वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिए ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये
झूठ के साथ वो लोग खुद हो लिये ।
देखा कुछ ऐसा आगाज़ जो इश्क़ का
सोच कर उसका अंजाम हम रो लिये ।
हम तो डर ही गये , मर गये सब के सब
आप ज़िंदा तो हैं , अपने लब खोलिये ।
घर से बेघर हुए आप क्यों इस तरह
राज़ आखिर है क्या ? क्या हुआ बोलिये ।
जुर्म उनके कभी भी न साबित हुए
दाग़ जितने लगे इस तरह धो लिये ।
धर्म का नाम बदनाम होने लगा
हर जगह इस कदर ज़हर मत घोलिये ।
महफ़िलें आप की , और "तनहा" हैं हम
यूं न पलड़े में हल्का हमें तोलिये ।
बहुत खूब
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