अगस्त 22, 2012

POST : 69 वो पहन कर कफ़न निकलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

वो पहन कर कफ़न निकलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

वो पहन कर कफ़न निकलते हैं
शख्स जो सच की राह चलते हैं ।

राहे मंज़िल में उनको होश कहाँ
खार चुभते हैं , पांव जलते हैं ।

गुज़रे बाज़ार से वो बेचारे
जेबें खाली हैं , दिल मचलते हैं ।

जानते हैं वो खुद से बढ़ के उन्हें
कह के नादाँ उन्हें जो चलते हैं ।

जान रखते हैं वो हथेली पर
मौत क़दमों तले कुचलते हैं ।

कीमत उनकी लगाओगे कैसे
लाख लालच दो कब फिसलते हैं ।

टालते हैं हसीं में  वो उनको
ज़ख्म जो उनके दिल में पलते हैं ।  
 

 

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