं मालूम जिसको खुद पता अपना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       नहीं मालूम जिसको खुद पता अपना ( ग़ज़ल ) 

                     डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नहीं मालूम जिसको खुद पता अपना
बना आये उसी को तुम खुदा अपना ।

बड़ी बेदर्द दुनिया में हो आये तुम
बनाना खुद पड़ेगा रास्ता अपना ।

न करना आरज़ू अपना बनाने की
यहां कोई किसी का कब हुआ अपना ।

तड़पना उम्र भर होगा मुहब्बत में
बहुत प्यारा नसीबा लिख दिया अपना ।

हमारा वक़्त कुछ अच्छा नहीं यारो
चले जाओ सभी दामन छुड़ा अपना ।

नहीं आता किसी के वार से बचना
ज़माने को लिया दुश्मन बना अपना ।

बतायें शर्त से होता है क्या  "तनहा"
लगाई शर्त इक दिन सब बिका अपना । 
 

 

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