अप्रैल 27, 2013

POST : 335 बड़ा ही मुख़्तसर उसका फ़साना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बड़ा ही मुख़्तसर उसका फ़साना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"  

बड़ा ही मुख्तसर उसका फसाना है
बना सच का सदा दुश्मन ज़माना है ।

इधर सब दर्द हैं उस पार सब खुशियां
चला जाये जिसे उस पार जाना है ।

कंटीली राह पर चलना यहां पड़ता
यही सबको मुहब्बत ने बताना है ।

गुज़ारी ज़िंदगी आया कहां जीना
नया क्या है वही किस्सा पुराना है ।

जिसे जब जब परख देखा वही दुश्मन
नहीं अब दोस्तों को आज़माना है ।

हमें सारी उम्र इक काम करना है
अंधेरों को उजालों से मिलाना है ।

ये सारा शहर बदला लग रहा "तनहा"
अभी वैसा तुम्हारा आशियाना है । 
 

 

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