अगस्त 22, 2012

POST : 66 तड़पा ही गया हिज्र में बरसात का आलम ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

      तड़पा ही गया हिज्र में बरसात का आलम ( ग़ज़ल ) 

                           डॉ लोक सेतिया "तनहा"

तड़पा ही गया हिज्र में बरसात का आलम
और उसपे उमड़ते हुए जज़्बात का आलम ।

याद आता है वो वक्ते मुलाकात हमारा
बरसात में भीगे हुए हालात का आलम ।

बस भीगते ही रहने में थी खैर हमारी
बौछार से कम न था शिकायात का आलम ।

दीवाना बनाने हमें रिमझिम में चला है
दुजदीदा निगाहों के इशारात का आलम ।

लफ़्ज़ों में बयाँ कर न सकूँगा मैं सुहाना
भीगी हुई जुल्फों की सियह रात का आलम । 
 

 

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