मार्च 03, 2013

POST : 307 सर कहीं पर झुकाना न आया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

  सर कहीं पर झुकाना न आया ( ग़ज़ल ) डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

सर कहीं पर झुकाना न आया
उस खुदा को मनाना न आया ।

लोग नाराज़ हों या कि खुश हों
झूठ को सच बताना न आया ।

दोस्ती प्यार मज़हब था सबका
फिर वो गुज़रा ज़माना न आया ।

रात दिन याद करते हैं तुझको
प्यार हमको भुलाना न आया ।

ज़ख्म अपने भरें भी तो कैसे 
चारागर को दिखाना न आया ।

प्यार के गीत रहते ज़ुबां पर
और कोई तराना न आया ।

जां उसी की अमानत है "तनहा"
हर किसी पर लुटाना न आया । 
 


 

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