मार्च 04, 2013

POST : 308 बहुत है आरती हमने उतारी ( हास्य- कविता ) डॉ लोक सेतिया

बहुत है आरती हमने उतारी  ( हास्य- कविता ) डॉ लोक सेतिया

बहुत है आरती हमने उतारी
नहीं सुनता वो लेकिन अब हमारी ।

जमा कर ली उसने दौलतें  खुद
धर्म का हो गया वो है व्योपारी ।

तरस खाता गरीबों पर नहीं वो
अमीरों से हुई उसकी भी यारी ।

रहे उलझे हम सही गलत में
क्या उसको याद हैं बातें ये सारी ।

कहां है न्याय उसका बताओ
उसी के भक्त कितने अनाचारी ।

सब देखता , करता नहीं कुछ
न जाने लगी कैसी उसको बिमारी ।
 
चलो हम भी तौर अपना बदलें
आएगी तभी हम सब की बारी ।

बिना अपने नहीं वजूद उसका
गाती थी भजन माता हमारी ।

उसे इबादत से खुदा था बनाया
पड़ेगी उसको ज़रूरत अब हमारी ।
 

 

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