अगस्त 22, 2012

POST 63 ये सबने कहा अपना नहीं कोई ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ये सबने कहा अपना नहीं कोई ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ये सबने कहा अपना नहीं कोई
फिर भी कुछ दोस्त बनाए हमने ।

फूल उनको समझ कर चले कांटों पर
ज़ख्म ऐसे भी कभी खाए हमने ।

यूं तो नग्में थे मुहब्बत के भी
ग़म के नग्मात ही गाए हमने ।

रोये हैं वो हाल हमारा सुनकर
जिनसे दुःख दर्द छिपाए  हमने ।

ऐसा इक बार नहीं , हुआ सौ बार
खुद ही भेजे ख़त पाए  हमने ।

उसने ही रोज़ लगाई ठोकर 
जिस जिस के नाज़ उठाए हमने । 

हम फिर भी रहे जहां में "तनहा"
मेले कई बार लगाए  हमने । 
 

 

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