मार्च 05, 2013

POST : 309 तुम्हारा सभी से बड़ा दोस्ताना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

तुम्हारा सभी से बड़ा दोस्ताना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

तुम्हारा सभी से बड़ा दोस्ताना
किसी रोज़ मिलने हमें भी तो आना ।

हुई भूल कैसी ,जुदा हो गये हम
थे जब साथ दोनों समां था सुहाना ।

यही इश्क होता है , मिलने को उनसे
बिना नाखुदा के नदी पार जाना ।

निराली हैं कितनी अदाएं तुम्हारी
हमें देखना , हम से नज़रें चुराना ।

कहा था मेरा हाथ हाथों में लेकर
किया आपने क्या ,पड़ा दिल लगाना ।

हमें चांद तारों से मतलब नहीं था
उन्हें देखने का था बस इक बहाना ।

महीवाल सोहनी मिले आज फिर से
हुआ प्यार "तनहा" कभी क्या पुराना । 
 

 

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