आज हर झूठ को हरा डाला ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
आज हर झूठ को हरा डालाआईना सच का जब दिखा डाला ।
बन गये कुछ , लगे उछलने हैं
आपने आस्मां बता डाला ।
आपके सामने बसाया था
घर हमारा तभी जला डाला ।
धर्म वालो कहो किया क्या है
हर किसी को ज़हर पिला डाला ।
जिसपे दीवार को चुना इक दिन
आज पत्थर वही हटा डाला ।
मुस्कुराये लगे हमें कहने
आपके प्यार ने मिटा डाला ।
आज देखा उदास "तनहा" को
रुख से परदा तभी हटा डाला ।
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