सर कहीं पर झुकाना न आया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सर कहीं पर झुकाना न आया
उस खुदा को मनाना न आया ।लोग नाराज़ हों या कि खुश हों
झूठ को सच बताना न आया ।
दोस्ती प्यार मज़हब था सबका
फिर वो गुज़रा ज़माना न आया ।
रात दिन याद करते हैं तुझको
प्यार हमको भुलाना न आया ।
ज़ख्म अपने भरें भी तो कैसे
चारागर को दिखाना न आया ।
प्यार के गीत रहते ज़ुबां पर
और कोई तराना न आया ।
जां उसी की अमानत है "तनहा"
हर किसी पर लुटाना न आया ।
बहुत खूब...दोस्ती प्यार...गुज़रा ज़माना👌👍
जवाब देंहटाएं