अप्रैल 24, 2013

POST : 333 आज हर झूठ को हरा डाला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आज हर झूठ को हरा डाला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आज हर झूठ को हरा डाला
आईना सच का जब दिखा डाला ।

बन गये कुछ , लगे उछलने हैं
आपने आस्मां बता डाला ।

आपके सामने बसाया था
घर हमारा तभी जला डाला ।

धर्म वालो कहो किया क्या है
हर किसी को ज़हर पिला डाला ।

जिसपे दीवार को चुना इक दिन
आज पत्थर वही हटा डाला ।

मुस्कुराये लगे हमें कहने
आपके प्यार ने मिटा डाला ।

आज देखा उदास "तनहा" को
रुख से परदा तभी हटा डाला । 
 

 

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