अगस्त 22, 2012

POST : 64 राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं
झूठे ख्वाबों पे विश्वास करते नहीं ।

बात करता है किस लोक की ये जहां
लोक -परलोक से हम तो डरते नहीं ।

हमने देखी न जन्नत न दोज़ख कभी
दम कभी झूठी बातों का भरते नहीं ।

आईने में तो होता है सच सामने
सामना इसका सब लोग करते नहीं ।

खेते रहते हैं कश्ती को वो उम्र भर
नाम के नाखुदा पार उतरते नहीं । 
 

 

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