ये सबने कहा अपना नहीं कोई ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
ये सबने कहा अपना नहीं कोईफिर भी कुछ दोस्त बनाए हमने ।
फूल उनको समझ कर चले कांटों पर
ज़ख्म ऐसे भी कभी खाए हमने ।
यूं तो नग्में थे मुहब्बत के भी
ग़म के नग्मात ही गाए हमने ।
रोये हैं वो हाल हमारा सुनकर
जिनसे दुःख दर्द छिपाए हमने ।
ऐसा इक बार नहीं , हुआ सौ बार
खुद ही भेजे ख़त पाए हमने ।
उसने ही रोज़ लगाई ठोकर
जिस जिस के नाज़ उठाए हमने ।
हम फिर भी रहे जहां में "तनहा"
मेले कई बार लगाए हमने ।
Fir bhi kuch dost bnae hmne 👌👍
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